जो जन्मा है वह मरेगा ही चाहे वह मनुष्य हो, देव हो, पशु या पक्षी सभी को मरना है। ग्रह और नक्षत्रों की भी आयु निर्धारित है और हमारे इस सूर्य की भी। इसे ही जन्म चक्र कहते हैं। जन्म मरण के इस चक्र में व्यक्ति अपने कर्मों और चित्त की दशा अनुसार नीचे की योनियों से उपर की योनियों में गति करता है और पुन: नीचे गिरने लगता है। यह क्रम तब तक चलता है जब तक की मोक्ष नहीं मिल जाता है। कई बार स्थितियां बदल जाती हैं, आओ जानते हैं गरुड़ पुराण अनुसार कि मरने के बाद क्यों नहीं शव को अकेला छोड़ा जाता है।
दाह संस्कार कुछ समय के लिए टाल देते हैं इन 3 कारणों से
1. सूर्यास्त के बाद हुई है मृत्यु तो हिन्दू धर्म के अनुसार शव को जलाया नहीं जाता है। इस दौरान शव को रातभर घर में ही रखा जाता और किसी न किसी को उसके पास रहना होता है। उसका दाह संसाकार अगले दिन किया जाता है। यदि रात में ही शव को जला दिया जाता है तो इससे व्यक्ति को अधोगति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी आत्मा असुर, दानव अथवा पिशाच की योनी में जन्म लेते हैं।
2. यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल में हुई है तो पंचक काल में शव को नहीं जलाया जाता है। जब तक पंचक काल समाप्त नहीं हो जाता तब तक शव को घर में ही रखा जाता है और किसी ना किसी को शव के पास रहना होता है। गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है। इसी डर के कारण पंचक काल के खत्म होने का इंतजार किया जाता है परंतु इसका समाधान भी है कि मृतक के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
3. यदि कोई मर गया है परंतु उसका दाह संस्कार करने के लिए उसका पुत्र या पुत्री समीप नहीं होकर कहीं दूर है तो उनके आने का इंतजार किया जाता है। तब तक शव को घर में ही रखा जाता है और किसी ना किसी को शव के पास रहना होता है। कहते हैं कि पुत्र या पुत्री के हाथों ही दाह संस्कार होने पर मृतक को शांति मिलती है अन्यथा वह भटकता रहता है।
शव के अकेला नहीं छोड़े जाने के 3 कारण
1. शव को अकेला छोड़ दिया जाए तो उसके आसपास लाल चींटियां या अन्य कोई नरभक्षी रेंगने वाला प्राणी या पशु आकर शव को खास सकता है। इसीलिए वहां कोई ना कोई व्यक्ति बैठकर शव की रखवाली करता है।
2. रात में मृत शरीर को अकेला छोड़ दिया जाए तो आसपास भटक रही बुरी आत्माएं भी उसके शरीर में प्रवेश कर सकती हैं। इससे मृतक के साथ-साथ परिवार को भी संकट का सामना करना पड़ सकता है।
3. शव को इसलिए भी अकेला नहीं छोड़ा जाता क्योंकि मृतक की आत्मा वहीं पर रहती है। जब तक उसका शरीर जल नहीं जाता तब तक उसका उस शरीर से किसी ना किसी रूप में जुड़ाव रहता है। साथ ही वह अपने परिजनों को भी देखता है। अकेला छोड़ दिए जाने से उसका मन और भी ज्यादा दुखी हो जाता है। हालांकि अधिकतर लोग गहरी नींद में चले जाते हैं। बहुत ज्यादा स्मृतिवान या चेतनावान ही जान पाते हैं कि मैं मर चुका हूं।
अन्य कारण :
1. यह भी माना जाता है कि यदि ज्यादा समय हो जाए तो शव से निकलने वाली गंध के चलते कई तरह के बैक्टिरियां भी पनपने लगते हैं और मक्खियां भी भिनभिनाने लगती है। इसीलिए वहां इस दौरान अगरबत्ती की सुगंध और दीपक भी जलाया जाता है।
2. यह भी कहा जाता है कि शव को अकेले छोड़ने से कई लोग जो तांत्रिक कर्म करते हैं उनके कारण भी मृत आत्मा संकट में पड़ सकती है। इसीलिए भी कोई ना कोई शव की रखवाली करता रहता है।
3. शव के आसपास जगह को साफ-सुधरा किया जाता है और धूप के साथ ही दीपक भी जलाया जाता है ताकि वहां दूर तक उजाला फैला रहे। इसका भी यह कारण है कि मृतक कहीं अधोगति में नहीं चला जाए, क्योंकि रात्रि के अंधकार में अधोगति वाले कीट-पतंगे, रेंगने वाले जीव-जंतु और निशाचर प्राणी ज्यादा सक्रिय रहते हैं। उस दौरान आत्मा यदि गहरी तंद्रा में है तो उसके अधोगति में जाने की संभावना भी बढ़ जाती है।
उल्लेखनीय है कि भीष्म पितामह ने अधोगति से बचने के लिए ही सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। उत्तरायण में प्रकृति और चेतना की गति उपर की ओर होने लगती है।
पुराणों के अनुसार व्यक्ति की आत्मा प्रारंभ में अधोगति होकर पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, पशु-पक्षी योनियों में विचरण कर ऊपर उठती जाती है और अंत में वह मनुष्य वर्ग में प्रवेश करती है। मनुष्य अपने प्रयासों से देव या दैत्य वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकता है। वहां से पतन होने के बाद वह फिर से मनुष्य वर्ग में गिर जाता है। यदि आपने अपने कर्मों से मनुष्य की चेतना के स्तर से खुद को नीचे गिरा लिया है तो आप फिर से किसी पक्षी या पशु की योनी में चले जाएंगे। यह क्रम चलता रहता है। अर्थात व्यक्ति नीचे गिरता या कर्मों से उपर उठता चला जाता है।
उपनिषदों के अनुसार एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है। यह सबसे कम समयावधि है। सबसे ज्यादा समायावधि है 30 सेकंड। परंतु पुराणों के अनुसार यह समय लंबा की हो सकता है 3 दिन, 13 दिन, सवा माह या सवाल साल। इससे ज्यादा जो आत्मा नया शरीर धारण नहीं कर पाती है वह मुक्ति हेतु धरती पर ही भटकती है, स्वर्गलोक चली जाती है, पितृलोक चली जाती है या अधोलोक में गिरकर समय गुजारती है।