देहरादून। बैसाखी पर्व पर गढ़वाल हिमालय स्थित पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पंचांग गणना के आधार पर द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर धाम के कपाट खोलने की तिथि तय की गई, जबकि मार्कण्डेय मंदिर मक्कूमठ में तृतीय केदार तुंगनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि पंचांग गणना से तय की गई।गणना के अनुसार द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर धाम के कपाट 24 मई एवं तृतीय केदार तुंगनाथ धाम के कपाट 17 मई को विधि-विधान के साथ खोले जाएंगे।
मद्महेश्वर मंदिर : मद्महेश्वर मंदिर बारह हजार फीट की ऊंचाई पर चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित है। मद्महेश्वर द्वितीय केदार है, यहां भगवान शंकर के मध्य भाग के दर्शन होते हैं।24 मई को मद्महेश्वर मन्दिर के कपाट खुलेंगे। दक्षिण भारत के शैव पुजारी केदारनाथ की तरह यहां भी पूजा कराते हैं। मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम के रूप में की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता है कि यहां का जल पवित्र है। इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। शीतकाल में छह माह यहां पर भी कपाट बंद होते हैं।
कपाट खुलने पर यहां पूजा-अर्चना होती है। मद्महेश्वर जाने के लिए रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ तक जाना होता है। रुद्रप्रयाग से बसें और जीपें मिलती हैं। ऊखीमठ में मुख्य बाजार से सीधा रास्ता उनियाना जाता है जो आजकल मद्महेश्वर यात्रा का आधार स्थल है। उनियाना से मद्महेश्वर की दूरी 23 किलोमीटर है।
समुद्र तल से लगभग 3300 मीटर की ऊंचाई पर,मद्महेश्वर एक तरह का बुग्याल है।यहां केवल यात्रा सीजन में ही जाया जा सकता है चार धाम यात्रा सीजन के अलावा यदि वहां जाना हैं तो रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से इसकी अनुमति लेनी पड़ती है।
तुंगनाथ मंदिर : पंचकेदारों में शामिल तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ धाम भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां भगवान शिव के हृदयस्थल और शिव की भुजा की आराधना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बहुत रमणीक स्थल है।
कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण यहां के पुजारी होते हैं। शीतकाल में यहां भी छह माह कपाट बंद होते हैं। शीतकाल के दौरान मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है।