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सर्वपितृ अमावस्या की रोचक पौराणिक कथा

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अनिरुद्ध जोशी

1. श्राद्ध पक्ष में सर्वपितृ अमावस्या का बहुत ही महत्व है। यह पितरों को विदा करने की अंतिम तिथि है। अगर कोई श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है। आओ इस तिथि के महत्व की पौराणिक कथा क्या है यह जानते हैं।
 
2. देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' जो सोमपथ लोक में निवास करते हैं। उनकी मानसी कन्या, 'अच्छोदा' नाम की एक नदी के रूप में अवस्थित हुई। मत्स्य पुराण में अच्छोद सरोवर और अच्छोदा नदी का जिक्र मिलता है जो कि कश्मीर में स्थित है।
 
अच्छोदा नाम तेषां तु मानसी कन्यका नदी॥ १४.२ ॥
अच्छोदं नाम च सरः पितृभिर्निर्मितं पुरा।
अच्छोदा तु तपश्चक्रे दिव्यं वर्षसहस्रकम्॥ १४.३ ॥
 
3. एक बार अच्छोदा ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर देवताओं के पितृगण अग्निष्वात्त और और बर्हिषपद अपने अन्य पितृगण अमावसु के साथ अच्छोदा को वरदान देने के लिए आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए। 
 
 
4. उन्होंने अक्षोदा से कहा कि हे पुत्री हम सभी तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हैं, इसलिए जो चाहो, वर मांग लो। लेकिन अक्षोदा ने अपने पितरों की तरफ ध्यान नहीं दिया और वह अति तेजस्वी पितृ अमावसु को अपलक निहारती रही। 
 
5. पितरों के बार-बार कहने पर उसने कहा, ‘हे भगवन, क्या आप मुझे सचमुच वरदान देना चाहते हैं?' इस पर तेजस्वी पितृ अमावसु ने कहा, ‘हे अक्षोदा वरदान पर तुम्हारा अधिकार सिद्ध है, इसलिए निस्संकोच कहो।' अक्षोदा ने कहा,‘भगवन यदि आप मुझे वरदान देना ही चाहते हैं तो मैं तत्क्षण आपके साथ रमण कर आनंद लेना चाहती हूं।'
 
 
6. अक्षोदा के इस तरह कहे जाने पर सभी पितृ क्रोधित हो गए। उन्होंने अक्षोदा को श्राप दिया कि वह पितृ लोक से पतित होकर पृथ्वी लोक पर जाएगी। पितरों के इस तरह श्राप दिए जाने पर अक्षोदा पितरों के पैरों में गिरकर रोने लगी। इस पर पितरों को दया आ गई। उन्होंने कहा कि अक्षोदा तुम पतित योनि में श्राप मिलने के कारण मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लोगी।
 
 
7. पितरों ने आगे कहा कि भगवान ब्रह्मा के वंशज महर्षि पाराशर तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे। तुम्हारे गर्भ से भगवान व्यास जन्म लेंगे। उसके उपरांत भी अन्य दिव्य वंशों में जन्म लेते हुए तुम श्राप मुक्त होकर पुन: पितृलोक में वापस आ जाओगी। पितरों के इस तरह कहे जाने पर अक्षोदा शांत हुई।
 
8. अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितरों ने सराहना की एवं वरदान दिया कि यह अमावस्या की तिथि 'अमावसु' के नाम से जानी जाएगी। जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न कर पाए वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्ध-तर्पण करके सभी बीते चौदह दिनों का पुण्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकते हैं। 
 
तभी से प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है और यह तिथि 'सर्वपितृ श्राद्ध' के रूप में भी मानाई जाती है।
 
9. उसी पाप के प्रायश्चित हेतु कालान्तर में यही अच्छोदा महर्षि पराशर की पत्नी एवं वेदव्यास की माता सत्यवती बनी थी। तत्पश्यात समुद्र के अंशभूत शांतनु की पत्नी हुईं और दो पुत्र चित्रांगद तथा विचित्र वीर्य को जन्म दिया था इन्हीं के नाम से कलयुग में 'अष्टका श्राद्ध' मनाया जाता है।

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