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काल भैरव अष्टमी : जानिए 16 रहस्य और पाएं संकटों से मुक्ति

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अनिरुद्ध जोशी

काल भैरव जयंती 7 दिसंबर 2020 को हिन्दू माह मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मनाई जाएगी। इस दिन को कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। मार्गशीर्ष में कृष्ण पक्ष की अष्‍टमी को काल भैरव की पूजा का प्रचलन है। इस दौरान काल भैरव के खास मंदिरों के आसपास जत्रा जैसा माहौल हो जाता है। आओ जानते हैं काल भैरव के 16 रहस्य और जानें कि किस तरह मुक्त हो सकते हैं संकटों से।
 
 
1. भैरव की उत्पत्ति: पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। इसीलिए वे शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। 
 
2. काशी के कौतवाल : हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है। कहते हैं कि काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
 
3. भैरव के अन्य नाम : पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है। 
 
4. शिव के अवतार : भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है। भैरव को शिव के दस अवतार रुद्रावतार में गिनती की गई है।
 
5. आदिवासियों के देवता : भैरव कई समाज के ये कुल देवता हैं और खासकर ये आदिवासियों और वनवासियों के देवता हैं। इसीलिए भगवान भैरव को पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है।
 
6. पालिया महाराज : सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो ओटले या स्थान बना रखे हैं दरअसल वे उन मृत आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है। ऐसे किसी स्थान का भगवान भैरव से कोई संबंध नहीं। इन्हें पालिया महाराज कहा जाता है।
 
 
7. भैरव के मंदिर : काल भैरव के प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है। काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है। इसके अलवा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। उज्जैन में भैरवगढ़ में साक्षात भैवरनाथ विराजमान है। यहां भैरवनाथ की मूर्ति मदिरापान करती है। ऐसा मंदिर विश्व में कोई दूसरा नहीं। कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है।
 
 
8. काल भैरव : काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। यह भगवान का साहसिक युवा रूप है। उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है।
 
काल भैरव मंत्र : काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- ।। ॐ भैरवाय नम:।।
 
9. बटुक भैरव : 'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।।'
- अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है। बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है। यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
 
उक्त आराधना के लिए मंत्र है- ।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
 
10. भैरव तंत्र : योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।
 
11. भैरव आराधना से शनि शांत : एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत हो जाता है। आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है। लाल किताब की विद्या के अनुसार शनि के प्रकोप से बचने के लिए भैरव महराज को कच्चा दूध या शराब चढ़ाने का कहा जाता है। जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। 
 
12. पूजा का विशेष समय : पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है। उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं। आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं। जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। दांत और आंत साफ रखें। पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें। अपवि‍त्रता वर्जित है।
 
13. भैरव चरित्र : दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है।
 
14. 52 भैरव : श्री लिंगपुराण अध्याय 106 के अनुसार दारुक नामक अनुसार ने जब ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त किया कि मेरी मृत्यु सिर्फ किसी स्त्री से हो तो बाद में उसका वध करने के लिए माता पार्वती का एक रूप देवी काली प्रकट हुई। असुर को भस्म करने के बाद मां काली का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था तब उस क्रोध को शांत करने के लिए शिवजी बीच में आए परंतु शिवजी के 52 टुकड़े हो गए, वही 52 भैरव कहलाए। तब 52 भैरव ने मिलकर भगवती के क्रोध को शांत करने के लिए विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया तब भगवती का क्रोध शांत हो गया। इसके बाद भैरवजी को काशी का आधिपत्य दे दिया तथा भैरव और उनके भक्तों को काल के भय से मुक्त कर दिया तभी से वे भैरव, 'कालभैरव' भी कहलाए।
 
15. माता वैष्णवी ने काट दिया था भैरव का सिर : रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमान और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमान की खड़ी मुद्रा में और भैरव का कटा सिर होता है। दरअसल, माता वैष्णवी ने भैरव का सिर काट दिया था। इस कथा को पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें... वैष्णो देवी गुफा मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा
 
16.भैरव की सवारी कुत्ता : काले रंग के कुत्ते को कालभैरव की सवारी माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार काले कुत्ते को रोटी खिलाने से कालभैरव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति आकस्मिक मृत्यु के भय से दूर रहता है।
 

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