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Shradh Paksha 2025: श्राद्ध पक्ष में द्वितीया का श्राद्ध किस मुहूर्त में कैसे करें?

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WD Feature Desk

, सोमवार, 8 सितम्बर 2025 (12:13 IST)
Shradh Paksha: 16 दिनों तक चलते वाले इस पितृपक्ष में पितरों की शांति और मुक्ति के लिए तर्पण और पिंडदान किया जाता है। श्राद्ध पक्ष 07 सितंबर 2025 से प्रारंभ हो गए हैं जो 21 सितंबर तक चलेंगे। 9 सितंबर द्वितीया तिथि का श्राद्ध है। 16 दिनों के श्राद्ध की इन तिथियों में उनका श्राद्ध तो किया ही जाता है जिनकी तिथि विशेष में मृत्यु हुई है इसी के साथ हर तिथि का अपना खास महत्व भी है। द्वितीया श्राद्ध कर्म से मिलती है प्रेतयोनि से मुक्ति। श्राद्ध कर्म हमेशा अभिजीत मुहूर्त अपराह्न काल, कुतुप काल या रोहिणी काल में करते हैं। 
 
द्वितीया तिथि प्रारम्भ- 08 सितम्बर 2025 को रात्रि 09:11 से।
द्वितीया तिथि समाप्त- 09 सितम्बर 2025 को शाम 06:28 तक।
 
द्वितीया तिथि श्राद्ध 09 सितंबर 2025 का शुभ मुहूर्त:-
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:53 से 12:43 तक।
कुतुप काल: दिन में 11:53 से 12:43 तक।
रोहिणी मुहूर्त: दोपहर 12:43 से 01:33 तक।
अपराह्न काल: दोपहर बाद 01:33 से 04:03 तक।
 
श्राद्ध पक्ष में द्वितीया तिथि में सत्तू और प्रार्थना का महत्व:
सत्तू: जिनका भी स्वर्गवास द्वितीया तिथि को हुआ है तो उनका श्राद्ध कर्म इस दिन करना चाहिए। दूसरे दिन के श्राद्ध के समय तिल और सत्तू के तर्पण का विधान है। सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर-पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें।
 
प्रार्थना: प्रार्थना में कहें कि मारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं। फिर उनके नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए जल सहित तिल मिश्रित सत्तू को अर्पित करें। फिर प्रार्थना करें कि 'ब्रह्मा से लेकर चिट्ठी पर्यन्त चराचर जीव, मेरे इस जल-दान से तृप्त हो जाएं।' तिल और सत्तू अर्पित करके प्रार्थना करने से कुल में कोई भी प्रेत नहीं रहता है।
 
श्राद्ध पक्ष में द्वितीया तिथि श्राद्ध विधि:-
  • द्वितीया श्राद्ध के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर धोती और जनेऊ पहनें। 
  • अंगुली में दरभा घास की अंगूठी पहनें। 
  • अब पहले से बनाया पिंड पितरों को अर्पित करें। 
  • अब बर्तन से धीरे धीरे पानी डालें। 
  • इस दिन भगवान विष्णु और यम की पूजा करें। 
  • इसके बाद तर्पण कर्म करें।
  • पितरों के लिए बनाया गया भोजन रखें और अंगूठे से जल अर्पित करें। 
  • इसके बाद भोजन को गाय, कौवे और फिर कुत्ते और चीटियों को खिलाएं।
  • अंत में ब्राह्मण भोज कराएं। 
  • इस दिन चाहें तो गीता पाठ या पितृसूत्र का पाठ भी पढ़ें।
  • यथाशक्ति सभी दान दें। 

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