निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 28 अक्टूबर के 170वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 170) में फिर अभिमन्यु चक्रव्यूह का भेदन करने लगता है और अंदर घुसता ही जाता है कि
परंतु जयद्रथ आकर भीम और अन्य पांडवों को बीच में ही रोककर चक्रव्यूह में घुसने से रोक देता है। अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने रथ पर सवार होकर निकल जाता है। प्रारंभ में यही सोचा गया था कि अभिमन्यु व्यूह को तोड़ेगा और उसके साथ अन्य योद्धा भी उसके पीछे से चक्रव्यूह में अंदर घुस जाएंगे। लेकिन जैसे ही अभिमन्यु घुसा जयद्रथ के कहने पर व्यूह फिर से बदला और पहली कतार पहले से ज्यादा मजबूत हो गई तो पीछे के योद्धा, भीम, सात्यकि, नकुल-सहदेव कोई भी अंदर घुस ही नहीं पाए। सभी को जयद्रथ ने रोक लिया। युद्ध में शामिल योद्धाओं में अभिमन्यु के स्तर के धनुर्धर दो-चार ही थे यानी थोड़े ही समय में अभिमन्यु चक्रव्यूह के और अंदर घुसता तो चला गया, लेकिन अकेला, नितांत अकेला। उसके पीछे कोई नहीं आया।
उधर, अर्जुन सुशर्मा से युद्ध करते हुए बहूत दूर निकल जाते हैं।
जैसे-जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह के सेंटर में पहुंचते गए, वैसे-वैसे वहां खड़े योद्धाओं का घनत्व और योद्धाओं का कौशल उन्हें बढ़ा हुआ मिला, क्योंकि वे सभी योद्धा युद्ध नहीं कर रहे थे बस खड़े थे जबकि अभिमन्यु युद्ध करता हुआ सेंटर में पहुंचता है। द्रोर्णाचार्य अभिमन्यु की तारीफ करते हैं कि यह बहादुर योद्धा है जिसने अकेले ही चक्रव्यूह को भेद दिया और महारथियों की तरह लड़ रहा है।
अभिमन्यु केंद्र में पहुंचकर द्रोणाचार्य, मद्र नरेश शल्य, कुलगुरु कृपाचार्य, अंगराज कर्ण, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, मामाश्री शकुनि, दु:शासन, दुर्योधन, कृतवर्मा, जयद्रथ आदि से युद्ध करके सभी को अकेले ही घायल कर देता है। दुर्योधन यह देखकर द्रोण सहित सभी से कहता है कि इस पर एक साथ आक्रमण करो। द्रोण अभिमन्यु को घायल कर देते हैं।
उधर, युधिष्ठिर को इसका पश्चाताप होता है और वह कहता है कि अब मैं अर्जुन को क्या मुंह दिखाऊंगा?
सभी योद्धा मिलकर अभिमन्यु को घायल कर देते हैं। अभिमन्यु रथ से नीचे गिर जाता है और वह अकेला निहत्था होता है। द्रोण को छोड़कर सभी तलवार निकाल लेते हैं। अभिमन्यु रथ के पहिये को ढाल बना कर लड़ते हैं, लेकिन तभी कोई पीछे से अभिमन्यु की पीठ में तलवार घोंप देता है। फिर सभी योद्धा मिलकर उसकी निर्ममता से हत्या कर देते हैं।
उधर, लड़ते लड़ते अर्जुन कहता है कि हे केशव मेरा दिल कर रहा है कि मैं इस वक्त सभी का संहार कर दूं परंतु दूसरे ही क्षण मेरे हृदय की धड़कन बड़ जाती है। यह देखो मेरा गांडिव भी अब मेरा साथ नहीं दे रहा है। हे केशव लगता है कि कुछ अशुभ हुआ है।
फिर बाद में अर्जुन को यह पता चलता है कि चक्रव्यूह की रचना करके अभिमन्यु की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी गई है। यह सुनकर अर्जुन बुरी तरह से टूट जाता है। अब पहले की अपेक्षा उसके भीतर कौरवों से लड़ने के लिए और भी अधिक क्रोध उत्पन्न हो जाता है। जब अर्जुन को यह बता चलता है कि जयद्रथ के कारण अभिमन्यु मारा गया तो अर्जुन यह शपथ लेता है कि मैं कुंति पुत्र अर्जुन यह प्रतिज्ञा करता हूं कि कल सूर्यास्त से पूर्व जयद्रथ मेरी शरण में नहीं आया या रणछोड़कर भाग नहीं गया तो मैं वासुदेव श्रीकृष्ण का सखा अर्जुन कल सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करूंगा। अन्यथा अग्नि में प्रवेश करके स्वयं को भस्म कर दूंगा।
यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि पार्थ तुमने बिना सोचे समझे, भावनाओं के आवेश में आकर प्रतिज्ञा की है परंतु इस प्रतिज्ञा के क्या परिणाम होंगे ये सोचा है तुमने?
यह सुनकर भीम कहता है कि हे केशव यह मत सोचिये कि यह प्रतिज्ञा अर्जुन ने ही की है। ये प्रतिज्ञा हम सब पांडवों की है। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी हो या भंग हो परंतु दोनों ही स्थिति में इसका परिणाम है अर्जुन की मृत्यु। यह सुनकर सभी चौंक जाते हैं तो नकुल कहते हैं ये आप क्या कह रहे हैं? इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं सच कह रहा हूं नकुल। जयद्रथ के पिता ने वरदान प्राप्त किया है कि जो भी जयद्रथ का सिर युद्ध भूमि में गिराएगा उसके सिर के 100 टूकड़े हो जाएंगे।
यह सुनकर युधिष्ठिर कहता है कि इसका अर्थ यह है कि जो भी जयद्रथ का वध करेगा तो अपने आप उसका वध भी हो जाएगा? इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि हां बड़े भैया इसलिए प्रतिज्ञा की पूर्ति पर भी अर्जुन के प्राण संकट में आ जाएंगे और यदि इसने प्रतिज्ञा की पूर्ति ना भी की तब भी इसे अग्निकाष्ठ का भक्षण करके स्वयं मृत्यु को स्वीकार करना होगा।...बहुत दुष्कर काम है ये अर्जुन बहुत दुष्कर काम।
यह सुनकर अर्जुन कहता है कि केशव! तुम्हारे लिए कोई भी काम दुष्कर नहीं है और जो काम हमारे लिए दुष्कर होगा तो हम उसी दुष्कर काम को तुम्हारी सहायता से सहज बना लेंगे, ये मेरा विश्वास है। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि ठीक है अर्जुन। कल जब तुम युद्ध भूमि में सिंधु नरेश जयद्रथ का वध करने निकलोगे तो एक बात ध्यान रखना। जयद्रथ का पिता महाराज वृद्धक्षत्र, समंत पंचक क्षेत्र में तप करने बैठा है। तुम हमने महान अस्त्र का प्रयोग करके जयद्रथ का मस्तक आसमान से ही वृद्धक्षत्र की गोद में गिराओगे। यदि तुमने जयद्रथ का मस्तक उसके पिता की गोद में गिरा दिया तो स्वयं वृद्धक्षत्र के मस्तक के 100 टूकड़े हो जाएंगे और तुम बच जाओगे।
यह सुनकर अर्जुन कहता है कि ठीक है केशव मैं जयद्रथ का सर ऐसे उड़ा दूंगा कि पहले वह उसके पिता की गोद में ही जा गिरेगा। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि परंतु यह मत भूलों की कल युद्ध भूमि में जयद्रथ की सुरक्षा कौरव सेना और स्वयं गुरु द्रोणाचार्य करेंगे। इसलिए हमारा प्रत्येक योद्धा अर्जुन को जयद्रथ तक पहुंचाने के लिए उसकी सहायता करेगा। जयद्रथ से पहुंचने के लिए अर्जुन का रास्ता अनेक बाधाओं से घिरा होगा। यह सुनकर भीम कहता है कि मैं अपनी गदा से अर्जुन के रास्ते की हर दीवार को मैं अपनी गदा से ढेर कर दूंगा। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि कल हम कौरवों के सेनापति आचार्य द्रोण को युद्ध में उलझाएं रखेंगे। और बड़े भैया आप, नकुल, सहदेव, विराट नरेश, पांचाल नरेश आप सभी कौरव महावीरों को युद्ध में उलझाए रखें। जय श्रीकृष्ण।