रुद्राक्ष भगवान शिव के मनोहर नेत्रपुटों से निकले वो वरदानस्वरूप अश्रुरूपी फल है जो मनुष्य की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। रुद्राक्ष का वर्णन विभिन्न वैदिक ग्रन्थों में यथा पद्मपुराण , स्कन्दपुराण, शिवपुराण इत्यादि में मिलता है।
शिवपुराण में भगवान शिव ने स्वयं रुद्राक्ष के महत्व का वर्णन माता पार्वती से किया है। मुख्य रूप से 14 प्रकार के रुद्राक्ष पाए जाते हैं, परन्तु इनके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट प्रकार के रुद्राक्ष जैसे गौरीशंकर रुद्राक्ष , गणेश रुद्राक्ष , निरमुखी रुद्राक्ष , गर्भ-गौरी रुद्राक्ष भी मिलते हैं जो किसी विशेष मनोकामना को पूर्ण करते हैं।
1 - यदि आप निःसन्तान हैं और सन्तान प्राप्ति में बाधा हो रही है।
2 - अनायास गर्भपात हो रहा है।
3 - रक्त की कमी अथवा अन्य किसी कारण से गर्भ धारण करने में कठिनाई हो रही है।
तो निश्चित ही आपके लिए किसी चमत्कार अथवा वरदान से कम नही है गर्भ-गौरी रुद्राक्ष।
गर्भ-गौरी रुद्राक्ष में 2 रुद्राक्ष होते हैं जो एक दूसरे से जुड़े होते हैं जिनमें से एक रुद्राक्ष छोटा होता है। इन्हें माता पार्वती और गणेशजी का प्रतीक माना जाता है।
सन्तान प्राप्ति के लिए इसे लाल रंग के धागे में गले में पहनना चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने का सर्वाधिक शुभ दिन महाशिवरात्रि है, हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव और पार्वती जी का शुभविवाह हुआ था। इस वर्ष 1 मार्च 2022 को महाशिवरात्रि का पावन दिन है। इस वर्ष 1 मार्च को प्रातः 3 बजकर 16 मिनट से चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ होगी जो 2 मार्च को 1 बजे समाप्त होगी।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधिविधान से व्रत का पूर्ण पालन करते हुए विशेष संकल्प लेकर ॐ नमः शिवायः के जप कर गर्भ गौरी रुद्राक्ष को पहनने से मनुष्य की सन्तान सम्बन्धी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
प्रसव सम्बन्धी कठिनाइयों के लिए तथा नवजात शिशु के उत्तम स्वास्थ्य के लिए भी इसे धारण किया जाता है।
उक्त जानकारी शास्त्रों में वर्णित तथ्यों पर आधारित है....पाठक स्वविवेक और विशेषज्ञ से परामर्श के बाद ही निर्णय लें...