निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 4 जुलाई के 63वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 63 ) में उद्धव श्रीकृष्ण का संदेश लेकर जाते हैं तो रास्ते में ही गोपियां उन्हें रोककर वह पत्र उनसे छीन लेती हैं और उसे आपस में खींचतान करके फांड़ देती हैं। यह देखकर उद्ध क्रोधित हो जाते हैं। उद्धव गोपियों को सच्चा ज्ञान देने के लिए वृंदावन गए हैं। आगे...
उद्धव सभी से पत्र के टूकड़े एकत्रित करने के बाद कहते हैं कि इस पत्र में किसी का भी नाम किसी भी स्थान पर नहीं लिखा हुआ है।...यह सुनकर गोपियां अचंभित हो जाती हैं। फिर एक गोपी कहती हैं क्या राधा का भी नाम नहीं लिखा है उद्धवजी? तब उद्धवजी क्रोधित होकर कहते हैं नहीं। इस पत्र में राधा का भी नाम नहीं लिखा है।...यह सुनकर गोपियां और भी ज्यादा अचंभित हो जाती हैं।
तब एक गोपी कहती हैं आप झूठ बोलते हैं जरूर लिखा होगा मेरा भी नाम। कृष्ण मुझे कभी नहीं भूल सकता मुझे मालूम है। तब दूसरी कहती हैं कृष्ण ने एक बार मेरी गगरी फोड़ दी थी। ये बात उसे अवश्य याद होगी न उद्धवजी?...इस तरह सभी गोपियां अपनी-अपनी बातें बताती हैं। फिर कहती हैं हमारी कौन-कौन सी यादें उसे आती हैं बताइये न उद्धवजी?
फिर सभी गोपिया उद्धवजी के दोनों हाथ पकड़कर उन्हें हिलाते हुए कहती हैं बताइये न, बताइये न। उद्धव परेशान होकर कहते हैं शांत हो जाइये। सभी उद्धवजी को खींचकर एक बगीचे में ले जाकर उन्हें एक पत्थर पर बैठा देती हैं और फिर खुद भी बैठकर पूछती हैं बताइये कि उसे हमारी कुछ याद है कि नहीं? दूसरी कहती हैं अरी उस निर्मोही के लिए क्यों रोती हो, उसे हमारी याद आती तो क्या एक बार भी वह मिलने नहीं आता? तब दूसरी कहती हैं कि उसे अवकाश ही कहां मिला होगा। तब तीसरी कहती हैं कि सुना है कि वहां कोई कुब्जा रानी है जो उसके साथ बड़ी बनी हुई है। तब एक ओर कहती हैं कि अरे कोई कुब्जा थोड़े ही ना होगी। वो तो वहां का राजकुमार है। उसके आगे पीछे तो हजारों नगरवालियां घुमती होंगी। हम जैसी गवांर ग्वालिनों की याद उसे क्यों आने लगी? अगर उसे राधा का नाम याद नहीं तो क्या वह हमारा-तुम्हारा नाम याद रखेगा?
तब एक और गोपी उद्धवजी का हाथ पकड़कर उन्हें झकझोरकर कहती हैं बोलो ना उद्धवजी। उसने हमारे पास भेजा है तो क्या संदेशा देकर भेजा है? उसने तो वचन दिया था कि वह अपना कर्तव्य पूरा करके सीधा हमारे पास लौट आएगा क्या अभी तक पूरा नहीं हुआ है उसका कर्तव्य?...उद्धव सभी के बीच हैरान और परेशान से बैठे रहते हैं। उद्धवजी को कोई कुछ बोलने ही नहीं देतीं और वे खुद ही कुछ न कुछ कृष्ण के बारे में बोलती रहती हैं। तब एक पूछती हैं क्या उसने ये लिखा है कि वह नहीं आ सकता या वह नहीं आएगा?
यह सुनकर उद्धवजी खींझकर कहते हैं.. हां। उन्होंने यही लिखा है। मैं अब कभी नहीं आ सकता और मुझे भूल जाओ। यह सुनकर गोपिकाएं शाक्ड हो जाती हैं।
तब एक गोपी कहती हैं कि ये लिखा है इस चिट्ठी में कि मैं नहीं आऊंगा और मुझे भूल जाओ? इस पर उद्धव क्रोधित होकर कहते हैं हां। तब दूसरी कहती हैं कि सच कहते हो या कि हमें सताने के लिए झूठमुठ बोल रहे हो उद्धव भैया? तब उद्धव कहते हैं कि मैं भगवान श्रीकृष्ण की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं सत्य कह रहा हूं। इस पत्र में उन्होंने यही संदेशा भेजा है कि मुझे भूल जाओ।
एक गोपिका कहती हैं यदि इस चिट्ठी में यही लिखा है तो तुम इस चिठ्ठी को ब्रज की धरती पर लाए कैसे? यह चिट्ठी नहीं ब्रज का अपमान पत्र है। इसके तो चिथड़े-चिथड़े कर देने चाहिए।...ऐसा कहकर वह गोपी उद्धवजी के हाथ में से चिट्ठियों के टूकड़े छीनकर फेंक देती हैं। सभी गोपियां छपटकर अपना अपना टूकड़ा लेकर दूर भागती हैं और फिर फिर रोते हुए उसके और भी टूकड़े-टूकड़े करने लग जाती हैं।
उद्धवजी भी उनके पीछे भागते हैं और कहते हैं क्या कर रही हो तुम लोग। ये क्या कर दिया तुमने। जानती हो ये क्या कर रही हो तुम? फिर वे सभी से टूकड़े एकत्रित करके क्रोधित होकर कहते हैं जानती हो तुमने क्या किया? ये पत्र स्वयं परब्रह्म के हाथ का लिखा पत्र था।...ये वो गूढ़ ज्ञान था जिसकी खोज में अनेक जन्मों तक ऋषि-मुनि तपस्या करते रहते हैं और उस ज्ञान के चिथड़े-चिथड़े कर दिए तुम लोगों ने।
तब एक गोपिका कहती हैं, अरे इतना ही दुर्लभ ज्ञान था तो उन्हें ऋषि-मुनियों के पास ले जाते। हम जैसी गवांर ग्वालिनों के पास इसे लाने की क्या जरूरत थीं बोलो?...तब उद्धवजी कहते हैं तुम्हारे कल्याण के लिए। शारीरिक मोह की जिस भावना को तुम प्रेम-प्रेम करती-फिरती हो उस प्रेम के दलदल से बाहर निकालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने तुम्हारे नाम ये पत्र लिखा था।...उन्होंने तुम्हें ये लिखा था कि मेरे जिस सुंदर शरीर से तुम प्रेम करती हो वह नश्वर है।
फिर एक गोपी पूछती हैं, क्या उसके हाथों में (परब्रह्म) वही नरमी है? उसके स्पर्श में वही गरमी है जो कृष्ण कन्हैया के हाथों में है? क्या हम उसे गले लगा सकते हैं?
तब उद्धव हंसते हुए कहते हैं, नहीं नहीं नहीं। न उसके हाथ है, न उसके नयन है, न वो किसीके गले लग सकता है। वो परब्रह्म, परमेश्वर, निराकार, अविनाशी और अचल है। न वो पैरों से चलता है, न वो कहीं आता और न जाता है क्योंकि वह हर समय हर स्थान पर व्याप्त और विराजमान है। ना वो पैदा होता है और न मरता है। वह भूत, भविष्य और वर्तमान की सीमाओं से परे है।
तब एक गोपी कहती हैं, ना वह कहीं आता है और ना वह कहीं जाता है तो फिर हमारी उससे भेंट कहां होगी उद्धव भैया? उद्धव मुस्कुराते हैं, फिर एक दूसरी गोपी पूछती हैं- अगर उसके हाथ नहीं तो वह हमें छुएगा कैसे? उसके नयन नहीं तो वह हमें देखेगा कैसे? पहली कहती हैं कि अगर हमें कोई देखने वाला नहीं हो तो हमारे इस रूप की सुंदरता का क्या प्रयोजन? हम सजे-संवरे किसके लिए उद्धव भैया? तब तीसरी कहती हैं ना भैया, हमें ऐसे व्यर्थ के भगवान से क्या लेना। पहली कहती हैं, सब व्यर्थ की बातें छोड़ों उद्धवजी उससे ये कहिये कि कन्हैया ने आपको ये संदेशा लेकर भेजा है तो क्या समझकर भेजा है? एक अन्य कहती हैं, उसने ये लिखा है कि मुझसे प्रेम न करो, मुझे भूल जाओ।..फिर वह गोपी उद्धव का हाथ पकड़कर हिलाते हुए कहती हैं उद्धव भैया कहीं वह पागल तो नहीं हो गया?
यह सुनकर पहली वाली कहती हैं, अरे वह पागल भी हो गया ना तो भी वह हमारे प्रेम को नहीं भूला सकता। वास्तव में ये मथुरा वाले छलबल करने में बड़े प्रवीण हैं। पहले वह अक्रूर आया और कृष्ण-कन्हैया को न जाने क्या-क्या पट्टी पढ़ाकर हमसे दूर ले गया और अब ये उद्धव भैया आए हैं एक नया उपदेश देने कि कृष्ण भगवान को भूल जाओ। तब दूसरी कहती हैं ना भैया ना, ऐसा अत्याचार हम पर न करो और यदि कृष्ण ने ये संदेश हमारे पास भेजा है तो उसी के पास ले जाइये और उससे जाकर कहिये कि वही उस ईश्वर को ध्याये। हमें अपने प्रेम मार्ग से पथभ्रष्ट ना करें। तीसरी कहती हैं कि पहले ही हम विरह में दु:खी हैं और ऐसे कटु उपदेश देकर और दु:खी मत करो।
यह सुनकर उद्धव कहते हैं तुम्हें दु:ख देने के लिए नहीं, तुम्हारे दु:ख दूर करने के लिए उन्होंने ये संदेशा भेजा है।...देखो प्रेम एक मोह का बंधन है। जो इस मोह के दलदल में फंसेगा वह अवश्य दु:ख पाएगा। और मैं कहता हूं कि इस माया के अंधकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाश में आओ। जहां न मिलने का सुख है और न बिछड़ने का दु:ख है। केवल परमादंन ही परमानंद है।
तब एक पहली वाली गोपिका कहती है- मिलने का सुख नहीं, बिछड़ने का दु:ख नहीं, ऐसा जीवन जीने से क्या लाभ? यह सुनकर उद्धव कहते हैं- जीवन का वास्तविक लाभ है परब्रह्म परमानंद की प्राप्ति। यह सुनकर दूसरी कहती हैं एक जो अपने प्रेमी को प्राप्त ना कर सकी वो परमात्मा को प्राप्त करके क्या करेगी?
यह सुनकर उद्धवजी कहते हैं परमात्मा को प्राप्त करोगे तो परमशांति को प्राप्त करोगे। ये जो तुम्हारी हाय-हाय है ना। हाय मुझे प्रेमी नहीं मिला, हाय मुझे झूठे वचन देकर चला गया, हाय मुझसे विरह की पीड़ा नहीं सही जाती। सब शांत हो जाएगा। न झूठे वचन का दु:ख रहेगा और न विरह की पीड़ा रहेगी। सब शांत हो जाएगा।
तब एक पूछती है सब शांत हो जाएगा? उद्धव कहते हैं हां। तब वह कहती हैं, जैसे शव शांत हो जाता है? उद्धव चौंक जाते हैं। उनके कानों में तीन बार ये आवाज गूंजती है।...तब पहली वाली कहती हैं, उद्धवजी विरह की पीड़ा में जो आनंद है उस आनंद को आप जानते हैं?
यह सुनकर उद्धव हंसते हुए कहते हैं, पीड़ा में आनंद? तब दूसरी कहती हैं हां पीड़ा का आनंद। पीड़ा का परमानंद। ...उद्धवजी एक बार फिर चौंक जाते हैं।...फिर वह कहती हैं पर वो तो तुम तब जानोगे ना जब प्रेम करोगे। क्या तुमने कभी किसी से प्रेम किया है?
यह सुनकर उद्धव हंसते हुए कहते हैं, प्रेम आदि भावनाओं में फंसना मूर्खों का काम है। ज्ञानी इन बातों में नहीं फंसता। तब वह दूसरी गोपिका कहती हैं, अरे ज्ञानी कहते हो अपने आप को...प्रेम का तो ज्ञान नहीं फिर ज्ञानी कैसे हो गए? उद्धवजी एक बार फिर चौंक जाते हैं। फिर वह गोपी कहती हैं भैया प्रेम करो। प्रेम की पीड़ा को सहो। तब तुम्हें इस बात का ज्ञान हो जाएगा कि प्रेम की पीड़ा में इतना आनंद क्यों है। तब तुम संपूर्ण ज्ञानी बनोगे। अभी तुम्हारा ज्ञान अधूरा है।... उद्धव चौंक जाते हैं। उनके कानों में तीन बार ये आवाज गूंजती है।
फिर सभी गोपियां गाकर और नृत्य करके उद्धव को प्रेम की महिमा सुनाती हैं और उद्धवजी के ज्ञान का उपहास उड़ाती है। वे कहती हैं कि ये ढाई अक्षर प्रेम का सब पर भारी है। नृत्य करते हुए वे उद्धवजी का मुकुट उतार देती हैं और फिर उनके बाल खोल देती हैं। हैरान परेशान उद्धव को कुछ भी समझ में नहीं आता है कि वे क्या करें। फिर गोपियां मद मस्त होकर उद्धवजी के गाल पर किचड़ लगा देती हैं। फिर वे कई तरह के स्वांग रचती हैं और अंत में उद्धवजी को वे सभी पागल जैसा बना देती हैं। वे सभी सखियां उन्हें पकड़कर यमुना तट पर राधा के पास ले जाकर खड़ी कर देती हैं।
उद्धवजी राधारानी को देखकर मंत्रमुग्ध जैसे हो जाते हैं। उद्धव के मन में कई तरह की भावनाएं उमड़ती है और उनके हृदय में यह भावना जागती है इन्हें प्रणाम करो उधव तो तुम्हें मोक्ष मिल जाएगा।...तभी एक गोपिका कहती हैं लो राधा ये कृष्ण का नया संदेश लेकर आए हैं।...राधा चुप और उदास बैठी रहती हैं। उद्धव उन्हें आश्चर्य से देखते रहते हैं। फिर से वह गोपी कहती हैं लो राधा सुन लो ये कृष्ण का नया संदेश लेकर आए हैं।
यह सुनकर राधा प्रसन्न होकर कहती हैं कृष्ण का संदेश? क्या उनके आने का संदेश है क्या? कब आएंगे? तब एक गोपी कहती हैं अरे आने का संदेश नहीं है। उन्होंने तो कहा है कि मुझे भूल जाओ। यह सुनकर राधा चौंक जाती है। आगे वह गोपी कहती हैं और इन्हें भेजा है कि ये हमें योग ज्ञान और तप सिखाएं जिससे हमारा कल्याण हो जाए।
यह सुनकर राधा कहती हैं हमारा कल्याण। तप और ज्ञान से हमारा कल्याण होगा? ये किसने बता दिया आपको? हमारा कल्याण तप और जोगा से नहीं केवल संजोग से होगा। केवल संजोग। कृष्ण के साथ संजोग और पूर्ण संजोग। तब दोनों में कोई अंतर ना रह जाए। जब कृष्ण राधा और राधा कृष्ण हो जाए। बस हम तो इसी को योग मानते हैं और यही हमारा प्रेमयोग है।...यह सुनकर उद्धव अचंभित ही खड़े रहते हैं।.. कोई दूसरा योग यदि हमें सिखाने आए हो तो उसकी आवश्यकता नहीं है भैया। जिन्होंने आपको भेजा है उनसे कहना कि उनके और कई भक्त हैं ये ज्ञान उन्हीं को सिखाएं। हमें तो केवल अपने दर्शन दें और गले लगाएं। बस और न हमें कुछ मांगना है और ना हमें अपना प्रेमयोग छोड़कर कोई दूसरा योग सीखना है।...यह सुनकर उद्धव अचंभित रह जाते हैं।
फिर उद्धव कहते हैं ये जो आपका प्रेमयोग है ना इसमें दु:ख ही दु:ख है, पीड़ा ही पीड़ा है। भगवान ने मुझे यही उपदेश देने के लिए मुझे आपके पास भेजा है। जिससे आपको इस प्रेम की पीड़ा से मुक्ति मिले। यह सुनकर राधा कहती हैं, प्रेम की पीड़ा से मुक्ति दिलाने आए हैं आप?
उद्धव कहते हैं हां। तब राधा कहती है परंतु हमने मुक्ति कब मांगी है? किसे चाहिए मुक्ति इस पीड़ा से? यह सुनकर उद्धव कहते हैं ये सब आसक्ति की बाते हैं। अन्यथा जोगन का ध्येय पीड़ा पाना नहीं आनंद पाना होता है। यह सुनकर राधा कहती हैं परंतु आनंद की परिभाषा सबके लिए एक तो नहीं हो सकती। किसको किस बात में आनंद आता है ये तो सबका अलग-अलग दृष्टिकोण है।
तब उद्धव कहते हैं- आनंद का मापदंड सबका अलग-अलग हो सकता है परंतु एक बात निश्चित है। पीड़ा को कोई आनंद नहीं कह सकता। तब राधा कहती हैं कह सकता है। जिसे पीड़ा में आनंद आए वह कह सकता है। तब उद्धव हंसते हुए कहते हैं ऐसा कौन पागल है जिसे पीड़ा में आनंद आता हो? तब राधा कहती हैं- एक मां और एक प्रेमिका।
यह सुनकर उद्धव चौंककर पूछते हैं मां और प्रेमिका? मैं कुछ समझा नहीं? तब राधा कहती हैं देखिये पुत्र को जन्म देते हुए हर स्त्री को कितनी असहनीय पीड़ा होती है परंतु एक मां के लिए पुत्र जन्म में इतना आनंद है कि संसार की प्रत्येक स्त्री इस पीड़ा के लिए ललायित रहती हैं। यही हाल प्रेमिका का है। जिससे जीवन में प्रेम का उपहार मिल जाए और जो अपने अधरों से प्रेम रस का प्यला लगा ले उसे संसार में किसी और आनंद की आवश्यकता नहीं रह जाती।
यह सुनकर छोड़ा चौंककर फिर से अपने को संभालकर उद्धव अपने ज्ञान का घमंड करते हुए तर्क करते हैं और कहते हैं यही तो मैं कहता हूं। अधरों का प्याला तो क्षण मात्र के लिए हो सकता है। तत्पश्चात जो जीवनभर का विरह तड़पाता है उसका क्या उपचार है?
तब राधा कहती है, ये जो आप बार-बार विरह-विरह की बात कह रहे हैं..विरह कहां है? विरह तो शरीरों का हो सकता है। अन्यथा प्रेमियों की आत्मा में विरह नहीं होता। वे तो प्रत्येक्ष क्षण एक दूसरे के साथ ही रहते हैं।...यह सुनकर उद्धव हंसते हुए कहते हैं ये सब कल्पना की बाते हैं। अज्ञानी मानव इसी प्रकार की झूठी कल्पना के तारों में अपने आप को उलझाकर अपने आपको ही धोका देता रहता है।
यह सुनकर राधा कहती हैं आपने हमारी बात को कल्पना और झूठी कल्पना कहा? प्रेमियों की बात परमसत्य होती है। हमने आपसे कह दिया कि प्रेमी प्रत्येक क्षण एक दूसरे के साथ ही रहते हैं तो सत्य ही कहा है।...इस पर उद्धव कहते हैं परंतु ये वह सत्य है जो दिखाई नहीं देता। मन से मान लिया जाता है इसलिए मैं इसे कल्पना ही कहता हूं।
यह सुनकर राधा कहती हैं आप देखना चाहते हैं? उद्धव कहते हैं हां।... तब राधा कहती हैं तो ये देखिये हमारे कृष्ण हमारे साथ है कि नहीं।...तभी उद्धव को राधा के साथ कृष्ण बैठे हुए दिखाई देते हैं। सभी गोपिकाएं उन्हें देखकर आश्चर्य करती हैं। कृष्ण राधा को देखकर मुस्कुरा रहे होते हैं और राधा उनके कंधों पर सिर रख देती हैं तो कृष्ण भी उनके सिर पर अपना सिर रख देते हैं।
उद्धव हाथ जोड़ते हुए नीचे बैठकर श्रीकृष्ण के चरण छूकर देखते हैं कि कहीं यह उनका भ्रम तो नहीं। श्रीकृष्ण उद्धव को देखकर मुस्कुराते हैं। उद्धव दूसरी बार उनके चरण छूकर देखते हैं तो श्रीकृष्ण हंस देते हैं। राधा भी उनके साथ हंसने लगती हैं। उद्धव आश्चर्य से देखते हैं और फिर भी उन्हें विश्वास नहीं होता है कि ये उनका भ्रम है या हकीकत तब वे श्रीकृष्ण के हाथ छूकर देखते हैं और फिर अपनी आंखें मसलते हैं और हाथ जोड़कर कहते हैं प्रभु ये क्या लीला है? आप वहां हो कि यहां?
तब श्रीकृष्ण कहते हैं, उद्धव भैया मैंने आपसे कहा था ना कि मैं तो केवल प्रेम के वश में हूं। जहां मेरा प्रेमी मुझे बुलाएगा मैं वहीं हूं। वास्तव में मैं तो सब जगहा हूं केवल दिखता नहीं। जैसे अंधकार में वहीं पड़ी हुई कोई वस्तु दिखाई नहीं देती और दीपक जलते ही वह वस्तु दिखाई देती है। उसी प्रकार यदि मुझे देखना हो तो केवल प्रेम और भक्ति का दीपक जलाओ। मुझे वहीं खड़ा पाओगे। यही परमसत्य है उद्धवजी और यही परमज्ञान है।
उद्धवजी को मिल जाता है सच्चा प्रेम प्रमाण और सारे संशय मिट जाते हैं। अहंकार मिटकर सच्चा ज्ञान प्राप्त हो जाता है। प्रेम की ऐसी अवस्था देखकर उनके ज्ञान और गुमान पर पानी फिर जाता है। राधा और कृष्ण को संग देखकर वे खुद को धन्य पाते हैं। वे दोनों के चरणों में अपना सिर रख देते हैं और जैसे ही सिर ऊपर उठाते हैं तो श्रीकृष्ण को नदारद पाते हैं। वे इधर-उधर देखकर कहते हैं प्रभु। कहां गए कृष्ण?
तब राधा कहती है देखा इसी प्रकार सताते हैं। क्षण भर के लिए आते हैं और फिर अंतरधान हो जाते हैं। इतना तड़पाना, इतना तरसाना कोई अच्छी बात है उद्धवजी?
... यह सुनकर उद्धवजी राधारानी को बस देखते ही रह जाते हैं।...राधा कहती हैं अब उसे कहां ढूंढने जाऊं? अवश्य किसी कुंजगली में किसी लता के पीछे जाकर छिप गया होगा। हां उद्धवजी मेरा कान्हा वहीं होगा। राधा व्याकुल और खुश होकर कहती हैं- हां उद्धवजी अवश्य मेरा कान्हा वहीं होगा। वहीं छिपा होगा। ऐसा कहकर राधारानी उठकर वहां से चली जाती हैं।
उद्धवजी देखते ही रह जाते हैं। वे खड़े होते हैं तब एक गोपी कहती हैं देख लिया ना प्रेमिका का हाल। इस तरह से बावरी होकर दिन-दिन भर घूमती रहती हैं। लताओं से, पेड़ों से और मधुओं से पूछती हैं कि मेरा श्याम कहां है? कहां है मेरा कान्हा?जय श्री राधा कृष्ण।