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कौन है मनसा देवी, जानिए 10 रोचक बातें

हमें फॉलो करें कौन है मनसा देवी, जानिए 10 रोचक बातें

अनिरुद्ध जोशी

photo source UK haridwar govt
देवी, अप्सरा, यक्षिणी, डाकिनी, शाकिनी और पिशाचिनी आदि में सबसे सात्विक और धर्म का मार्ग है 'देवी' की पूजा, साधना, आराधना और प्रार्थना करना। देवी को छोड़कर अन्य किसी की पूजा या प्रार्थना मान्य नहीं। हिन्दू धर्म में कई देवियां हैं उन्हीं में से एक है मनसा देवी। माता मनसा देवी कौन है? क्या वह शिव की पुत्री हैं या कि वो ऋषि कश्यप की पुत्री हैं। क्या है उनकी कहानी और कहां है उनका खास स्थान जानिए वह सभी कुछ जो आप जानता चाहते हैं।
 
 
1. शिव पुत्री मनसा : कहते हैं कि भगवान शिव की तीन पुत्रियां हैं- अशोक सुंदरी, ज्‍योति या मां ज्‍वालामुखी और देवी वासुकी या मनसा। इनमें से शिव जी की तीसरी पुत्री यानी वासुकी को देवी पार्वती की सौतेली बेटी माना जाता है। मान्‍यता है कि कार्तिकेय की तरह ही पार्वती ने वासुकी को जन्‍म नहीं दिया था।
 
2. कद्रू पुत्री मनसा : कहते हैं कि मनसा देवी का जन्म तब हुआ था, जब शिव जी का वीर्य कद्रु, जिन्हें सांपों की मां कहा जाता है, की प्रतिमा को छू गया था। इसलिए उनको शिव की पुत्री कहा जाता है।
 
3. कश्यप की पुत्री : कहते हैं कि मनसा देवी भगवान शिव की मानस पुत्री है इसीलिए उन्हें मनसा कहते हैं। परंतु कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ हैं इसीलिए मनसा कहा जाता है। कश्यप ऋषि की पत्नी है कद्रू। शिव की पुत्री होने का जिक्र स्पष्ट नहीं है इसलिए यह मान्य नहीं है। हां शिव से उन्होंने शिक्षा दीक्षा अवश्य ग्रहण की है। 
 
4. वासुकी की बहन : कद्रू और कश्यप के पुत्र वासुकी की बहन होने के कारण मनसा देवी को वासुकी भी कहा जाता है। वासुकी शिवजी के गले ने नाग हैं।
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5. सर्पों की देवी : मनसा देवी सर्प और कमल पर विराजित दिखाया जाता है। कहते हैं कि 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। उनकी गोद में उनका पुत्र आस्तिक विराजमान है। आस्तिक ने ही वासुकी को सर्प यज्ञ से बचाया था। बंगाल की लोककथाओं के अनुसार, सर्पदंश का इलाज मनसा देवी के पास होता है।
 
6. हरिद्वार में है मनसा देवी का जागृत स्थान : हरिद्वार शहर में शक्ति त्रिकोण है। इसके एक कोने पर नीलपर्वत पर स्थित भगवती देवी चंडी का प्रसिद्ध स्थान है। दूसरे पर दक्षेश्वर स्थान वाली पार्वती। कहते हैं कि यहीं पर सती योग अग्नि में भस्म हुई थीं और तीसरे पर बिल्वपर्वतवासिनी मनसादेवी विराजमान हैं। यह भी कहा जाता है कि यहां पर माता सती का मन गिरा था इसलिए यह स्थान मनसा नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
7. मनसा देवी के पति : अधिकतर जगहों पर मनसा देवी के पति का नाम ऋषि जरत्कारु बताया गया है और उनके पुत्र का नाम आस्तिक (आस्तीक) है जिसने अपनी माता की कृपा से सर्पों को जनमेयज के यज्ञ से बचाया था।
 
8. मनसा देवी ने किया कठोर तप : कहते हैं कि मनसा माता ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का ज्ञान और श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया था, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद उन्होंने राजस्थान के पुष्कर में पुन: तप किया और श्रीकृष्‍ण के दर्शन प्राप्त किए थे। भगवान श्रीकृष्‍ण ने उन्हें वरदान दिया था कि तीनों लोक में तुम्हारी पूजा होगी।
 
9 . मनसा देवी की पूजा : मनसा देवी की पूजा बंगाल में गंगा दशहरा के दिन होती है जबकि कहीं-कहीं कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी की पूजी जाती हैं। मान्यता अनुसार पंचमी के दिन घर के आंगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता। मनसा देवी की पूजा के बाद ही नाग पूजा होती है। आमतौर पर उनकी पूजा बिना किसी प्रतिमा या तस्‍वीर के होती है। इसकी जगह पर पेड़ की कोई डाल, मिट्टी का घड़ा या फिर मिट्टी का सांप बनाकर पूजा जाता है। चिकन पॉक्‍स या सांप काटने से बचाने के लिए उनकी पूजा होती है। बंगाल के कई मंदिरों में उनका विधिवत पूजन किया जाता है।
 
10. मनसा देवी का स्वरूप : मनसा देवी को सर्प और कमल पर विराजित दिखाया जाता है। कुछ जगहों पर हंस पर विराजमान बताया गया है। कहते हैं कि 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। उनकी गोद में उनका पुत्र आस्तिक विराजमान है। बताया जाता है मनसा का एक नाम वासुकी भी है और पिता, सौतेली मां और पति द्वारा उपेक्ष‍ित होने की वजह से उनका स्‍वभाव काफी गुस्‍से वाला माना जाता है।
 
 
जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी। वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।
जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च। महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत्। तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।-( ब्रह्म वैवर्त पुराण- प्रकृतिखण्ड अध्याय 44-46। श्लोक 15-17)
 
अर्थात : ये भगवती कश्यप जी की मानसी कन्या हैं तथा मन से उद्दीप्त होती हैं, इसलिये ‘मनसा देवी’ के नाम से विख्यात हैं। आत्मा में रमण करने वाली इन सिद्धयोगिनी वैष्णव देवी ने तीन युगों तक परब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण की तपस्या की है। गोपीपति परम प्रभु उन परमेश्वर ने इनके वस्त्र और शरीर को जीर्ण देखकर इनका ‘जरत्कारु’ नाम रख दिया। साथ ही, उन कृपानिधि ने कृपापूर्वक इनकी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण कर दीं, इनकी पूजा का प्रचार किया और स्वयं भी इनकी पूजा की। स्वर्ग में, ब्रह्मलोक में, भूमण्डल में और पाताल में– सर्वत्र इनकी पूजा प्रचलित हुई। सम्पूर्ण जगत में ये अत्यधिक गौरवर्णा, सुन्दरी और मनोहारिणी हैं; अतएव ये साध्वी देवी ‘जगद्गौरी’ के नाम से विख्यात होकर सम्मान प्राप्त करती हैं। भगवान शिव से शिक्षा प्राप्त करने के कारण ये देवी ‘शैवी’ कहलाती हैं। भगवान विष्णु की ये अनन्य उपासिका हैं। अतएव लोग इन्हें ‘वैष्णवी’ कहते हैं। राजा जनमेजय के यज्ञ में इन्हीं के सत्प्रयत्न से नागों के प्राणों की रक्षा हुई थी, अतः इनका नाम ‘नागेश्वरी’ और ‘नागभगिनी’ पड़ गया। विष का संहार करने में परम समर्थ होने से इनका एक नाम ‘विषहरी’ है। इन्हें भगवान शंकर से योगसिद्धि प्राप्त हुई थी। अतः ये ‘सिद्धयोगिनी’ कहलाने लगीं। इन्होंने शंकर से महान गोपनीय ज्ञान एवं मृत संजीवनी नामक उत्तम विद्या प्राप्त की है, इस कारण विद्वान पुरुष इन्हें ‘महाज्ञानयुता’ कहते हैं। ये परम तपस्विनी देवी मुनिवर आस्तीक की माता हैं। अतः ये देवी जगत में सुप्रतिष्ठित होकर ‘आस्तीकमाता’ नाम से विख्यात हुई हैं। जगत्पूज्य योगी महात्मा मुनिवर जरत्कारु की प्यारी पत्नी होने के कारण ये ‘जरत्कारुप्रिया’ नाम से विख्यात हुईं।

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