-पं. प्रहलाद कुमार पंड्या
आशुतोष, भवानीशंकर भगवान शिव परम तपस्वी एवं ज्ञान, वैराग्य, भक्ति तथा योग साधना के शीर्षदेव हैं। उनकी आराधना से धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की सहज प्राप्ति होती है। प्रत्येक मनुष्य में शिव तत्व उपस्थित है और इसे शिव के प्रति अनुराग, भक्ति एवं आराधना से जागृत किया जा सकता है। आराधक उनके विभिन्न स्वरूपों को ध्यान में रखकर अपने को शिवमय कर सकता है।
तपस्या
भगवान सदैव ही एकांत एवं निर्जन स्थान पर एकाग्र भाव से तपश्चर्या एवं ध्यान में लीन रहते हैं। इससे व्यक्ति सांसारिक भावों से दूर हो जाता है। इसके कारण संसारजनित विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं अहंकार से मुक्ति मिलती है। यह जनकल्याण का प्रथम चरण है।
न्यूनतम आवश्यकताएं
भगवान शिव शरीर पर भस्म धारण करते हैं तथा मृगछाल पहनते हैं। हाथ में जल भरने हेतु कमंडल रखते हैं तथा खड़ाऊं धारण किए हैं। उनकी आवश्यकताएं अत्यंत सीमित हैं। इस मनोभावना के कारण व्यक्ति त्याग और असंग्रह की ओर प्रवृत्त होता है।