Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इनकी पूजा करेंगे तो पछताएंगे, जीवन व्यर्थ हो जाएगा सिद्ध

हमें फॉलो करें इनकी पूजा करेंगे तो पछताएंगे, जीवन व्यर्थ हो जाएगा सिद्ध

अनिरुद्ध जोशी

हिन्दू धर्म में ईश्‍वर आराधना के प्रकार हैं- संध्यावंदन-संध्योपासना, प्रार्थना-आराधना, ध्यान-साधना, कीर्तन-भजन और पूजा-आरती। सभी का अलग अलग महत्व है। जहां तक सवाल पूजा और आरती का है तो यह किस की करना चाहिए और किसकी नहीं यह समझना जरूरी है।
 
 
प्राचीनकाल में कई तरह की आलौकिक जातियां होती थीं। जैसे- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, चारण, भाट, किरात, रीछ, नाग, विद्‍याधर, मानव, वानर आदि। कालांतर में देवी और देवताओं को छोड़कर सभी की पूजा कर प्रचलन हो चला। इसके अलावा बीच बीच में और भी कई लोगों की पूजा कर प्रचलन बढ़ता गया। शास्त्रों में ईश्‍वर, देवी-देवता और ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के अवतारों की पूजा और आरती का ही प्रचलन है बाकी सभी का निषेध है। आओ जानते हैं और किनकी पूजा करते हैं और क्यों नहीं करना चाहिए।
 
अधिकतर हिन्दू ईश्वर, परमेश्वर, ब्रह्म या भगवान को छोड़कर तरह-तरह की प्राकृतिक एवं सांसारिक वस्तुएं, ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवता, नाग, नदि, झाड़, पितर और गुरुओं की पूजा करते रहते हैं। निश्चित ही यह उनके मानसिक पतन का उदाहरण ही है। भटके हुए और धर्म को नहीं जानने वाले लोग ही दर्गा, समाधि और सड़क के किनारे बैठे भैरू, पाल्या आदि महाराज के यहां माथा टेकते फिरते हैं।
 
 
1.पाल्या महाराज : आजकल बहुत से लोग सड़क किनारे के पाल्या महाराज को पूजने लगे हैं। दरअसल, जबकि किसी हिंदू की किसी सड़क हादसे में मौत हो जाते हैं तो उस जगह या स्थान पर उक्त व्यक्ति की याद में एक ओटला बना दिया जाता है। उस पर एक पत्थर रखकर उसे सिंदूर से पोत दिया जाता है। मृतक के परिजन कुछ वर्षों तक वहां उसकी बर्सी या तिथि पर अगरबत्ती आदि लगाने आते रहते हैं बाद में यह सिलसिला बंद हो जाता है तो स्थानीय लोग इसे भैरू महाराज का स्थान मानकर वहां पूजा अर्चना शुरू कर देते हैं। कालांतर में सड़कर किनारे के ऐसे कई स्थान अब मंदिर का रूप ले चुके हैं। इसी तरह जब कोई मुस्लिम किसी सड़क हादसे में मरता है तो वहां दर्गाह बना दी जाती है।
 
 
2.सिद्धों की समाधि या दर्गाह : नागा साधु, नाथ संप्रदाय, बैरागी समाज और गोस्वामी समाज के लोग अपने मृतकों का दाह संस्कार नहीं करते। वे उनकी समाधि देते हैं। पहले उनके अलग समाधि स्थान होते हैं। बाद में जिस तरह कब्रिस्तान के लिए भूमि दी जाती है उस तरह उन्हें भूमि देना बंद कर दिया गया। अब मजबूरी में ये लोग अपने अपने समाज की निजी भूमि पर समाधि देकर वहां एक ओटला बनाते हैं जिसके ऊपर एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित कर दिया जाता है। कालांतर में यही समाधि स्थल शिव मंदिरों में बदल गए। कालांतर में उनमें से बहुत से समाधि स्थलों ने दर्गाह का स्वरूप अपना लिया है। आज ऐसे कई संत हैं जिनके समाधि स्थलों पर मेला लगता है।
 
मध्यकाल में जब सुफी लोग आते थे तो वे शहर या गांव के बहार ही डेरा डाल कर रहते थे। वहीं बाद में उनके इंतकाल के बाद उनकी दर्गाह बना दी जाती थी। अधिकतर दर्गाह या कब्रें आपको शहर या गांव की सीमा में मिलेंगी। इसके पीछे और भी कई कारण हैं। आजकल हिन्दू कई दर्गाओं पर जा कर माथा टेकता है जो कि धर्मसम्मत नहीं है।
 
3.छत्रियां : उल्लेखनीय है कि देश में ऐसी कई छत्रियां या स्मारक हैं जो किसी राजा महाराजा के समाधि स्थल है। मध्यकाल में कब्रिस्तान, श्मशान या समाधि स्थल शहर के बाहर होते थे, लेकिन आबादी बढ़ने और शहरीकरण के चलते अब ये सभी शहर के भीतर होकर उनमें से कई तो समाप्त हो गए। बस वहीं कब्रें, समाधि आदि बच गए जिनकी देखरेख होती रही या जो आकार प्रकार में भव्य थे। सेठ-साहूकार या मालदार लोग अपने मृतकों की कब्रें या समाधि अच्छी बनवा देते थे।
 
4.सती मंदिर : सती मंदिरों का निर्माण मध्यकाल में हुआ जबकि इस्लामिक आक्रांताओं ने भारत पर हमला किया था। उस काल में आक्रांता लोग महिलाओं को लूटकर अरब ले जाते थे या राजाओं के मारे जाने के बाद उनकी रानियां जौहर की रस्म अदा करती थी अर्थात या तो कुएं में कूद जाती थी या आग में कूदकर जान दे देती थी। हिन्दुस्तान पर विदेशी हमलावरों ने जब आतंक मचाना शुरू किया और पुरुषों की हत्या के बाद महिलाओं का अपहरण करके उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू किया तो बहुत-सी महिलाओं ने उनके हाथ आने से, अपनी जान देना बेहतर समझा। उस काल में भारत में आक्रांताओं द्वारा सिंध, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान आदि के छत्रिय या राजपूत क्षेत्रों पर आक्रमण किया जा रहा था।
 
उल्लेखनीय है कि 'जौहर' किए गए उस स्थान पर एक मंदिर बना दिया जाता था। बाद में वही मंदिर पवित्र स्थान इसलिए बन गया क्योंकि महिलाओं ने बलिदान दिया था। इन पवित्र मंदिरों में उक्त शहीद महिला को देवी मानकर पूजा जाता है। राजस्थान में ऐसे कई मंदिर है। हमारे उन मंदिरों से कोई विरोध नहीं है। लेकिन यहां यह कहना जरूरी होगा कि वे मंदिर की जगह हमारे इतिहास के स्मारक या प्रतीक है। पविस्त्र स्थान है।
 
यदि आप भी किसी समाधि, कब्र या पाल्या महाराज के यहां माथा टेकने जा रहे हैं। अगरबत्ती लगा रहे हैं तो निश्चित ही जानिए आप सही मार्ग पर नहीं हैं। हालांकि यह आपका चयन है, लेकिन ऐसा करके आप मृतकों, भूतों और आत्माओं के पूजक ही माने जाएंगे। हो सकता है कि आपको इससे तात्कालिक लाभ मिले।  
 
गुरु की पूजा : बहुत से हिन्दू अपने अपने गुरुओं की पूजा करते हैं। कई लोग तो ऐसे है जिन्होंने अपने जिंदा गुरु की आरती और चालीसा बना ली है और वे उनकी आरती उतारते हैं। इसे ईश्‍वर को छोड़कर व्यक्ति पूजा कहते हैं जोकि हिन्दू धर्म में निषेध है।
 
नेता और अभिनेताओं की पूजा : बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने चहेते नेता और अभिनेताओं के मंदिर बना रखे हैं और वे वहां बकायदा उनकी देवी और देवताओं की तरह पूजा आरती करते हैं। यह मानसिक पतन ही है। सचिन तेंदुलकर, रजनीकांत, अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी और सोनिया गांधी के मंदिरों के बारे में तो आपने सुना ही होगा। ऐसा मंदिर बनाकर उसमें पूजा करने वाले हिन्दू धर्म का अपमान ही कर रहे हैं।
 
 
अन्य पूजाएं : आपने कर्ण पिशाचिनी का नाम तो सुना ही होगा। यह कोई देवी नहीं है। पिशाचिनी पूजा या साधना में कर्ण पिशाचिनी, काम पिशाचिनी आदि का नाम प्रमुख है। पिशाच शब्द से यह ज्ञात होता है कि यह किसी खतरनाक भूत या प्रेत का नाम है। यह पूजा या साधनाएं भी तंत्र के अंतर्गत आती है। इसके अलावा योगिनी, सिद्ध, चारण, पितर, ग्रह-नक्षत्र, यक्ष और यक्षिणी, अप्सरा, वीर या बीर, गंधर्व, नाग, किन्नर, नायिका, डाकिनी-शाकिनी, विद्याधर, सिद्ध, दैत्य, दानव, राक्षस, गुह्मक, भूत, वेताल, अघोर और रावण आदि की भी लोग पूजा करते हैं जो कि अनुचित है।
 
क्यों नहीं करते उपरोक्त की पूजा या आरती?
 
''हिन्दू धर्म में मृतकों, भूतों की उपासना करने को तामसी (निकृष्ट) बताया है और केवल ईश्वर की शरण में जाने को कहा है।'':- 
 
भूतान्प्रेत गणान्श्चादि यजन्ति तामसा जना।
तमेव शरणं गच्छ सर्व भावेन भारतः-गीता।। 17:4, 18:62
अर्थात : भूत प्रेतों की उपासना तामसी लोग करते हैं। हे भारत तुम हरेक प्रकार से ईश्वर की शरण में जाओ।
 
.....जो सांसारिक इच्छाओं के अधिन हैं उन्होंने अपने लिए ईश्वर के अतिरिक्त झूठे उपास्य बना लिए है। वह जो मुझे जानते हैं कि मैं ही हूं, जो अजन्मा हूं, मैं ही हूं जिसकी कोई शुरुआत नहीं, और सारे जहां का मालिक हूं।- भगवद गीता
 
भगवान कृष्ण भी कहते हैं- 'जो परमात्मा को अजन्मा और अनादि तथा लोकों का महान ईश्वर, तत्व से जानते हैं वे ही मनुष्यों में ज्ञानवान है। वे सब पापों से मुक्त हो जाते हैं। परमात्मा अनादि और अजन्मा है, परंतु मनुष्‍य, इतर जीव-जंतु तथा जड़ जगत क्या है? वे सब के सब न अजन्मा है न अनादि। परमात्मा, बुद्धि, तत्वज्ञान, विवेक, क्षमा, सत्य, दम, सुख, दुख, उत्पत्ति और अभाव, भय और अभय, अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, कीर्ति, अप‍कीर्ति ऐसे ही प्राणियों की नाना प्रकार की भावनाएं परमात्मा से ही होती है।-भ. गीता-10-3,4,5।
 
व्याख्‍या : अर्थात भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य उस परमात्मा को अजन्मा और अनादि अर्थात जिसने कभी जन्म नहीं लिया और न ही जिसका कोई प्रारम्भ है तो अंत भी नहीं, तब वह निराकार है ऐसा जानने वाले तत्वज्ञ मनुष्य ही ज्ञानवान है। ऐसा जानने या मानने से ही सब पापों से मुक्ति मिल जाती है। परंतु मनुष्य, जीव-जंतु और दिखाई देने वाला यह समस्त जड़-जगत ईश्वर नहीं है, लेकिन यह सब ईश्वर के प्रभाव से ही जन्मते और मर जाते हैं। इनमें जो भी बुद्धि, भावनाएं, इच्छाएं और संवेदनाएं होती है वह सब ईश्‍वर की इच्छा से ही होती है।
 
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌॥- (गीता अध्याय 9 श्लोक 25)
 
भावार्थ : देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा (परमेश्वर का) पूजन करने वाले भक्त मुझको (परमेश्वर को) ही प्राप्त होते हैं इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता॥

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रविवार को पहनें सूर्य का खूबसूरत रत्न माणि‍क,जानिए क्यों व किसके साथ पहनें?