निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 16 जून के 45वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 45 ) में सांदिपनि ऋषि श्रीकृष्ण और बलराम को वराह और नृसिंह भगवान की कथा सुनाने के बाद कहते हैं, अब मैं तुम्हें मत्स्य अवतार की कथा सुनाता हूं।
सांदिपनि ऋषि कहते हैं कि प्रभु के इस अवतार का प्रादुर्भाव उस समय होता है जब सृष्टि पर जल प्रलय आती है। उस समय भगवान प्रलय के अंत में फिर से प्रकट होने वाली नई सृष्टि के सर्जक मनु और उनके सप्तऋषियों और उनके द्वारा संस्कृति, धर्म और विज्ञान के बीजों की रक्षा के लिए मत्स्य का रूप धारण करके महाप्रलय के जल से उनकी रक्षा करते हैं। जैसे चाक्षुक मनवंतर के अंत में धरती पर जब प्रलय आई तो उस समय पृथ्वी पर एक बड़ा धर्मात्मा राजा सत्यव्रत राज्य करता था। वही आगे चलकर उस प्रलय के बाद वैवस्वत मनु हुआ।
फिर सांदिपनि ऋषि कहते हैं कि एक दिन राजा सत्यव्रत प्रात: नदी में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्ध्य दे रहे थे तभी उनके हाथ में एक छोटीसी मछली आकर उनसे नदी की अन्य बड़ी मछलियों से रक्षा करने का निवेदन करती है। पहले तो राजा बोलने वाली मछली देखकर चकित होते हैं, फिर उसे छुद्र मछली कहकर वे उस मछली से कहते हैं कि हमारे में महल में तो बहुत स्थान है चलो मैं तुम्हें वहीं ले चलता हूं। राजा उसको लेजाकर राजमहल में एक सोने के पात्र में जलभरकर मछली को रख देते हैं और सेवक से कहते हैं- इसके आहार का पूरा प्रबंध किया जाए। फिर वह मछली से कहते हैं अब तुम यहां आनंद से रह सकती हो।
ऐसा कहकर वे अपने कक्ष की ओर जाने लगते हैं तभी पीछे से मछली की आवाज आती है- राजा राजा, मेरी सहायता करो राजा। राजा पलटकर पुन: उस जलपात्र के पास जाकर देखते हैं और फिर वह मछली को देखकर कहते हैं बड़ी अद्भुत बात है तुम तो बर्तन जितनी बड़ी हो गई हो। मछली कहती है राजा मुझे कोई बड़ा स्थल दो ना। फिर राजा उसे उससे भी चार गुणा बड़े बर्तन में रख देते हैं। फिर से वे अपने कक्ष की ओर जाते हैं तो फिर से उस मछली की आवाज आती है राजन मुझे बचाओ। राजा पुन: उसे देखता है तो वह मछली उस पात्र जितनी बड़ी दिखाई देती है। मछली कहती है- राजन ये मात्र भी मेरे लिए पर्याप्त नहीं है। राजा यह देखकर आश्चर्य करता है और कहता है ये कैसी माया है। तुम तो हर बार पहले से बड़ी हो जाती है। तब मछली कहती है- हे राजन! मैं तुम्हारी शरण में हूं मुझे राजमहल में पर्याप्त स्थान देना आपका धर्म है।
फिर राजा उसे उससे भी 10 गुना बड़े बर्तन में रख देता है। वहां भी वह मछली कुछ ही देर में बड़ी हो जाती है। अब ये देखकर तो राजा और उसके सैनिकों के लिए आश्चर्य की बात हो जाती है। राजा कहते हैं आप कोई अलौकिक जीव हो। यह सुनकर मछली कहती है राजन! बढ़ना तो मेरा स्वभाव है परंतु आप क्यों चिंता करते हो, आपका राजमहल तो बहुत बड़ा है ना। राजा कुछ समझ नहीं पाता है और कहता है बड़ा था परंतु आपने उसे छोटा कर दिया। मैं समझ गया मैंने आपको क्षुद्र जीव कहा था। इसीलिए आपने मेरे अहंकार को तोड़ने के लिए ये लीला रची है। अवश्य आप कोई दिव्य आत्मा हैं। चलिये अब मैं आपको एक विशाल नदी में पहुंचा आता हूं। मछली कहती है अच्छी बात है राजन वही मेरे लिए उचित होगा।
नदी में छोड़ते ही वह मछली और भी विशालकाय हो जाती है। राजा यह देखकर अचंभित रह जाता है। फिर भगवान विष्णु प्रकट होकर कहते हैं, सत्यव्रत आज से सातवें दिन भूलोक आदि तीनों लोक प्रलय के समुद्र में डूब जाएंगे। उस समय मेरी प्रेरणा से तुम्हारे पास बहुत बड़ी नौका आएगी। उस समय तुम समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को और सप्तर्षियों के साथ उस नौक पर चढ़ जाना। और, समस्त धान्य, समस्त औषधियों के बीजों आदि को अपने साथ रख लेना। जब प्रचंड आंधी के साथ नाव डगमगाने लगेगी तब मैं इसी रूप में वहां आऊंगा और तुम लोग वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सिंग से बांध देना। फिर जब तक ब्रह्माजी की रात रहेगी तब तक मैं उस नाव के साथ समुद्र में विचरण करूंगा। फिर जब प्रलय समाप्त हो जाएगी तब तुम वैवस्वत मनु के रूप में एक मन्वंतर तक सृष्टि का संचालन करोगे। यह कहकर प्रभु अप्रकट हो जाते हैं।
फिर सांदिपनि ऋषि कहते हैं कि भगवान के आदेशानुसार सत्यव्रत सभी को लेकर एक पर्वत की चोटी पर चले गए। ठीक सात दिन बाद धरती पर प्रलय का विस्फोट हुआ। पर्वत भी जब जल में डूबने लगा तो एक नौका प्रकट हुई। सभी लोग उस पर सवार हो गए। फिर वासुकि नाग से उस नौका को बांधकर मत्स्य भगवान उसे खींचकर समुद्र में सुरक्षित जगह ले गए। प्रलय शांत हुई तो नौका किनारे लगी।
फिर सांदिपनि ऋषि बताते हैं कि प्रलयकाल में समुद्र में मत्स्य रूप में विचरण करते हुए प्रभु ने जो ज्ञान सत्यव्रत को दिया उसका वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है। अब मैं तुम्हें प्रभु के कच्छप अवतार की कथा सुनाता हूं।
फिर सांदिपनि ऋषि महाराज महाबली और उनके असुरों एवं इंद्र और उनके देवताओं द्वारा समुद्र मंथन, अमृत वितरण के दौरान युद्ध और श्रीहरि के मोहनी रूप में प्रकट होने की कथा को श्रीकृष्ण और बलराम को सुनाते हैं। जय श्रीकृष्ण।