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रहस्यों से भरा है असीरगढ़ का गुप्तेश्वर महादेव मंदिर, अश्वत्थामा गुप्त रूप से आज भी करते हैं यहां महादेव की पूजा

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WD Feature Desk

, बुधवार, 19 फ़रवरी 2025 (16:29 IST)
Gupteshwar Mahadev Temple Asirgarh Fort: मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर में असीरगढ़ नाम का एक किला है। वैसे तो इतिहास में इस किले के निर्माण को लेकर कोई स्पष्ट तथ्य नहीं मिलता है लेकिन कुछ विद्वानों का मत है कि इस किले को 15वीं शताब्दी में अहीर राजा ‘असा अहीर’ ने बनवाया था। इसी किले में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसे गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर में हर रात महाभारत के अमर पात्र अश्वत्थामा भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।
 
अश्वत्थामा और उनका शाप
अश्वत्थामा महाभारत में कौरव के योद्धा थे। युद्ध में उनके पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु हो गई थी। युद्ध खत्म होने के बाद अश्वत्थामा ने रात के समय पांडव पुत्रों की हत्या कर दी थी। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को शाप दिया था कि कलयुग खत्म होने तक अश्वत्थामा की मृत्यु नहीं होगी और उन्हें तब तक हर तरह की बीमारी और पीड़ा को सहना पड़ेगा और उनके जख्म और दर्द भी कभी नहीं भरेंगे। अश्वत्थामा के माथे पर बचपन से एक दिव्य मणि भी मौजूद थी, जिसे श्री कृष्ण ने निकाल दिया था।
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असीरगढ़ किले में अश्वत्थामा
कहा जाता है कि श्राप के बाद अश्वत्थामा जगह-जगह भटक रहे हैं और भगवान शिव की पूजा करने के लिए वह असीरगढ़ किले में मौजूद इस शिव मंदिर में हर रात आते हैं। मान्यता है कि वे किले के पास तालाब में स्नान कर किले में मौजूद शिव मदिर में पूजा करने आते हैं। आश्चर्य की बात है कि रात के समय मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया जाता है, लेकिन जब सुबह जैसे ही दरवाजे को खोला जाता है तो मंदिर के शिवलिंग में हर रोज ताजे फूल और चंदन चढ़ाए हुए मिलते हैं। 
 
स्थानीय लोगों का दावा
किले के आसपास के गांव के कुछ लोग बताते हैं कि उनके बुजुर्गों ने अश्वत्थामा को देखे जाने की बात मानी है और उनका कहना है कि कई बार उन्हें 10-12 फुट का इंसान देखने को मिला है, जिसके माथे और शरीर में बहुत से जख्म हैं और वह जख्म को ठीक करने के लिए लोगों से तेल और हल्दी मांगता है।
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गुप्तेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य है आज भी अनसुलझा
शिवलिंग में रोजाना नए फूल के चढ़ावे के रहस्य को सुलझाने के लिए बहुत से न्यूज चैनल के रिपोर्टर्स ने भी किले में रुककर रहस्य को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें अश्वत्थामा कभी नहीं दिखाई दिए, लेकिन शिवलिंग में सुबह नया फूल और चंदन देखने को जरूर मिलता था। माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना करते हैं। असीरगढ़ किले का रहस्य आज भी लोगों के लिए एक रहस्य बना हुआ है।
 
कैसे पहुंचें असीरगढ़
असीरगढ़ देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। अगर आप रेल मार्ग से आन चाहते हैं तो सबसे नजदीकी स्टेशन खंडवा स्टेशन है। असीरगढ़ क़िला बुरहानपुर से लगभग 20 किमी. की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र सतह से 750 फ़ुट की ऊँचाई पर स्थित है। बुरहानपुर तक आप बस या टैक्सी से आसानी से पहुँच सकते हैं।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
 

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