Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
Wednesday, 23 April 2025
webdunia

महाशिवरात्रि पर पढ़ी और सुनी जाती हैं ये खास कथाएं (पढ़ें 3 पौराणिक कहानी)

Advertiesment
हमें फॉलो करें Mahashivratri Vrat Katha 2025

WD Feature Desk

, बुधवार, 12 फ़रवरी 2025 (16:09 IST)
Mahashivratri Story in Hindi: हिन्दू पुराणों में महाशिवरात्रि को लेकर 1-2 नहीं बल्कि कई कथाएं प्रचलित हैं। यहां आपके लिए प्रप्तुत है शिवरात्रि के पावन पर्व पर 3 विशेष कहानियां...ALSO READ: Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि के 5 खास अचूक उपाय, आजमाएंगे तो मिलेगा अपार लाभ
 
1. कालकूट विष की कथा : महाशिवरात्रि मनाने के पीछे पुराणों में एक कहानी मिलती है और इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवता गण एवं असुर पक्ष अमृत प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उक्त भयंकर विष को अपने शंख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। 
 
भगवान विष्णु अपने भक्तों के सभी संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ/ गले में ही रोक कर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में 'नीलंकठ' के नाम से प्रसिद्ध हुए।ALSO READ: महाकुंभ से लौट रहे हैं तो साथ लाना ना भूलें ये चीजें, घर आती है समृद्धि
 
2. ब्रह्मा-विष्णु का विवाद : शिव पुराण में वर्णित एक अन्य कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी व विष्णु जी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।
 
अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णु जी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए, परंतु उन्होंने आकर विष्णु जी से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे और उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी पुष्प का इस्तेमाल नहीं होगा।
 
चूंकि यह फाल्गुन महीने का चौदहवां दिन था, जिस दिन शिव जी ने पहली बार खुद को शिवलिंग के रूप में प्रकट किया था। इस दिन को बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता है तथा इसी कारण इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिव की पूजा करने से उस व्यक्ति को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।ALSO READ: इस मंदिर में नागा साधु निकालते हैं महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की विशेष बारात, जानिए कहां है ये मंदिर
 
3. शिवभक्त की कथा : एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक आदमी जो शिव का परम भक्त था, वह एक बार लकड़ियां काटने के लिए जंगल में गया और रास्ता भटक गया। बहुत रात हो चुकी थी और उसे घर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था, क्योंकि वह जंगल में काफी अंदर चला गया था इसलिए जानवरों के डर से वह एक पेड़ पर चढ़ गया।
 
लेकिन उसे डर था कि अगर वह सो गया तो पेड़ से गिर जाएगा और जानवर उसे खा जाएंगे इसलिए जागते रहने के लिए वह रातभर शिव जी नाम लेकर पत्तियां तोड़कर गिराता रहा। जब सुबह हुई तो उसने देखा कि उसने रातभर में हजार पत्तियां तोड़कर शिवलिंग पर गिराई हैं और जिस पेड़ की पत्तियां वह तोड़ रहा था वह बेल का पेड़ था। 
 
अनजाने में ही वह रातभर शिव जी की पूजा कर रहा था जिससे खुश होकर शिव जी ने उसे आशीर्वाद दिया। महाशिवरात्रि के अवसर पर यह कथा पढ़ने और सुनने का विशेष महत्व माना गया है।ALSO READ: महाशिवरात्रि विशेष : शिव पूजा विधि, जानें 16 चरणों में

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दक्षिण भारत की काशी के नाम से प्रसिद्ध है आंध्रप्रदेश का श्रीकालहस्ती मंदिर, होती है शिव के कर्पूर स्वरुप की पूजा