श्रावण मास विशेष : देश और विदेश में कहां-कहां है शिव की विशाल प्रतिमाएं
Tallest Lord Shiva Statues In World : श्रावण महीने में यदि आप घर बैठे ही भगवान शिव जी के दर्शन करना चाहते हैं तो यहां जानें देश-विदेश में स्थापित भगवान शिव जी की विशालकाय प्रतिमाओं के बारे में खास जानकारी।
यहां जानें भारतभर में स्थापित शिव की प्रतिमाएं : Tallest Lord Shiva Statues In India
शिव प्रतिमा (श्री नाथ द्वारा)
ऊंचाई- 351 फुट
राजस्थान में उदयपुर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर 351 फुट ऊंची बन रही यह प्रतिमा श्री नाथ द्वारा के गणेश टेकरी में स्थित है। इस शिव प्रतिमा के दर्शन आप 20 किमी की दूरी से ही कर सकते हैं।
मूर्ति नंबर 2
शिव मूर्ति, मुरुदेश्वरा (कर्नाटक, भारत)
ऊंचाई 37 मीटर, लगभग 123 फुट
विश्व की दूसरे नंबर की शिव मूर्ति अरब सागर के तट पर स्थित है। इस संपूर्ण क्षेत्र को मुरुदेश्वरा कहते हैं। बैठक मुद्रा में मुरुदेश्वर मंदिर के बाहर स्थापित शिव की इस मूर्ति की ऊंचाई 37 मीटर अर्थात लगभग 123 फुट है।
मुरुदेश्वर दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तहसील में अरब सागर के तट पर स्थित एक कस्बा है। कंदुका पहाड़ी पर तीन ओर से पानी से घिरा यह मुरुदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां भगवान शिव का आत्मलिंग स्थापित है जिसका संबंध रामायण काल से है।
मान्यता के अनुसार अमरता पाने हेतु रावण जब शिवजी को प्रसन्न करके उनका आत्मलिंग अपने साथ लंका ले जा रहा था तब रास्ते में इस स्थान पर आत्मलिंग को धरती पर रख दिए जाने के कारण स्थापित हो गया था।
मूर्ति नंबर 3
हर की पौड़ी, हरिद्वार (उत्तराखंड, भारत)
ऊंचाई 30.5 मीटर, लगभग 100 फुट
यह मूर्ति हरिद्वार स्थित गंगा नदी के तट पर हर की पौड़ी के पास स्थापित की गई है। यह मूर्ति खड़ी मुद्रा में है जबकि हरिद्वार के पास ऋषिकेश की मूर्ति बैठक मुद्रा में है। बताया जाता है कि बाढ़ के कारण ऋषिकेश की मूर्ति पानी में बह गई।
हर की पौड़ी भारत के सबसे पवित्र घाटों में एक है। कहा जाता है कि यह घाट विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। यहीं पर हर शाम हजारों दीपकों के साथ गंगा की आरती की जाती है। हर की पौड़ी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर मनसादेवी का मंदिर बना है। मंदिर तक जाने के लिए पैदल रास्ता है। मंदिर जाने के लिए रोप-वे भी है।
मूर्ति नंबर 4
शिवगिरि महादेव, बीजापुर, शिवपुर (कर्नाटक)
ऊंचाई 26 मीटर, लगभग 85 फुट
शिवगिरि महादेव की यह विशालकाय मूर्ति लगभग 85 फुट ऊंची है, जो बीजापुर जिले के शिवपुर स्थान पर सन् 2006 में स्थापित की गई थी। शिव की यह बैठी हुई प्रतिमा 2011 में स्थापित की गई है।
शिव मूर्ति नंबर 5
नागेश्वर महादेव, दारुकावन (गुजरात)
ऊंचाई 25 मीटर, 82 फुट
12 ज्योतिर्लिंगों में से गुजरात में 2 ज्योतिर्लिंग हैं- एक सोमनाथ महादेव और दूसरे नागेश्वर महादेव। यह मंदिर पहले बहुत छोटा था लेकिन बाद में इस मंदिर को भव्य रूप दिया टी सीरिज के निर्माता गुलशन कुमार ने।
मंदिर प्रांगण के बाहर भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति भूतल से 82 फुट ऊंची और चौड़ाई में 25 फुट चौड़ी है। इतनी ही ऊंचाई लिए एक मूर्ति मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में भी स्थापित है। ओंकारेश्वर में 12 ज्योतिर्लिंगों में से 1 लिंग है, यहीं पर ममलेश्वर महादेव का मंदिर भी है।
शिव मूर्ति नंबर 6
कचनार महादेव, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
ऊंचाई 76 फुट
मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के कचनार शहर में शिव मंदिर के पास स्थापित इस मूर्ति की ऊंचाई 76 फुट है। यहीं पर 12 ही ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां बनाई गई हैं। जबलपुर भेड़ाघाट वॉटर फाल, 64 योगिनी मंदिर और कान्हा नेशनल पार्क के लिए प्रसिद्ध है।
शिव मूर्ति नंबर 7
कैम्प फोर्ट शिव मूर्ति, एयरपोर्ट रोड, बेंगलुरु (कर्नाटक)
ऊंचाई 65 फुट
65 फुट ऊंची इस मूर्ति की स्थापना 1995 में हुई थी। इस मूर्ति में भगवान शिव पद्मासन की अवस्था में विराजमान हैं। इस मूर्ति की पृष्ठभूमि में कैलाश पर्वत, भगवान शिव का निवास स्थल तथा प्रवाहित हो रही गंगा नदी है।
शिव मूर्ति नंबर 8
बेलीश्वर महादेव, भंजनगर, जिला गंजम (ओडिशा)
ऊंचाई 61 फुट
भारतीय राज्य ओडिशा के भंजनगर में स्थित चंद्रशेखर महादेव मंदिर के पास स्थापित इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 61 फुट है। 6 मार्च 2013 को इस मूर्ति का अनावरण किया गया था।
मूर्ति नंबर 9
कैलाशनाथ महादेव, सांगा, जिला भक्तापुर (नेपाल)
ऊंचाई 45 मीटर, लगभग 143 फुट
विश्व में शिव की सबसे ऊंची मूर्ति नेपाल के चित्तपोल सांगा जिला भक्तापुर में स्थित है। खड़ी मुद्रा में इस मूर्ति का निर्माण कार्य 2004 में शुरू हुआ था और 2010 में यह मूर्ति बनकर तैयार हुई और 21 जून 2011 को इस मूर्ति का अनावरण किया गया।
इस मूर्ति को धनराज जैन परिवार ने लगभग 11 करोड़ की लागत से बनवाया था। श्री मनुराम वर्मा और नरेश कुमार वर्मा मूर्तिकार थे। इस मंदिर की विशालता को देखना बहुत अद्भुत है।
मूर्ति नंबर 10
नामची शिव प्रतिमा (सिक्किम)
ऊंचाई- लगभग 108 फुट
नामची शहर में पहाड़ी पर विराजित शिव प्रतिमा चारधाम यानी बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका और पुरी के मंदिरों के प्रतिरूप में रूप में देखने को मिलती है। यहां बनी शिव की मूर्ति 108 फुट ऊंची है। इसे सिद्धेश्वर धाम तथा किरातेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यह सिक्किम के गंगटोक से 92 किलोमीटर की दूरी पर है तथा इस मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों को भी दर्शाया गया है।
मूर्ति नंबर 11
मंगल महादेव, हरियाणा
ऊंचाई- 101 फुट
हरियाणा में मंगल महादेव की विशाल प्रतिमा है। यह दिल्ली से जिसकी ऊंचाई करीब 101 फुट है। शिवरात्रि के साथ ही आम दिनों में भी यहां भक्तों की उतनी ही भीड़ देखने को मिलती है।
यहां जानें विदेशों में भगवान शिव के खूबसूरत मंदिर...tallest lord shiva statue in world
कैलाश मानसरोवर :
कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है। मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। यह साक्षात शिव का निवास माना जाता है। यहां से जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं हैं।
पशुपतिनाथ मंदिर :
नेपाल में बागमती नदी के किनारे काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व हेरिटेज श्रेणी में आता है। यहां पर भगवान शिव के दर्शनों के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। पशुपतिनाथ का मतलब होता है संसार के समस्त जीवों के भगवान। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण लगभग 11वीं सदी में किया गया था। दीमक की वजह से मंदिर को बहुत नुकसान हुआ, जिसकी कारण लगभग 17वीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया। मंदिर में भगवान शिव की एक चार मुंह वाली मूर्ति है। इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के चार दरवाजे बने हुए हैं। वे चारों दरवाजे चांदी के हैं। यह मंदिर हिंदू और नेपाली वास्तुकला का एक अच्छा मिश्रण है।
रामलिंगेश्वर मंदिर :
यह मंदिर मलेशिया की राजधानी क्वालालमपूर में है। सन 2012 में मलेशिया सरकार ने मंदिर और आस पास का क्षेत्र मंदिर का प्रबंधन करने वाली ट्रस्ट के हवाले कर दिया। अब यह ट्रस्ट ही मंदिर का प्रबंधन और देखभाल करता है।
प्रम्बानन मंदिर :
हिंदू संस्कृति और देवी-देवताओं को समर्पित एक बहुत सुंदर और प्राचीन मंदिर इंडोनेशिया के जावा नाम की जगह पर है। 10वीं शताब्दी में बना यह मंदिर प्रम्बानन मंदिर के नाम से जाना जाता है। प्रम्बानन मंदिर शहर से लगभग 17 कि.मी. की दूरी पर है। इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर स्थित प्रमबनन मंदिर नौवीं शताब्दी का एक भव्य मंदिर है। यह भारत से बाहर बने सबसे विशाल शिव मंदिरों में से एक है। यूनेस्को ने इस मंदिर को वर्ल्ड हेरिटेज के रूप में संरक्षित किया है।
सागर शिव मंदिर :
इस शिव मंदिर का निर्माण वर्ष 2007 में किया गया है लेकिन आज यह मंदिर मॉरिशस में रहने वाले हिन्दुओं का एक पवित्र धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण इस मंदिर प्रांगण में बनी भगवान शिव की 108 फीट ऊंची कांसे की प्रतिमा है।
मुन्नेश्वरम मंदिर :
यह मंदिर श्रीलंका के एक गांव मुन्नेश्वर में बना है। यहां शिव के साथ-साथ देवी काली का भी मंदिर है। इस मंदिर का स्थापत्य भव्य और मनमोहक है। दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली में निर्मित इस मंदिर में साल भर श्रीलंका और भारत से लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर के इतिहास को रामायण काल से जोड़ा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने इसी जगह पर भगवान शिव की आराधना की थी। इस मंदिर परिसर में पांच मंदिर हैं, जिनमें से सबसे बड़ा और सुंदर मंदिर भगवान शिव का ही है। कहा जाता
है कि पुर्तगालियों ने दो बार इस मंदिर पर हमला कर नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी।
कटास राज मंदिर :
पाकिस्तान में भी एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के चकवाल जिले में है और कटास राज मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी से नवीं शताब्दी के मध्य करवाया गया था। कटासराज मंदिर पाकिस्तान के चकवाल गांव से लगभग 40 कि.मी. की दूरी पर कटस में एक पहाड़ी पर है। कहा जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल (त्रेतायुग) में भी था। इस मंदिर से जुड़ी पांडवों की कई कथाएं प्रसिद्ध हैं।
मान्यताओं के अनुसार, कटासराज मंदिर का कटाक्ष कुंड भगवान शिव के आंसुओं से बना है। इस कुंड के निर्माण के पीछे एक कथा है। कहा जाता है कि जब देवी सती की मृत्यु हो गई, तब भगवान शिव उन के दुःख में इतना रोए कि उनके आंसुओं से दो कुंड बन गए। जिसमें से एक कुंड राजस्थान के पुष्कर नामक तीर्थ पर है और दूसरा यहां कटासराज मंदिर में।
शिवा हिन्दू मंदिर-जुईदोस्त, एम्स्टर्डम :
यह मंदिर लगभग 4,000 वर्ग मीटर को क्षेत्र में फैला हुआ है। इस मंदिर के दरवाजे भक्तों के लिए जून 2011 को खोले गए थे। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान गणेश, देवी दुर्गा, भगवान हनुमान की भी पूजा की जाती है। यहां पर भगवान शिव पंचमुखी शिवलिंग के रूप में है।
अरुल्मिगु श्रीराजा कलिअम्मन मंदिर- जोहोर बरु, मलेशिया :
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1922 के आस-पास किया गया था। यह मंदिर जोहोर बरु के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। जिस भूमि पर यह मंदिर बना हुआ है, वह भूमि जोहोर बरु के सुल्तान द्वारा भेंट के रूप में भारतीयों को प्रदान की गई थी। कुछ समय पहले तक यह मंदिर बहुत ही छोटा था, लेकिन आज यह एक भव्य मंदिर बन चुका है। मंदिर के गर्भ गृह में लगभग 3,00,000 मोतियों को दीवार पर चिपकाकर सजावट की गई है।
शिवा टैम्पल, ज़्यूरिख़, स्विट्ज़रलैंड :
यह एक छोटा लेकिन सुंदर शिव मंदिर है। यहां के गर्भ गृह में शिवलिंग के पीछे भगवान शिव की नटराज स्वरूप में और देवी पार्वती की शक्ति से रूप में मूर्तियां स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव से जुड़े हुए सभी त्योहार बहुत ही धूम-धाम से मनाए जाते हैं।
शिवा-विष्णु मंदिर- मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया :
भगवान शिव और विष्णु को समर्पित इस मंदिर का निर्माण लगभग 1987 के आस-पास किया गया था। मंदिर के उद्घाटन कांचीपुरम और श्रीलंका से दस पुजारियों ने पूजा करके किया था। इस मंदिर की वास्तुकला हिन्दू और ऑस्ट्रेलियाई परंपराओं का अच्छा उदाहरण है। मंदिर परिसर के अंदर भगवान शिव और विष्णु के साथ-साथ अन्य हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा-अर्चना की जाती है।
शिवा मंदिर- ऑकलैंड, न्यूजीलैंड :
न्यूजीलैंड के इस मंदिर की स्थापना का मुख्य कारण लोगों के बीच हिंदू धर्म के प्रति आस्था और विश्वार बढ़ाना था। इस मंदिर के निर्माण के बाद 2004 में यह मंदिर आम भक्तों के लिए खोला गया था। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी शिवेंद्र महाराज और यज्ञ बाबा के मार्गदर्शन में हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किया गया था। इस मंदिर में भगवान शिव नवदेश्वर शिवलिंग के रूप में है।
शिवा विष्णु मंदिर- लिवेरमोरे, कैलिफोर्निया :
यह मंदिर इस क्षेत्र के हिंदू मंदिरों में से सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर उत्तर भारत और दक्षिण भारत की कला का सुंदर मिश्रण है। मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान गणेश, देवी दुर्गा, भगवान अय्यप्पा, देवी लक्ष्मी आदि की भी पूजा की जाती है। मंदिर की अधिकांश मूर्तियों 1985 में तमिलनाडु सरकार द्वारा दान की गई थी।
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