ढोल मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज और एकतारा में सबसे प्रिय बांस निर्मित बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। इसे वंसी, वेणु, वंशिका और मुरली भी कहते हैं। बांसुरी से निकलने वाला स्वर मन-मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां के लोगों में परस्पर तो बना रहता है साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है। श्रीमद्भागवत पुराण में में श्रीकृष्ण की बांसुरी से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं। आओ श्रीकृष्णी की बांसुरी और उसकी धुन के 10 रहस्य।
1. धनवा नाम का एक बंसी बेचने वाला श्रीकृष्ण को बांसुरी देता है तो वे उस पर पहली बार मधुर धुन छोड़ते हैं जिससे वह बंसी बेचने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। उसी समय से श्रीकृष्ण बांसुरी बजने वाले बन जाते हैं।
2. उनकी बांसुरी की धुन पर गोपिकाएं और पूरा गोकुल बेसुध हो जाता था।
3. श्रीकृष्ण ने पहली ही बार ऐसी बांसुरी बजाई की सभी को ऐसा लगा जैसे यह बजाना कई जन्मों से सीख रखा है।
4. ऐसा भी कहा जाता है कि जब भगवान शिवजी बालकृष्ण को देखने आए तो उन्होंने ऋषि दधीचि की हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब शिव जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बंसी प्रदान की। उन्हें आशीर्वाद दिया तभी से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं।
5. श्रीकृष्ण जब राधा और गोपियों को छोड़कर जा रहे थे तब उस रात महारास हुआ और उसमें उन्होंने ऐसी बांसुरी बजाई थी कि सभी गोपिकाएं बेसुध हो गई थी। कहते हैं कि इसके बाद श्रीकृष्ण ने राधा को वह बांसुरी भेंट कर दी थी और राधा ने भी निशानी के तौर पर उन्हें अपने आंगन में गिरा मोर पंख उनके सिर पर बांध दिया था।
6. बांसुरी के संबंध में एक धार्मिक मान्यता है कि जब बांसुरी को हाथ में लेकर हिलाया जाता है तो बुरी आत्माएं दूर हो जाती हैं और जब इसे बजाया जाता है तो घरों में शुभ चुंबकीय प्रवाह का प्रवेश होता है।
7. श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनकर गायें लौट आती थींं।
8. राधा कुंड क्षेत्र श्रीकृष्ण से पूर्व राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। अरिष्टासुर से ब्रजवासी खासे तंग आ चुके थे। इस कारण श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया था। वध करने के बाद राधाजी ने बताया कि आपने गौवंश के रूप में उसका वध किया है अत: आपको गौवंश हत्या का पाप लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधाजी ने भी बगल में अपने कंगन से एक दूसरा कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। श्रीकृष्ण के खोदे गए कुंड को श्याम कुंड और राधाजी के कुंड को राधा कुंड कहते हैं।
9. एक बार गोपियों ने श्रीकृष्ण की बांसुरी से पूछा कि आखिर पिछले जन्म में तुमने ऐसा कौन-सा पुण्य कार्य किया था, जो तुम हमारे मुरली मनोहकर के गुलाब की पंखुडी जैसे होंठों पर स्पर्श करती रहती हो? ये सुनकर बांसुरी ने मुस्कुराकर कहा 'मैंने उनके समीप आने के लिए जन्मों तक इंजतार किया। त्रेतायुग में जब भगवान राम वनवास काट रहे थे, तो उस वक्त मेरी भेंट उनसे हुई थी। उनके आसपास बहुत से मनमोहक पुष्प और फल थे। उन पौधों की तुलना में मुझमें कोई विशेष गुण नहीं था। पंरतु भगवन ने मुझे दूसरे पौधों की तरह ही महत्व दिया। उनके कोमल चरणों का स्पर्श पाकर मुझे प्रेम का अनुभव होता था। उन्होंने मेरी कठोरता की भी कोई परवाह नहीं की। जीवन में पहली बार मुझे किसी ने इतने प्रेम से स्वीकार किया था। यही कारण है कि मैंने आजीवन उनके साथ रहने की कामना की। पंरतु उस काल में वो अपनी मर्यादा से बंधे हुए थे, इसलिए उन्होंने मुझे द्वापर युग में अपने साथ रखने का वचन दिया। इस प्रकार श्रीराम ने अपना वचन निभाते हुए श्रीकृष्ण रूप में मुझे अपने निकट रखा।
10. आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।