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सावन माह में भगवान शिव और उनका परिवार कहां पर रहते हैं?

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WD Feature Desk

, शनिवार, 12 जुलाई 2025 (10:02 IST)
kankhal:आषाढ़ी एकादशी के दिन से चार माह के लिए देव सो जाते हैं। इसके बाद गुरु पूर्णिमा आती है और दूसरे दिन से श्रावण मास प्रारंभ हो जाता है। इस बार 11 जुलाई 2025 शुक्रवार से सावन माह प्रारंभ हो  गया है। शिव का माह श्रावण माह ही चातुर्मास का प्रथम माह है। जब भगवान विष्णु 4 माह के लिए योगनिंद्रा में सो जाते हैं तब उस दौरान भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं। वे तब कैलाश पर्वत से उतरकर अपने ससुराल में रहते हैं।
 
चार माह सृष्‍टि का संचालन करेंगे शिवजी: चार माह के लिए भगवान विष्णु में सो जाते हैं और इस दौरान भगवान शिव के हाथों में सृष्टि का संचालन रहता है। इस अवधि में भगवान शिव पृथ्वीलोक पर निवास करते हैं और चार मास तक संसार की गतिविधियों का संचालन करते हैं। ALSO READ: सावन और शिव जी का क्या कनेक्शन है? सोमवार ही क्यों है भोलेनाथ को प्रिय?
 
कनखल में सपरिवार सहित रहते हैं शिवजी: मान्यता है कि सृष्टि का कार्यभार देखने के लिए भगावन शिव माता पार्वती, गणेशजी, कार्तिकेय और नंदी आदि गणों के साथ अपनी ससुराल कनखल आकर रहते हैं। जन प्रचलित मान्यता के अनुसार वे हरिद्वार के पास कनखल में राजा दक्ष के मंदिर में आकर रहते हैं। यह स्थान हरिद्वार से लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में कनखल हरिद्वार की उपनगरी के रूप में जाना जाता है। आज कनखल हरिद्वार के सबसे ज्यादा घनी आबादी वाला क्षेत्र है।
 
कनखनल के प्राचीन मंदिर: आज भी कनखल में बहुत सारे प्राचीन मंदिर बने हुए है। खरीदारी के हिसाब से हरिद्वार में कनखल का बाजार एक उपयुक्त स्थान माना जा सकता है। यहीं पर विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भी है। हरिद्वार को पंचपुरी भी कहा जाता है। पंचपुरी में मायादेवी मंदिर के आसपास के 5 छोटे नगर सम्मिलित हैं। कनखल उनमें से ही एक है। कनखलन में रुईया धर्मशाला, सती कुंड, हरिहर आश्रम, श्रीयंत्र मंदिर, दक्ष महादेव मंदिर, गंगा घाट और उनका मंदिर, शीतला माता मंदिर, दश महाविद्या मंदिर, ब्रम्हेश्वर महादेव मंदिर, हवेली सदृश अखाड़े और कनखल की संस्कृत पाठशालाएं।
 
कनखनल का इतिहास: कनखनल हरिद्वार की प्राचीन धरोहर है। यह राजा दक्ष की के राज्य की राजधानी थी। कनखल हरिद्वार का सबसे प्राचीन स्थान है। इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। कनखल का इतिहास महाभारत और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कनखल ही वो जगह है जहां राजा दक्ष ने प्रसिद्ध यज्ञ किया था और सती ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान करने पर उस यज्ञ में खुद को दाह कर लिया था। माता सती के अग्निदाह के बाद शिव के गण वीरभद्र ने राजा दक्ष की वध कर दिया था बाद में शिवजी ने उनके धड़ को वश्व के सिर से जोड़ दिया था। इसी घटना की याद में यहां पर दक्षेश्वर मदिर बना हुआ है।
 

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