निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 24 मई के 22वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 21 ) में कान्हा बरसाने की राधा का हाथ पकड़कर उसे गोकुल घुमाने के लिए ले जाते हैं। वे सबसे पहले यमुना तट पर जाते हैं।
उधर, आसमान में राधा से श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम अभी ही क्यों मिलने आ गई? अभी तो हमारे मिलने का समय नहीं हुआ। तब राधा कहती हैं कि क्या करूं आपने मुरली की धुन छेड़कर मुझे पुकारा जो था तो मुझसे रहा नहीं गया। पिता के मन में संकल्प डालकर गोकुल आना पड़ा, और सच बात तो यह है कि आपका यह विरह हमसे सहा नहीं जाता।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह विरह तो सहना ही होगा। राधा कहती हैं जानती हूं कि श्रीदामा ने हमें इस धरती पर जो 100 बरस का विरह में रहने का श्राप दिया है हमें उसे भी तो भुगतना है। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं हां, एक भक्त का दिया हुआ श्राप हम भी नहीं टाल सकते। परंतु धरती पर धरती की परंपरा के अनुसार ही हमें लीला करनी चाहिए।
फिर श्रीकष्ण कहते हैं वो देखो भक्तराज नारद तुम्हारे बालरूप की वंदना करने आए हैं। यमुना तट पहुंचकर नारदजी राधा को प्रणाम करते हैं और कहते हैं कि इस धरती पर आपका बालरूप देखने के लिए चला आया। फिर नारदजी के पीछे अन्य देवता भी राधा और श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए आ जाते हैं। सभी उनकी स्तुति करके चले जाते हैं।
फिर उधर नगर में एक महिला को फल बेचते हुए बताया जाता है। नगर में उस वृद्ध महिला के ताजे और मीठे फल कोई नहीं लेता है। बाद में वह निराश हो जाती है। फिर वह गोकुल भ्रमण करते करते नंदबाबा के द्वार पहुंच जाती है। वहां आवाज लगाती है फल ले लो फल, लेकिन कोई भी भीतर से बाहर नहीं आता है तो वह आंगन में पहुंचकर आवाज लगाती है। तब थकान के कारण वह अपनी टोकरी नीचे उतारकर वहीं बैठ जाती है। फिर वह अपना पसीना पोंछकर आसमान में देखकर कहती हैं, हे प्रभु सारा गांव घुम आई बोवनी भी नहीं हुई। आज भूखा रखोगे प्रभु? आसमान में नारदजी और श्रीकृष्ण यह देख लेते हैं। फिर वह कहती हैं अच्छा जैसी आपकी इच्छा।
तभी भीतर के कान्हा निकलकर आंगन में आते हैं। उन्हें देखकर वह वृद्ध महिला खुश हो जाती है। आशा की एक किरण जाग जाती है। कान्हा उसके पास पहुंचकर कहते हैं ये फल मीठे हैं? वह वृद्धा कहती हैं हां बहुत मीठे हैं लोगे? तब कान्हा कहते हैं हां। फिर वृद्धा पूछती हैं कितने? तब कान्हा कहते हैं तुम कितने दोगी? तब वृद्धा कहती है कि जितने फलों का मोल दोगे उतने दे दूंगी। इस पर कान्हा पूछते हैं मोल? मोल क्या होता है? वह बूढ़ी महिला कहती है मोल नहीं समझते? तब श्रीकृष्ण कहते हैं नहीं। तब वह वृद्धा कहती है कितने भोले हो। लल्ला किसी से कोई वस्तु लेने पर उसके बदले कुछ देना होता है। उसी को मोल कहते हैं, जैसे धन।
तब कान्हा पूछते हैं धन? धन कौनसी वस्तु होती है? इस नाम की वस्तु तो मेरे पास है नहीं। तब वह वृद्धा कहती हैं तुझे नहीं मालूम जा अपनी मैया से ले आ। यह सुनकर कान्हा कहते हैं कि मैया तो जमुना स्नान को गई हैं। तब वह महिला कहती है कि घर में कुछ धान है? कान्हा कहते हैं कि हां बहुतसा है। फिर वह फल बेचने वाली बूढ़ी महिला कहती है तो जा, थोड़ासा धान ले आ, वहीं मोल होगा। यह सुनकर कान्हा कहते हैं कि फलवाली तू कैसी है मेरी मैया तो इतनी वस्तु देती हैं पर कोई मोल नहीं लेती। ग्वालिनें इतना माखन देती हैं पर कोई मोल नहीं लेती हैं। हां केवल इतना ही कहती हैं कि हमारी लल्ला गोद में बैठकर हमें भी मैया कह दें।
यह सुनकर वह महिला कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहती है तब कान्हा कहते हैं कि तुम्हारी गोद में बैठकर तुम्हें भी मैया कह दूं तो फल दे दोगी? यह सुनकर वह फलवाली भावुक होकर कहती है तू कितना भोला है रे। यदि मैं चाहूं तो भी यह मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे जैसे मनमोहन मेरी गोदी में बैठकर मुझे मां कहे। तब कान्हा कहते हैं क्यूं? तब वह महिला कहती हैं क्योंकि मैं चांडाल जाती की हूं। एक चांडाली तुम जैसे उच्चवर्ग के बालक को गोदी में कैसे बैठा सकती है?
यह सुनकर कान्हा उसकी गोदी में बैठकर कहते हैं कि ऐसे।..वह महिला घबराकर कहती हैं अरे...अरे ये क्या करते हो लल्ला। किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा। तब कान्हा कहते हैं कि क्यूं हो जाएगा? चांडाली क्या मनुष्य नहीं होती? ऊंची जाती और छोटी जाती का भेद मुझे नहीं पता। मेरे तो सारे सखा भी छोटी जाती के हैं। फिर कान्हा उस बूढ़ी अम्मा के गले लगकर कहते हैं कि तू भी तो मेरी मैया जैसी लगती है। यह देखकर उस महिला की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
तब वह महिला कहती है, तू तो मुझे कोई जादूगर लगता है लल्ला। तेरे आलिंगन से मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आत्मा की गहराई में एक प्रकाश फैल गया। अरे इससे अधिक मोल मुझे इस जीवन में और कौन देगा? ले ले लल्ला कितने भी फल चाहिए ले ले। तब कान्हा कहते हैं कि मुझे तो सारे चाहिए। फलवाली कहती है सारे, अच्छा सारे ले ले।...तब कान्हा कहते हैं कि तू चिंता न कर मां। मैं तेरे लिए बहुतसा धान भी लाकर देता हूं। यह कहकर कान्हा भीतर चले जाते हैं।
महिला खुद से कहती है अब धान की आवश्यकता नहीं लल्ला। तूने जो दे दिया वह बहुत है। यह कहकर वह सारे फल एक कपड़े में निकालकर रख देती हैं। उधर, लल्ला एक मटके में से दोनों मुठ्ठीभर धान लेकर आते हैं तो रास्ते में वह ढुलता जाता है अंत में वह 20-25 बचे धान के दाने को फलवाली के हाथों में देकर कहते हैं कि लो कितना दान ले आया मैं तुम्हारे लिए। वह फलवाली देखकर कहती है कितना धान ले आया रे? तब कान्हा कहते हैं कि भरकर लाया था रास्ते में सारे गिर गए केवल इतने ही बचे हैं। धान देखकर वह फलवाली कहती है मेरे लिए तो इतना ही बहुत है मेरी टोकरी तो इन्हीं से भर जाएगी ला दे दे। लल्ला! आज तो बहुत अच्छा सौदा हो गया रे। यह कहकर वह उन बचे हुए धान को अपनी टोकरी में रखे कपड़े में रख कर कपड़ा लपेट देती है और वह सारे फलों को दे देती है। फिर वह वहां से चली जाती है यह कहकर की बड़ा अच्छा सौदा हो गया।
फिर वह घर जाकर टोकरी को नीचे रखती है तो उसमें से खन-खन की आवाज आती है तो वह टोकरी में रखे कपड़े में लपेटे धान को देखने के लिए खोलती है तो उसमें से ढेर सारे हीरे और मोती निकलते हैं। यह देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है। यह देखकर आसामान में नारदजी भी खुश हो जाते हैं और प्रभु की स्तुति में कहते हैं कि सोच समझकर सौदा किजो ये नंद का लाल बड़ा व्यापारी।
उधर, यमुना घाट पर ग्वालिनें बात करती हैं कि उसकी शिकायत करके क्या पा लिया हमनें? तब कलावती कहती हैं कि पाया तो कुछ नहीं खो दिया है हमने। तब एक ग्वालिन कहती हैं कि ये सारी करतूत तुम्हारी है। उसी पाप का तो फल है कि अब हम उसे देखने से भी वंचित हो गए हैं। अब वह हमारे पास कभी नहीं आएगा।
ग्वालिनों की ये चर्चा कान्हा का सखा मनसुखा सुन लेता है और वह जाकर कान्हा को बता देता है। एक सखा कहता है कि इसका अर्थ ये है कि वो समझौता करने के लिए तैयार हैं। सभी कन्हा से कहते हैं कि हमें उनसे संधि करके माखन ले लेना चाहिए। तब कान्हा कहते हैं कि उन्होंने तो हमें कभी ये वचन नहीं दिया था कि अब वे कभी हमारी शिकायत नहीं करेंगी। बोल मनसुखा बोल, उनमें से किसी एक ने भी कहा कि वो फिर हमारी शिकायत नहीं करेंगी? और जो पहली शिकायत की उसके लिए क्षमा मांगने का अनुरोध किया उन्होंने? मनसुखा कहता है कि ऐसी तो कोई बात नहीं हुई। तब कान्हा कहते हैं कि तो इसका अर्थ है कि अभी समझौते का ठीक समय नहीं आया। यदि वह समझती हैं कि उनका पलड़ा भारी है तो हमें तब अपने युद्ध को नहीं रोकना चाहिए जब तक हमारा पलड़ा भारी ना हो जाए और हम उन्हें क्षमा मांगने पर विवश नहीं कर दें।
मनसुखा कहता है कि तो इसका अर्थ युद्ध बहुत लंबा चलेगा? तब कान्हा कहते हैं कि मुझे एक ऐसी चाल सूझी है कि वह हमारे एक ही हल्ले में हमारी शरण में आकर क्षमा मांगेगी। फिर वह योजना बताते हैं कि इन दिनों अधिकमास में कात्यायिनी मां का व्रत रखकर वे सभी ग्लालिनें उस वन में पीपल के वृक्ष के नीचे माता के मंदिर में पूजा के लिए जाती हैं। कल सवेरे वहीं चलो और जैसा मैं कहूं, वैसा ही करो।
तब सभी सखा एक जगह एकत्रित होकर घाट पर छिप जाते हैं। वहां नदी में सभी ग्वालिनें अपने सभी वस्त्र को घाट पर ही छोड़कर स्नान कर रही होती हैं। सभी सखा उन ग्वालिनों के वस्त्र चोरी करके वृक्ष पर बैठ कान्हा को दे देते हैं। फिर कान्हा अपनी बांसुरी निकालकर बजाने लगते हैं। सभी ग्लालिनें एक दूसरे से पूछती हैं, अरे इतनी अच्छी मुरली कौन बजा रहा है? तब एक ग्वालिन कहती हैं अरे ये तो कान्हा की मुरली की धुन लगती है। तब एक कहती है कहीं पास में ही बैठा होगा नटखट, चलो उसे बाहर जाकर ढूंढते हैं। तभी एक ग्वालिन देखती है कि घाट पर रखे वस्त्र गायब है। फिर वह चारों ओर नजरों दौड़ाती है तो उन्हें वृक्ष पर कान्हा बांसुरी बजाते हुए नजर आता है।
तब सभी कान्हा को पुकारती हैं। फिर एक कहती हैं तू यहां क्या कर रहा है रे? तो कान्हा कहते हैं मैं, मैं अपनी मुरली बजा रहा हूं पर तुम लोग यहां क्या कर रही हों? तब एक कहती हैं हम स्नान कर रहीं हैं। तब कान्हा कहते हैं अच्छी बात है करो। यह कहकर वे पुन: मुरली बजाने लग जाते हैं।
तब एक कहती हैं कान्हा हम नदी से बाहर आना चाहती हैं। फिर कान्हा कहते हैं तो आ जाओ। दूसरी कहती है परंतु हमारे पास वस्त्र नहीं है। तब कान्हा कहते हैं तो तुम वस्त्रहिन होकर नहा रही हो? एक शरमाकर कहती हैं हां। यह सुनकर कान्हा कहते हैं छी छी छी। तुम्हे पता नहीं नदी में वस्त्रहिन होकर नहाना पाप है। इससे नदी की देवी का निरादर होता है। यह सुनकर एक कहती हैं भूल हो गई पर अब हमारी सहायता करो। हमारे वस्त्र हमें लाकर दे दो। कान्हा कहते हैं कि मैं क्यों लाऊं?
तब वे कहती हैं कि फिर हम यहां से बाहर कैसे निकलें। तब कान्हा कहते हैं जिस प्रकार अंदर गई थीं उसी प्रकार बाहर निकल आओ। तब एक दूसरी ग्वालिन कहती है कि परंतु उस समय तो यहां कोई नहीं था। तब कान्हा कहते हैं कि भगवानजी तो थे। सुना नहीं तुमने की भगवानजी तो सब जगह होते हैं। तब एक कहती हैं भूल हो गई लल्ला, अब हम ऐसा नहीं करेंगे। अब हमें और मत सताओ। हम तुम्हारे हाथ जोड़ती हैं।
यह सुनकर कान्हा कहते हैं कि अच्छी बात है हम तुम्हारा ये काम कर देते हैं परंतु हमारी एक शर्त है। तभी एक ग्वालिन कहती है कि अरे वो देखो हमारे वस्त्र उसी पेड़ पर हैं। तब दूसरी ग्वालिन कहती हैं इसका मतलब यह कि तूने चुराए हैं हमारे वस्त्र? कान्हा कहते हैं कि मैंने सोचा कोई चोरकर ले जाएगा इसलिए इन्हें उठाकर मैंने अपने पास रख लिए और अब तुम कहती हो तो तुम्हें दे दूंगा। परंतु मेरी एक शर्त है। तब सभी ग्वालिनें कहती है कि हमें नहीं मानना तेरी कोई शर्त। यशोदा मैया से शिकायत करके तेरी पिटाई लगवाऊंगी। तब कान्हा कहते हैं कि नहीं देना मुझे वस्त्र। फिर कान्हा कहते हैं कि अरे मनुसखा तू तो कहता था कि ये ग्वालिनें समझौता करना चाहती हैं। तब सभी सखा यह सुनकर घाट पर आकर बैठ जाते हैं।
यह देखकर ग्वालिनें और घबरा जाती है। मनसुखा खड़ा होकर कहता है हां देख रहा हूं। तब एक ग्वालिन कहती हैं अच्छा तो सारे धूर्त एकत्रित होकर आए हैं याद रखना सारे गांव वालों से तुम्हारी पिटाई करवाऊंगी। तब मनसुखा कहता है कि कृष्णा ये क्या गांव वालों के पास जाएंगी। हम इनके वस्त्र लेकर इनके पतियों को दिखा देते हैं। ताकि वो भी जान लें कि हमारी पत्नियां खुले वन में निर्वस्त्र होकर कैसे घुमती हैं। यह सुनकर सभी ग्लालिनें घबरा जाती हैं। मनसुखा कहता है कृष्णा हमें दे दे इनके वस्त्र और तू भी नीचे आजा देख लेंगे इनको।
यह सुनकर सभी ग्वालिनें मिन्नते करने लगती हैं और कहती है हम किसी से कभी कुछ नहीं कहेंगी। हमारे वस्त्र हमें वापस दे दो। तब मनसुखा कहता है। हूं, समझौता करने को तैयार हो? सभी एक साथ कहती हैं हां। तब मनसुखा कहता है तो हमारी शर्तें सुन लो। पहली शर्त ये है कि आज के बाद कोई शिकायत लेकर यशोदा मैया के पास नहीं जाओगी। बोलो स्वीकार है? सभी एक साथ कहती हैं हां स्वीकार है। तब मनसुखा कहता है कि दूसरी शर्त यह है कि प्रतिदिन हम सबके लिए माखन और छाछ लेकर आया करोगी। बोलो स्वीकार है? सभी एक साथ कहती हैं हां स्वीकार है। फिर मनसुखा कहता है कि पिछली शिकायतों के लिए कान पकड़कर क्षमा मांगो। सभी कान पकड़ कर क्षमा मांगती हैं। तब मनसुखा कहता है कि वचन दो कि फिर कभी नदी में निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करोगी। सभी वचन देती हैं। फिर वे सभी वस्त्र देकर चले जाते हैं।
फिर एक सखा कहता है कि मान गए सेनापति एक ही चाल में हरा दिया। तब मनसुखा कहता है कि उन्हें तो उनके प्रेम ने हरा दिया। तब कान्हा कहते हैं कि प्रेम का युद्ध तो ऐसा ही होता है मनसुखा। जय श्रीकृष्णा।