भगवान शिव एक योगी हैं, बैरागी है और संन्यासियों को गुरु हैं। वे परिवाज्रक है अर्थात जगह जगह जगह घूमते रहते हैं और जब घूमना बंद होता है तो बस समाधी में लीन रहते हैं।
1. भगवान शिव महान योगी थे और वे हमेशा ही समाधी और ध्यान में ही लीन रहते थे लेकिन माता पार्वती का ये प्रेम ही था कि योगी बना एक गृहस्थ।
2. गृहस्थ का योगी होना जरूरी है तभी वह एक सफल दाम्पत्य जीवन का निर्वाह कर सकता है।
3. भगवान शिव के साथ उल्टी गंगा बही। कई लोग ऐसे हैं जो विवाह के बाद उम्र के एक पड़ाव पर जाकर बैरागी बनकर संन्यस्त होकर अपनी पत्नी को छोड़ चले। जैसे गौतम बुद्ध या अन्य कई ऋषि मुनि, परंतु भगवान शिव तो पहले से ही योगी, संन्यासी या कहें कि बैरागी थे।
4. यह तो माता पार्वती का तप ही था जो योगी गृहस्थ बन गए। कहना तो यह चाहिए कि माता पार्वती भी तो जोगन थीं। पत्नी के साथ यदि सात जन्म के फेरे लिए हैं तो फिर कैसे इसी जन्म में संन्यास के लिए छोड़कर चले जाएं? भगवान शंकर ने यह सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया था।
5. माता सती ने जब दूसरा जन्म हिमवान के यहां पार्वती के रूप में लिया तब उन्होंने पुन: शिव को पाने के लिए घोर तप और व्रत किया। उस दौरान तारकासुर का आतंक था। उसका वध शिवजी का पुत्र ही कर सकता था ऐसा उसे वरदान था। लेकिन शिवजी तो तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवताओं ने शिवजी का विवाह पार्वतीजी से करने के लिए एक योजना बनाई। उसके तहत कामदेव को तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। कामदेव ने तपस्या तो भंग कर दी लेकिन वे खुद भस्म हो गए। बाद में शिवजी ने पार्वतीजी से विवाह किया। इस विवाह में शिवजी बरात लेकर पार्वतीजी के यहां पहुंचे। इस कथा का रोचक वर्णन पुराणों में मिलेगा। शिव को विश्वास था कि पार्वती के रूप में सती लौटेंगी तो पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए तपस्या के रूप में समर्पण का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया।