Lunar Eclipse 2025: साल 2025 में 7 सितंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह शनि देव की राशि और उनके नक्षत्र में लगने जा रहा है। इसे खग्रास चंद्र ग्रहण यानी पूर्ण चंद्र ग्रहण कहा जा रहा है जो भारत में नजर आएगा। इसी दिन से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो रहे हैं। इस दिन पूर्णिमा का श्राद्ध रहेगा। जानिए कि चंद्रग्रहण के दौरान श्राद्ध पक्ष में किस समय और मुहूर्त में करना चाहिए तर्पण, पिंडदान और पंचबलि कर्म?
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 07 सितम्बर 2025 को 01:41 AM (रात) बजे।
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 07 सितम्बर 2025 को 11:38 PM (रात) बजे।
7 सितंबर 2025 रविवार को पूर्णिमा का श्राद्ध रहेगा। इसी दिन 12 बजकर 57 मिनट से चंद्रग्रहण का सूतक काल प्रारंभ हो जाएगा। सूतकाल में पूजा पाठ, श्राद्ध कर्म, भोजन आदि कुछ भी नहीं करते हैं। ऐसे में इस दिन कुतुप मुहूर्त में तर्पण, पिंडदान और पंचबलि कर्म करें। पूर्णिमा श्राद्ध को श्राद्धि पूर्णिमा तथा प्रोष्ठपदी पूर्णिमा श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त करने वाले जातकों का श्राद्ध किया जाता है।
कुतुप मुहूर्त काल समय- दिन में 11:54 से 12:44 तक यह मुहूर्त रहेगा। पहले से ही तैयारी करके इसमें श्राद्ध कर्म कर लें।
1. तर्पण: इसके लिए पितरों को जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खास मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करना होता है। तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह और परदादा को भी 3 बार जल दें। इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर जल दें। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
2. पिंडदान: चावल को गलाकर और गलने के बाद उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल पिंड बनाए जाते हैं। पहले तीन पिंड बनाते हैं। पिता, दादा और परदादा। यदि पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं। जनेऊ को दाएं कंधे पर पहनकर और दक्षिण की ओर मुख करके उन पिंडो को पितरों को अर्पित करने को ही पिंडदान कहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि चावल से बने पिंड से पितर लंबे समय तक संतुष्ट रहते हैं। पिंड को हाथ में लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए, 'इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा' के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी अंगुली के मध्य से छोड़ें। पिंडदान करने के बाद पितरों का ध्यान करें और पितरों के देव अर्यमा का भी ध्यान करें। अब पिंडों को उठाकर ले जाएं और उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।
3. पंचबलि: पिंडदान के बाद पंचबलि कर्म करें। अर्थात पांच जीवों को भोजन कराएं। गोबलि, श्वान बलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि। गोबलि अर्थात गाय को भोजन, श्वान बलि अर्थात कुत्ते को भोजन, काकबलि अर्थात कौवे को भेजन, देवादिबलि अर्थात देवी और देवताओं को भोग लगाना, पिपलिकादि बलि अर्थात पीपल के पेड़ में भोजन को अर्पण करना। इस भोजन को चींटी और अन्य जंतु खाते हैं।