संधिकाल क्या होता है पहले यह जानना जरूर है तभी आप समझ पाएंगे कि क्यों उसमें निम्नलिखित सावधानियां रखना चाहिए। दरअसल, किसी समय का परिवर्तन काल संधि काल होता है जैसे रात के बाद दिन प्रारंभ होता है, लेकिन दोनों के बीच जो काल होता है उसे संधिकाल कहते हैं।
रात और दिन में मुख्यत: दो संधियां तो हम देख सकते हैं जैसे प्रात: काल और संध्याकाल लेकिन बाकी की संधियों का हमें ज्ञान नहीं होता है। दिन और रात मिलाकर 8 प्रकार की संधि होती है जिसे अष्ट प्रहर कहते हैं। एक प्रहर एक घटी 24 मिनट की होता है। दिन के चार और रात के चार प्रहर मिलाकर कुल आठ प्रहर हुए। इसके अलावा दो पक्ष के बीच के काल को भी संधिकाल कहते हैं जैसे अमावस्या और पूर्णिमा। इसी तरह और भी कई तरह की संधियां होती हैं लेकिन हम यदि यहां मात्र तीन उषा, मध्यान्ह और सायंकाल की संधि में ही निम्नलिखित नियमों का पालन करेंगे तो हर तरह के संकटों से बचे रहकर सुख और समृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं।
दिन के चार प्रहर:- पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह और सायंकाल।
रात के चार प्रहर:- प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा।
हालांकि ज्योतिष ने दिनमान को मोटेतौर पर तीन भागों में बांटा है:- प्रात:काल, मध्याह्न और सायंकाल। इस अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त के समय के काल को मुख्य संधिकाल माना गया है। सूर्योदय के समय दिन का पहला प्रहर प्रारंभ होता है जिसे पूर्वान्ह कहा जाता है। दिन का दूसरा प्रहर जब सूरज सिर पर आ जाता है तब तक रहता है जिसे मध्याह्न कहते हैं। इसके बाद अपरान्ह (दोपहर बाद) का समय शुरू होता है, जो लगभग 4 बजे तक चलता है। 4 बजे बाद दिन अस्त तक सायंकाल चलता है। फिर क्रमश: प्रदोष, निशिथ एवं उषा काल।
संधिकाल में अनिष्ट शक्तियां प्रबल होने के कारण इस काल में निम्नलिखित बातें निषिद्ध बताई गई हैं:-
1.सोना
2.सहवास करना
3.खाना-पीना
4.यात्रा करना
5.असत्य बोलना
6.क्रोध करना
7.शाप देना
8.झगड़े करना
9.गालियां देना या अभद्र बोलना
10.शपथ लेना
11.धन लेना या देना
12.रोना या जोर-जोर से हंसना
13.वेद मंत्रों का पाठ करना
14.कोई शुभ कार्य करना
15.चौखट पर खड़े होना
16.किसी भी प्रकार का शोर-शराब करना
उपरोक्त नियम का पालन नहीं करने से जहां एक ओर बरकत चली जाती है वहीं व्यक्ति कई तरह के संकटों से घिर जाता है। संध्या काल में शनि, राहु और केतु के साथ ही शिव के गण सक्रिय रहते हैं।