निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 30 मई के 28वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 28 ) में बाल लीलाओं के समाप्त हो ने के बाद श्रीकृष्ण और राधा को थोड़ा बड़ा बताया जाता है। दोनों यमुना के घाट पर बैठे रहते हैं। दोनों एक दूसरे को निहारते रहते हैं।
तभी राधा की सखी ललीता मनसुखा के साथ झाड़ियों में से आवाज लगाकर कहती हैं राधा तेरी मैया तुझे ढूंढ रही है। राधा उठकर जाने लगती है तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि फिर कब मिलोगी, कल आओगी? मैं यहीं प्रतीक्षा करूंगा। तब राधा कहती हैं कि रोज-रोज कैसे गोकुल आ सकती हूं। कल किस बहाने से आऊंगी? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अच्छी बात है तो कल मैं बरसाने आ जाऊंगा। जब मुरली बजाऊं तो समझ जाना की मैं नदी किनारे तुम्हारी राह देख रहा हूं। इस पर राधा कहती हैं कि ना ना, मैं हाथ जोड़ती हूं मुरली मत बजाना। तुम्हारी मुरली की धुन से सभी गांववालियों को पता चल जाएगा। पहले ही घर-घर में मेरी और तुम्हारी चर्चा होने लगी है। तू नहीं जानता तेरे लिए मुझे कितनी निंदा सहना पड़ती है।
उनका ये वार्तालाप सुन रही एक सखी ललीता और मनसुखा के पास आकर कहती है कि ललीता राधा की मैया हम सबको ढूंढते हुए इसी ओर आ रही है। तब ललीला जोर से बोलती है राधा सखियां कहती हैं कि मैया इसी ओर आ रही है। तब राधा कहती हैं कि अब मुझे जाने दो। श्रीकृष्ण हाथ पकड़कर कहते हैं कि पहले कल मिलने का वचन दो। तब राधा वचन देकर चली जाती है।
उधर, मनसुखा कहता है, कान्हा तुम तो प्रेम के चक्कर में ऐसे गुम हुए कि तुम्हें तो कोई खबर ही नहीं है कि पंचायत में क्या फैसला हुआ है। कान्हा पूछते हैं क्या हुआ? तब मनसुखा कहता है कि अब तक यह फैसला ही नहीं हुआ है कि इस बार होली बरसाने में होगी या गोकुल में। नंदबाबा अड़े हुए हैं कि होली गोकुल में ही हो, लेकिन बरसाने वाले भी अड़े हुए की होली बरसाने में ही हो। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि तो चलो अभी फैसला कराए देते हैं।
उधर, श्रीकृष्ण के पहुंचने के पहले ही निर्णय हो जाता है कि इस बार भी होली गोकुल में ही होगी। तब वहां बरसाने की ग्वालिनों और गोपियों के बीच नोंकझोक होती है। फिर बरसाने और गोकुल के लोगों के बीच होली का रंगारंग उत्सव मनता है। कान्हा के संग राधा की होली सभी गोप और गोपियां देखते ही रह जाते हैं। आकाश से देवता लोग फूलों की बारिश कर देते हैं।
फिर सभी लोग यमुना घाट पर स्नान करने जाते हैं। स्नान करते हुए लोग कहते हैं कि जीत तो बरसाने वालों की ही हुई हैं। तब एक कहता है कि अरे बरसाने वालों की नहीं बरसाने वालियों की। दूसरे घाट पर यशोदा मैया और राधा की माता स्नान करते हुए गोपिकाओं की बातें करती रहती हैं।
बाद में राधा कि सखियां राधा को यमुना घाट पर छोड़ते हुए कहती हैं कि यहां तक तो हम तुझे ले आए हैं अब आगे तेरा काम। तेरा कान्हा बांसों के झुंड के पीछे तेरी राह देख रहा है। फिर राधा कान्हा के पास चली जाती है तब एक सखी कहती हैं अच्छा ललीला तू सच-सच बता कि तू भी अंदर ही अंदर कान्हा से बहुत प्रेम करती है? तब ललीता कहती हैं कि अंदर ही अंदर क्यूं? अंदर-बाहर दोनों तरह से करती हूं। तब वह सखी विशाखा कहती हैं तो फिर ये क्या है राधा को स्वयं उसके पास भेजकर पहरा देना?
तब ललीला कहती हैं कि क्योंकि यही प्रेम की रीत है। जिससे प्रेम करो उसकी खुशी को अपनी खुशी मानो। प्रेम स्वार्थ का नहीं तपस्या का नाम है विशाखा। तब विशाखा कहती हैं तू धन्य है ललीता। मेरी दृष्टि में तेरा स्थान राधा से भी ऊंचा है। तब ललीला कहती हैं, छी ऐसा मत कह राधा के लिए। जिसे मेरा प्रियतम प्रेम करता है उसे मैं अपनी स्वामिनी मानती हूं। यह कहने के बाद ललीता कहती हैं कि वैसे कृष्ण से कौन प्रेम नहीं करती? सच बोल तूभी नहीं करती? तब विशाखा थोड़ा संकोच करते हुए कहती हैं हां। इस पर विशाखा कहती हैं पलगी प्रेम करती है तो देना भी सीख। वह भी हंसकर।
तभी कुछ ग्वालिनें सिर पर मटकी रखें से निकल रही होती हैं तो पूछती हैं यहां बैठी क्या कर रही हो? तब ललीला कहती हैं कि सुखिया की प्रतीक्षा कर रही हैं। हम लोग यमुना स्नान को जा रही हैं।
फिर उधर, राधा और श्रीकृष्ण को रासलीला करते हुए बताया जाता है। श्रीकृष्ण को राधा अपने वस्त्र पहना कर राधा बना देती है और खुद श्रीकृष्ण बन जाती है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं देखो बन गया राधा। तब राधा कहती हैं कि यह तो तुमने वस्त्र पहने हैं। असली में राधा बनोगे तब समझ पाओगे कि राधा के प्रेम की पीड़ा क्या है। हमारे प्रेम का ऋण है आप पर जिसे आप कभी नहीं उतार सकते।
तब गोलोक में श्रीकृष्ण बताते हैं राधा को कि हम एक दूसरे से अलग कहां है। इसलिए ऋण कैसा? जैसे दूध में सफेदी, आग में गर्मी है वैसे ही हम दोनों एक ही हैं। तब श्रीकृष्ण इस संपूर्ण ब्रह्माण के बारे में कहते हैं कि यहां सबकुछ एक ही है। मारने वाले भी हम और मरने वाले भी हम। सभी कुछ हम ही हैं तो हम किससे प्रेम करें। श्रीकृष्ण और राधा दोनों में ज्ञान की चर्चा चलती है। लेकिन अंत में राधा कहती हैं कि आप भक्तों के अधीन हैं तो बस सिद्ध हो गया कि आप हमारे प्रेम के ऋणि हैं और सदा रहेंगे।
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस ऋण को चुकाने का कोई साधन है? तब राधा कहती हैं कि हां एक साधन है प्रेम। जब इस बैरागी मन को त्यागकर राधा जैसा हृदय आप अपने वक्ष में धारण करेंगे और उसमें प्रेम के आनंद में पीड़ा और पीड़ा में भी प्रेम का आनंद अनुभव करेंगे तब यह ऋण उतर जाएगा।
यह सुनकर कृष्ण कहते हैं कि अच्छी बात है। हम तुम्हारा ऋण अवश्य ही चुका देंगे। तब राधा कहती हैं कब? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम कलियुग में एक ऐसा अवतार लेंगे जिसमें शरीर तो कृष्ण का ही होगा परंतु हृदय राधा का होगा। यह सुनकर राधा कहती हैं कि अहा कितना आनंद आएगा जब राधा की भांति दरदर होकर केवल कृष्ण-कृष्ण पुकारते फिरोगे। तब श्रीकृष्ण कहते हैं हां, वही करूंगा। वही करूंगा। जय श्रीकृष्णा।