निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 17 मई के 15वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 15 ) गर्ग मुनि जी दोनों का नामकरण संस्कार करते हैं। एक का नाम बलराम और दूसरे का कृष्ण। फिर गर्ग ऋषि दोनों के नाम का रहस्य, गुण और भविष्य बताते हैं।
इधर, कंस कहता है क्या कहा कृष्ण? तो कृष्ण नाम रखा है उसका। तब कंस पूछता है कि नामकरण संस्कार किसने किया? गुप्तचर कहता है कि ये कोई नहीं जानता। हो सकता है कि गुप्त रीति से किया गया हो। यह सुनकर कंस भड़क जाता है और कहता है कि जो कार्य गुप्त रीति से किया जाए उसका पता लगाना ही गुप्तचर का काम होता है।
तब गुप्तचर बताता हैं कि गर्ग मुनि एक गोशाला के पास एक कुटिया में ही रहे थे और वे वहीं से पुन: मथुरा लौट आए। तब चाणूर कहता है कि साधारण परिस्थिति में नंद को नामकरण संस्कार बड़े धूमधाम से करना चाहिए था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। एक दूसरा दरबारी कहता है कि दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि बालक के नाम की घोषणा इन्हीं दो दिनों में की गई जब महर्षि गर्ग वहां थे। शास्त्र विधि के अनुसार यह नामकरण संस्कार पहले ही हो जाना चाहिए थे लेकिन इसका एक ही अर्थ है कि महर्षि गर्ग की प्रतीक्षा की गई और यदि बालक का नामकरण संस्कार गर्ग मुनि के हाथों हुआ है जो यह बालक यशोदा का नहीं देवकी का पुत्र है।
यह सब सुनकर कंस भयभीत और दंग रह जाता है। तब एक दरबारी कहता है कि हमें यह सिद्ध करने की जरूरत ही नहीं कि यह बालक किसका पुत्र है। दरअसल, यही बालक हमारा शत्रु है। इसीने पूतना, कागासुर और उत्कच जैसे मायावी और महाबलियों को मार दिया है। जब शत्रु सिद्ध हो चुका है तो हमें इस बात की चर्चा करना चाहिए कि उसका सामना किस शक्ति के द्वारा किया जाए। इससे क्या अंतर पड़ता है कि वह किसका पुत्र है?
तब कंस कहता है कि अंतर हैं, अंतर है। यदि यह साधारण मायवी शक्ति है तो निश्चित ही विष्णु ने हमें भरमारे के लिए इसे हमारा शत्रु बना दिया ताकि हम इसे ही विष्णु समझकर इस पर ही आक्रमण करते रहें और वह हमारे साथियों का और हमारी शक्तियों का नाश करता रहे और जो असली शत्रु है वो कहीं आराम से पलता रहे। लेकिन यदि ये देवकी और वासुदेव का पुत्र है तो फिर यह वही है जिसकी चेतावनी हमें आकाशवाणी ने दी थी। जिसकी प्रतीक्षा लोग तारणहर के रूप में कर रहे हैं और जो कंस को मारने के लिए पैदा हुआ है। इसलिए यह जानना अति आवश्यक है कि देवकी की आठवीं सन्तान एक लड़की थीं या लड़का। और, यदि वह लड़का था तो वह कौन है? कहां हैं? किसके घर में पल रहा है?
चाणूर कहता है कि इसका पता लगाने के लिए एक उपाय है। कंस कहता है कि क्या? चाणूर कहता है, वसुदेव। कंस कहता है वसुदेव? चाणूर कहता है हां वसुदेव। वसुदेव सत्यवादी है वह झूठ नहीं बोलता। महाराज उससे सीधा प्राश्न करें। और यदि वह उत्तर न दें तो उसे ऐसी यातनाएं दी जाए कि वह उत्तर देने पर मजबूर हो जाए। तब कंस खुश होकर कहाता है, हां ये बात विचार योग्य है चाणूर।
तब कंस के सैनिक कुमार वसुदेव के महल में पहुंच जाते हैं। वहां देवकी मिलती है। देवकी कहती है कि वे इस समय किसी कार्यवश बाहर गए है। आप जाइये मैं उन्हें महाराज का संदेशा दे दूंगी। सैनिक प्रधान कहता है कि नहीं उनके आने तक हम यहीं प्रतीक्षा करेंगे।
उधर कुमार वसुदेव ऋर्षि गर्ग के आश्रम में उनसे चर्चा कर रहे होते हैं। ऋषि गर्ग बताते हैं कि हमने तुम्हारे पुत्र का नामकरण कर दिया है। तब वे बताते हैं कि मैंने तुम्हारे पुत्र का नाम बलराम रखा है। वसुदेव कहते हैं कि देवकी को आज उसके पुत्र का नाम ज्ञात होगा तो वह अति प्रसन्न होगी। तब वसुदेव जी पूछते हैं कि देवकी पूछती है कि हमने जो वस्त्र दिए थे दोनों पुत्रों के लिए उसमें से उसके पुत्र को कौनसा झबला (वस्त्र) पूरा आया। तब महर्षि गर्ग कहते हैं कि उसके दोनों पुत्रों को दोनों छबले पूरे आ गए हैं। यह सुनकर वसुदेवजी चौंक जाते हैं और पूछते हैं दोनों पुत्रों को?
तब महर्षि गर्ग कहते हैं हां कुमार देवकी के दोनों पुत्रों को। हमने आपको उस दिन कहा था कि और भी कई रहस्य है जिन्हें आपसे छुपाकर रखा गया है। परंतु मैं आपके अष्टम पुत्र के रूप में स्वयं भगवान की छवि देखकर आया हूं। अब मुझे कोई चिंता नहीं रही। जो तीनों लोकों की चिंता हरने वाले हैं, उनकी सुरक्षा मैं करूंगा? मेरे इस अहंकार का दंभ उनके दर्शन मात्र से ही दूर हो गया। और, आज सहसा ही हमारी जिव्या से आपके छोटे पुत्र कृष्ण का रहस्य भी आपके समक्ष खुल गया।
तब वसुदेव कहते हैं गुरुदेव आपके कहने का अर्थ ये है कि हमारी अष्टम संतान वह कन्या नहीं थी? महर्षि कहते हैं हां नहीं थी। आपकी अष्ट्म संतान तो एक पुत्र था जैसा की आकाशवाणी ने कहा था। यह सुनकर वसुदेव गद्गद् हो जाते हैं। तब महर्षि गर्ग उन्हें योगमाया की लीला बताते हैं। फिर वे वसुदेव के सिर पर हाथ रखकर रात्रि की उस घटना की स्मृति उन्हें लौटा देते हैं जिस बारिश की रात्रि में वे बालकृष्ण को यशोदा भैया के यहां छोड़कर बालिका को उठा लाए थे।
फिर बाद में वसुदेव ऋषि के आश्रम से निकलकर अपने महल जाते हैं जहां सैनिक उनका इंतजार कर रहे होते हैं। वह सैनिक वसुदेवजी को कंस के पास ले जाते हैं। जय श्रीकृष्णा।