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Shri Krishna 23 May Episode 21 : काल कोठरी में आया सांप और कान्हा ने छेड़ी जब मुरली की धुन

हमें फॉलो करें Shri Krishna 23 May Episode 21 : काल कोठरी में आया सांप और कान्हा ने छेड़ी जब मुरली की धुन

अनिरुद्ध जोशी

, शनिवार, 23 मई 2020 (22:04 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 23 मई के 21वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 21 ) में अपने दोस्तों के बीच जाकर श्रीकृष्ण बताते हैं कि किस तरह ग्वालिनों ने मेरी शिकायत कर रखी है। फिर श्रीकृष्ण बताते हैं कि काकी ने मुझे सबके नाम बताएं हैं। इन सब ग्वालियों से अब हमें बदला लेना हैं। तब सभी सखा इस पर चर्चा करते हैं कि किस तरह बदला लिया जाए। फिर निर्णय होता है कि हम उनकी मटकियां फोड़कर उनसे बदला लेंगे। इसके बाद सभी एक वृक्ष पर बैठकर कतार से पगडंडी पर जा रही ग्वालिनों की मटकी को गुलेल से फोड़ देते हैं।

रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
मटकी फोड़ने के बाद सभी सखा हंसने लगते हैं तो ग्लालिनें देखती हैं वृक्ष की ओर। उनमें से एक कहती है वो देखो कान्हा। उसने हमारी मटकी फोड़ी है, पकड़ों उसे। तभी श्रीकृष्ण सभी से कहते हैं भागो। सभी वृक्ष से कूद-कूद कर भाग जाते हैं लेकिन कान्हा वृक्ष की एक डाल पर ही बैठे रहते हैं। सभी महिलाएं कहती हैं चलो नीचे उतरो। अब पकड़ा गए हो तुम। तब कान्हा कहते हैं नहीं मैंने पत्थर नहीं मारा। तब एक ग्लालिन कहती हैं कि पहले नीचे तो उतरो अभी बताती हूं। ये सब अपनी मैया को जाकर कहना। वो रोज कहती थीं कि एक दिन उसे पकड़कर लाओ। आज वो दिन आ ही गया। पहले तो सिर्फ माखन चुराता था अब मटकियां भी फोड़ने लगा। फिर कान्हा नीचे उतरते हैं तो सभी उनके मुंह पर नीचे गिरा मक्खन चुपड़ देती हैं और हाथ बांधकर सभी उन्हें यशोदा मैया के पास ले जाती हैं।
 
सभी यशोदा मैया से कहती हैं कि आज तो इसने हमारी मटकी फोड़ दी। तुम ही कहा करती थी कि पकड़कर लाओ, तो लो। आज हम इसे रंगे हाथों पकड़कर लाईं हैं। तब यशोदा मैया कहती हैं ये सब क्या है? क्यों कान्हा क्या ये सब सच कह रही हैं? तब कान्हा कहते हैं कि नहीं मैया ये सब झूठ कह रही हैं। ये सब किसी दूसरे ग्वाल बालाओं ने किया है। मैं तो वहां था ही नहीं। फिर माता कहती हैं कि ये माखन तेरे मुंह पर कहां से लगा? तब कान्हा कहते हैं कि ये तो इन ग्वालनों ने ही लगा दिया।
 
तब एक ग्वालन कहती है क्या कहा, तू उस पेड़ पर नहीं था। तब कान्हा कहते हैं नहीं आज में किसी भी पेड़ पर नहीं चढ़ा। मैया तू दाऊ भैया से पूछ लेना, हम दोनों मधुवन में अपनी गय्या देखने गए थे। तब वही ग्वालन कहती है कि सरासर झूठ, मधुबन में तो मेरा छोरा था। उसने तो तुम्हें वहां देखा नहीं। तब कान्हा कहते हैं कि वो कैसे देखता वो तो वहां था ही नहीं। वो तो तेरा माखन चुराकर घर के पीछे छुपकर खा रहा था। तब वह ग्वालिन कहती हैं कि वो क्यों चुराने लगा अपना माखन? तब कान्हा कहते हैं कि क्योंकि तुम उसे अपना माखन खाने ही नहीं देती। बाजार में बेच देती हो। कितना कंजूसी करती हो तो बिचारा क्या करे, वो चोरी करके ही माखन खाता है। फिर वह ग्वालिन पूछती हैं तूने उसे देखा था? तब कान्हा कहते हैं हां अपनी इन्हीं आंखों से देखा था।
 
यह सुनकर यशोदा मैया कहती हैं कि तू उस समय कहां था रे? तब कान्हा कहते हैं कि मैं मधुबन में पेड़ पर चढ़कर जामुन खा रहा था। तब माता यशोदा कहती है अच्छा पेड़ पर चढ़कर जामुन खा रहा था और वो जो तुने कहा कि तुम मधुबन में गय्या देखने गया था वो? तब कान्हा कहते हैं वो, वो तो कल की बात थी। मैंने भूल से कल की बात कह दी। तब माता पूछती हैं कल की बात कैसे कह गया? तब कान्हा कहते हैं मैया तेरे डर से, तू क्रोध करती है ना इसी डर से। तेरे सामने आते ही मेरे आज, कल, परसो सब गड़बड़ हो जाते हैं। 
 
यह सुनकर मां यशोदा पहले तो भावुक हो जाती है फिर वह कान्हा को पकड़कर कहती हैं चल अंदर आज मैं तुझे अपना असली क्रोध दिखाती हूं। फिर वह ग्वालिनों से कहती हैं बहना! अब आप लोग जाइये यहां से मैं आप लोगों से क्षमा मांगती हूं। आज मैं इसे कालकोठरी में बंद करके ऐसी सीख दूंगी कि ये फिर कभी ऐसा नहीं करेगा और मैं आप लोगों का माखन भी भिजवा दूंगी।
 
यह सुनकर ग्वालिनें घबरा जाती है। उनमें से एक कहती हैं, नहीं यशोदा! इसे मारिये मत। हमें अपना माखन नहीं चाहिए। केवल इसे इतना समझा दीजिये की ये हमारी मटकियां ना तोड़े। तब मैया यशोदा कहती हैं कि इससे सहानुभूती मत दिखाओ, ये और बिगड़ जाएगा। अब आप लोग जाइये यहां से। मैं बताती हूं अब इसे। यह कहकर यशोदा मैया कान्हा का हाथ पकड़कर अंदर ले जाती हैं तो सारी ग्वालिनों को पछतावा होता है।
 
यशोदा मैया कान्हा को कालकोठी में ले जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लेती हैं तो कान्हा कहते हैं मैया यहां तो बहुत अंधेरा है। मुझे बहुत डर लग रहा है। तब यशोदा मैया कहती हैं कि डर तो तब लगेगा जब सारी रात इस काल कोठरी में बंद रहेगा। फिर मैया कहती हैं पहले मैं एक मजबूत लाठी तो ढूंढ लूं। तब कान्हा कहते हैं लाठी किसलिए? तो यशोदा कहती है तुझे मारने के लिए। तब कान्हा डर के मारे कहते हैं मुझे बहुत दर्द होगा।
 
फिर मैया उस अंधेरी कोठरी में लाठी ढूंढती हैं। एक संदूक के पास लाठी रखी होती है। वह वहां जाकर लाठी उठाकर आती है मारने के लिए वैसे ही कान्हा कहते हैं मैया सांप, सांप। तब मैया कहती है हाई दय्या सांप कहां है? तब कान्हा कहते हैं कि अभी-अभी मेरे पैरों के ऊपर से इधर गया। तब यशोदा डर जाती है और किवाड़ खोल देती है तभी सामने उसे कुंडली मारे सांप नजर आता है। यह देखकर वह डर जाती है।
 
तब यशोदा मैया कहती है लल्ला बड़ा भयंकर सांप है रे, तू जा भाग जा यहां से। तब कान्हा कहते हैं कि नहीं, मैं सांप के सामने अपनी मैया को छोड़कर कैसे भाग जाऊं? यह सुनकर मैया भावुक हो जाती है। फिर कान्हा सांप की ओर बढ़ते हुए कहते हैं मैया पहले तू निकल जा मैं इसे रोकता हूं। तब मैया लल्ला का हाथ पकड़कर पीछे खींचती हैं और घबराते हुए कहती है क्या कर रहा है रे लल्ला, तू जा यहां से, जा निकल जा। तब कान्हा कहते हैं नहीं तू लाठी मुझे दे दे। तब कान्हा कहते हैं देखो नाग देवता मेरी मैया को डंसने से पहले तुम्हें मुझे डंसना होगा। यह सुनकर मैया और भावुक हो जाती है।
 
तब कान्हा सांप की ओर देखकर कहते हैं देखा मैया मेरा कहा सुनता है, ला तू लाठी मुझे दे दे। ऐसा कहकर कान्हा मैया के हाथ से लाठी छुड़ाकर फिर हाथ जोड़कर कहते हैं नाग देवता तुम चुपचाप चले आओगे तो हम तुम्हें कुछ नहीं करेंगे। मेरी मैया कल तुम्हारे लिए पीपल के पेड़ के नीचे दूध का कटोरा रखेंगी। अच्छा अब जाओ।
 
यह सुनकर नाग देवता वहां से चले जाते हैं। यह देखकर भैया आश्चर्य करने लगती है। फिर कान्हा कहते हैं देखा मैया अच्छा नाग था तो चला गया। मैया अपने लल्ला को गले से लगाकर रोने लगती हैं। रोते हुए मैया कहती हैं मैं बड़ी पापन हूं जो तुझे इस सांप वाली कोठरी में बंद कर रही थीं। मैं बड़ी दुष्ट हूं। तब कान्हा कहते हैं कि दुष्ट तो मैं हूं जो तुम्हें सताता रहता हूं। तब माता कहती है कि तू क्यों दूसरों का माखन खाता है? फिर कान्हा कहते हैं कि आज मैंने कोई माखन नहीं खाया।
 
मां फिर रूठ जाती है। कहती हैं तू झूठ बोलता है। मैं तुझसे अब कभी बात नहीं करूंगी। यह सुनकर फिर कान्हा मां को मनाते हैं लेकिन मैया यशोदा नहीं मानती है तो कान्हा कहते हैं कि यदि तुमको मुझसे बात नहीं करनी तो तुम मुझे बाजार से खरीदकर क्यों लाई थीं? यह सुनकर यशोदा मैया कहती हैं क्या कहा? मैं तुझे बाजार से खरीदकर लाई थी? 
ये किसने कहा तुझसे? तब कान्हा कहते हैं दाऊ भैया ने। यशोदा मैया कहती है दाऊ ने? तब कान्हा रोते हुए कहते हैं हां वे कहते हैं कि तू मेरी असली मां नहीं हो, मुझे बाजार से खरीदकर लाई हों। मुझे यहां नहीं रहना मुझे मेरी असली मां के पास भेज दो। मैं तुम्हारा असली बेटा नहीं हूं इसीलिए इतना क्रोध करती हो मुझ पर।
 
यह सुनकर माता यशोदा बहुत ही भावुक हो जाती है और अपने लल्ला को गले से लगाकर रोते हुए कहती हैं, ऐसा मत कह रे पगले। ऐसा मत कह। दाऊ ने तुझे ये कैसे कह दिया? मुझे गोधन की सौगंध है। मैं ही तेरी मां हूं और तू ही मेरा बेटा है। अगर अब तूने ऐसा कहा तो तेरी मां जीवित नहीं रहेगी। तब कान्हा कहते हैं तो दाऊ भैया झूठे हैं मैया? तब यशोदा कहती हैं हां, अगर उसने तुझे ऐसा कहा तो झूठे ही नहीं महाधूर्त हैं। आने दो उसे अब मैं उस पर क्रोध करूंगी। तब कान्हा कहते हैं उन पर क्रोध करना। अब मुझ पर कभी क्रोध न करना। मां कहती हैं हां अब मैं तुझ पर कभी क्रोध नहीं करूंगी। तब कान्हा कहते हैं तो फिर हंस कर दिखाओ। मैया मुस्कुरा देती हैं।
 
दूसरे दिन भौर के समय नदी के तट पर बैठकर एक व्यक्ति बंसी बजाता है। उसकी बांसुरी की मथुर धुन को सुनकर कान्हा उसके पास पहुंचकर बैठ जाते हैं। जब वह वंसी बजा लेता है तब उसका ध्यान कान्हा की ओर जाता है। वह कहता है अरे! छोटे मुखिया आप। आप यहां कब से बैठे हैं? तब कान्हा कहते हैं कि बहुत देर से सुन रहा हूं तुम्हारी मुरली। कितनी सुंदर बजाते हो। तब वह बंसी बेचने वाला कहता है आपको अच्छा लगा? कान्हा कहते हैं हां अच्छा लगा। ये मुरली कैसे बोलती है? तब वह व्यक्ति कहता है ये बोलती नहीं इसमें राग बजते हैं। अभी मैं जो राग बजा रहा था इसे राग भैरवी कहते हैं। तब कान्हा कहते हैं कि बहुत सुंदर राग है मुझे भी बजाना सिखा दो।
 
तब वह बंसी बेचने वाला अपनी थैली से एक छोटीसी बांसुरी निकालकर कान्हा को देकर कहता है कि आज की पहली बिक्री आप ही से। ये लीजिए इससे बजाना सीखिए। पहले आप सरस्वती मां का ध्यान कर कहें कि हे सरस्वती मां इस मुरली में संगीत के सुर भर दो। तब जैसे ही कान्हा मां सरस्वती का आह्वान करते हैं तो आकाश में सरस्वती मां यह सुनकर कान्हा को प्रणाम करके कहती हैं आज्ञा प्रभु। कान्हा कहते हैं हे सरस्वती मां आप हमारी मुरली में संगीत के सुर भर दो। मां सरस्वती कहती हैं जो आज्ञा प्रभु।
 
फिर कान्या आंख बंद कर बांसुरी इस तरह बजाते हैं जैसे कि वह सदियों से बजाते रहे हों। यह देख और सुनकर बंसी बेचने वाला दंग रह जाता है। आसमान के सभी देवता नमस्कार करके प्रसन्न चित्त हो जाते हैं। सभी बांसुरी की धुन पर नृत्य करने लगते हैं। आसपास का वातावरण बदल जाता है। बंसी बेचने वाला मंत्रमुग्ध होकर कान्हा को षाष्टांग दंडवत प्रणाम करता है। 
 
कुछ देर बाद कान्हा की बांसुरी का विराम होता है तो तभी वहां नंदबाबा आ जाते हैं और कहते हैं धनवा। ये क्या कर रहे हो धनवा? ये किसे प्रणाम कर रहे हो? बांसुरी बेचने वाला धनवा कहता है आपके पुत्र को नंदबाबा। आपका पुत्र कोई दिव्य आत्मा है। कोई महान गंधर्व है जो किसी कारणवश हमारे गोकुल में आ गया है। तब नंदबाबा कान्हा के पास बैठते हुए कहते हैं गंधर्व? ये क्या कह रहे हो? तब धनवा कहता है कि इसने ऐसी मुरली बजाई की वह हमारी आत्मा को भेद गई। ऐसा चमत्कार आज तक धरती पर नहीं हुआ। नंदबाबा कहते हैं अच्छा, इसने इतनी सुंदर मुरली बजाई। कान्हा ये सब तुमने कहां से सीखा? तब कान्हा कहते हैं कि यह मैंने नहीं बजाई इन गुरुजी ने कहा कि आंखें बंद करके मां सरस्वती से कहो। तब सरस्वती मां स्वयं ही आकर बांसुरी बजाने लगी। तब नंदबाबा कहते हैं कि हां यही हुआ होगा धनवा। फिर नंदबाबा कान्हा को लेकर वहां से चले जाते हैं।
 
फिर भोजन के दौरान नंदबाबा कहते हैं कि सुना तुमने अपने लल्ला का नया चमत्कार। यशोदा मैया कहती है अब क्या कर दिया इसने? तब नंदबाबा बताते हैं कि इसने धनवा से एक मुरली ली और जैसे ही इसने मुरली को अपने अधरों से लगाया। मुरली से अपने आप ही राग बजने लगे। तब कान्हा कहते हैं अपने आप नहीं मैया, मैंने सरस्वती मां से प्रार्थना की तो वही आकर बजाने लगी।
 
फिर दूसरे दिन भोर को कान्हा यमुना तट पर अकेले ही जाते हैं और तट पर खड़े होकर मुरली से कहते हैं कितनी प्रतीक्षा के बाद मिली हो चलो आज राधा को पुकारते हैं। धरती पर जब से आई हैं दर्शन ही नहीं दिए। फिर वे मुरली बजाने लगते हैं। मुरली की धुन संपूर्ण आकाश में और वातावरण में छा जाती है। तभी दूसरी ओर राधा अपनी मां से चोटी बंधवा रही होती है तो मुरली की आवाज सुनकर वह उठकर जाने लगती है तो मां उसे रोकती है अरे कहां जा रही है। तब राधा कहती है वहीं जहां से यह मुरली की आवाज आ रही है। कोई बुला रहा है मुझको। तब राधा की मां कहती है अरे कोई ग्वाला मुरली बजा रहा होगा अपनी गय्या को बुलाने के लिए। तब राधा कहती है कि नहीं वह मुरली तो मेरा नाम लेकर पुकार रही है राधा...राधा..राधा।

फिर एक सेवक नंदबाबा को आकर बताता है कि बरसाना गांव के मुखिया वृषभानुजी आएं हैं। उनके साथ पंचायत के लोग भी आए हैं। यशोदा मैया पूछती हैं पंचायत के लोग भी, क्यों? तब नंदबाबा कहते हैं कि अरे होली आ रही है ना। फाग उत्सव पर चर्चा करने आए होंगे। पिछले साल हमने उनके गांव बरसाना पर आक्रमण किया था। तब नंदबाबा बरसाने के मुखिया वृषभानुजी का स्वागत करते हैं। यशोदा मैया सभी के लिए छाछ और माखन लाती हैं। फिर वह एक छोटी लड़की को देखकर कहती है, अरे राधा भी आई हैं। तब वृषभानुजी कहते हैं हां जिद कर रही थी कि मुझे भी गोकुल देखना है तो मैं ले आया। तब यशोदा कहती है अच्छा किया ले आए।
 
 
फिर यशोदा राधा को अंदर ले जाती है और कहती है देखो लल्ला ये वृषभानुजी की लल्ली है राधा। इसे तुम अपने सखा से मिलाओ और गोकुल घुमाओ। कन्हा और राधा एक दूसरे को देखकर बस देखते ही रह जाते हैं। तब कृष्ण राधा का हाथ पकड़कर उसे गोकुल घुमाने के लिए ले जाते हैं। जय श्रीकृष्णा।

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