भगवान महेश को ही महेश्वर कहा जाता है। यह त्रिदेवों में से एक है। आओ जानते हैं कि भगवान महेश का रहस्य क्या है।
1. हमेशा जब भी त्रिदेवों की बात होती है तो हम ब्रह्मा, विष्णु और महेश नाम लेते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और शिव या शंकर का नाम नहीं लेते हैं। प्रचलन में ब्रह्मा, विष्णु और महेश नाम ही है। मतलब त्रिदेवों में एक है भगवान महेश।
2. शिवपुराण के अनुसार कालरूपी ब्रह्म सदाशिव और अम्बिका से ने निश्चय करके वामांग पर अमृत मल दिया जिसके चलते विष्णु की उत्पत्ति हुई। विष्णु को उत्पन्न करने के बाद सदाशिव और शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके ब्रह्माजी अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया और तुरंत ही विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया। इस प्रकार उस कमल से पुत्र के रूप में हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा) का जन्म हुआ।
एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों में सर्वोच्चता को लेकर लड़ाई हो गई, तो बीच में कालरूपी एक स्तंभ आकर खड़ा हो गया। तब दोनों ने पूछा- 'प्रभो, सृष्टि आदि 5 कर्तव्यों के लक्षण क्या हैं? यह हम दोनों को बताइए।'
तब ज्योतिर्लिंग रूप काल ने कहा- 'पुत्रो, तुम दोनों ने तपस्या करके मुझसे सृष्टि (जन्म) और स्थिति (पालन) नामक दो कृत्य प्राप्त किए हैं। इसी प्रकार मेरे विभूतिस्वरूप रुद्र और महेश्वर ने दो अन्य उत्तम कृत्य संहार (विनाश) और तिरोभाव (अकृत्य) मुझसे प्राप्त किए हैं, परंतु अनुग्रह (कृपा करना) नामक दूसरा कोई कृत्य पा नहीं सकता। रुद्र और महेश्वर दोनों ही अपने कृत्य को भूले नहीं हैं इसलिए मैंने उनके लिए अपनी समानता प्रदान की है।'
सदाशिव कहते हैं- 'ये (रुद्र और महेश) मेरे जैसे ही वाहन रखते हैं, मेरे जैसा ही वेश धरते हैं और मेरे जैसे ही इनके पास हथियार हैं। वे रूप, वेश, वाहन, आसन और कृत्य में मेरे ही समान हैं।'
3. अब यहां 7 आत्मा हो गईं- ब्रह्म (परमेश्वर) से सदाशिव, सदाशिव से दुर्गा। सदाशिव-दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, महेश्वर का जन्म हुआ।
4. महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के 4 संप्रदाय बतलाए गए हैं- शैव, पाशुपत, कालदमन और कापालिक।
5. नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती (महेश्वर) नामक नगर है। प्राचीनकाल में जहां का राजा सहस्रबाहु था।
6. कहते हैं कि महेश जो भगवान शंकर का महिष रूप है। इसीलिए उन्हें महेश कहा जाता है। बैल को महिष भी कहते हैं जिसके चलते भगवान शंकर का नाम महेष भी है।
7. शिवजी के द्वारपाल का एक नाम : कैलाश पर्वत के क्षेत्र में उस काल में कोई भी देवी या देवता, दैत्य या दानव शिव के द्वारपाल की आज्ञा के बगैर अंदर नहीं जा सकता था। ये द्वारपाल संपूर्ण दिशाओं में तैनात थे। इन द्वारपालों के नाम हैं- नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
8. पंच कैलाश में से एक मणि महेश कैलाश (हिमाचल भारत) : यह स्थान हिमाचल प्रदेश में बुद्धिल घाटी में भरमौर से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। हिमाचल की पीर पंजाल की पहाड़ियों के पूर्वी हिस्से में तहसील भरमौर में स्थित है यह प्रसिद्ध तीर्थ हिमाचल के चंबा शहर से करीब 82 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मणिमहेश में भगवान शिव मणि के रूप में दर्शन देते हैं। इसी कारण इसे मणिमहेश कहा जाता है। धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर भी मानसरोवर की तरह एक झील है जिसे मणिमहेश झील कहा जाता है। झील कैलाश पीक (18,564 फीट) के नीचे13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। शिवजी ने इस पर्वत क्षेत्र में वर्षों तक तपस्या की थी।