निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 8 जुलाई के 67वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 67 ) में श्रीकृष्ण के जरासंध की कथा सुनाने के बाद शल्य सुनाता हैं जरासंध को काल यवन के जन्म की कथा और कहता है कि वह अजेय है। उसे किसी भी प्रकार के अस्त्र शस्त्र से नहीं मारा जा सकता और श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह भी कि ना उसे सूर्यवंश मार सकता है और न चंद्रवंशी। जरासंध पूछता है कि परंतु वह यवन देश का राजा कैसे बन गया।
जब रंभा काल यवन को सौंप कर स्वर्ग चली गई तो रंभा के जाने से शेशिरायण को बहुत दुख हुआ और वे फिर तपस्या करने चले गए। साथ में वे उस पुत्र को भी वन में ले गए। तब शल्य कहता है कि जिस समय शेशिरायण की प्रेमलीला चल रही थी उन्हीं दिनों यवन देश पर तालजंघ नाम का राजा राज्य करता था। तालजंघ ने अपनी राज्य की सीमाएं बहुत दूर तक फैला दी थी। वह दूसरे देश पर आक्रमण कर उन्हें लूट लेता था। उसके पार अपार शक्ति और धन था। वह खूब रंगरलियों में मस्त रहता था। लेकिन उसके घर में कोई संतान नहीं थी। संतान का अभाव उसके मन में निरंतर चुभता रहता था। उसे इस बात की चिंता भी रहती थी कि उसका वारिस कौन होगा। तब उसके मंत्री ने उसे बताया कि आनंदगिरि पर्वत की एक गुफा में एक बाबाजी रहते हैं उन्हें आने वाला कल और गुजरा हुआ काल हाथ में रखे आइये की तरह प्रत्यक्ष दिखाई देता है। वो ही आपके सवाल का जवाब देंगे?
फिर तालजंघ का मंत्री उसे आनंदगिरि की गुफा में बाबाजी के पास ले गया। वह बाबा कहते हैं कि ऊपर वाला सबका दु:ख मिटाना जानते हैं और उसने तेरे दु:खों को मिटाने का उपाय भी कर लिया है। तेरा दु:ख सिर्फ इतना ही है कि तुझे एक बच्चा चाहिए जो तेरी सल्तनत और तेरे राजपाट का वारिस हो। जिसकी वीरता पर तू और तेरी प्रजा दोनों को गर्व हो सके, तो अपने राज्य की पूर्वी सीमा पर जाओ, वहां तारकण्ड वन में तुम्हें वो बच्चा मिलेगा। वहीं तुम्हारा बेटा कहलाएगा। वह रंभा और शेशिरायण का पुत्र है। उसे शेशिरायण से मांग लेना और उसे अपना दत्तक पुत्र बना ले...जा। शिव के वरदाना से वह पुत्र जन्मा है।
तालजंघ और उसका मंत्री दोनों तारकण्ड नामक वन में शेशिरायण के पास पहुंचते हैं। पहले तो शेशिरायण इसके लिए मना कर देते हैं लेकिन तालजंघ बताता है कि अपनी संतान का भला हो सकता है। मंत्री कहता है कि हे महात्मा जो व्यक्ति आपसे अपकी संतान देने की भीख मांग रहा है वह एक चक्रवर्ती सम्राट है जिसके विशाल साम्राज्य का अधिकारी आपका पुत्र ही होगा। ये जो यहां आपका पुत्र जंगल में पड़ा है यह राजकुमार होगा और इसके आगे-पीछे सैंकड़ों दास-दासियां होंगे। इस बच्चे की तकदीर में एक महाप्रतापी सम्राट बनना लिखा है। इसलिए हम दोनों को आपके पास इस बच्चे को लेने के लिए आनंनगिरि गुफा वाले बाबा ने भेजा है। उन्हीं बाबा ने बताया कि यह बालक किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकता जो मुनि शेशिरायण और अप्सरा रंभा का पुत्र है। यह सुनकर शेशिरायण कहते हैं ये बात तो मेरे और भगवान शिव के अलावा कोई नहीं जानता था। वो बाबाजी अवश्य कोई चमत्कारी योगी है जिन्होंने आपको हमारे यहां भेजा है। उनकी इस बात को तो आदेश मानना होगा।
फिर शल्य कहते हैं शेशिनारायण ऋषि ने वह बालक उसे दे दिया। फिर बालक को उसने बड़े लाड़-प्यार से पाला और उसका नाम रख दिया कालयवन। फिर मलेच्छ राजा की मृत्यु के पश्चात कालयवन यवन देश का राजा बन गया। वो एक ऐसा वीर सम्राट है कि जिसने संसार के समस्त वीरों को चुनौती दे रखी है। परंतु आज तक किसी में भी उससे लड़ने की न शक्ति है और न साहस। वो आज युद्ध करने के लिए तरस रहा है सम्राट.. तरस रहा है। इसलिए मैंने सोचा कि यदि आप आज्ञा दें तो मैं कालयवन को मथुरा पर आक्रमण करने के लिए उकसाऊ।...
यह सुनकर जरासंध प्रसन्न होकर कहता है अवश्य महाराज शल्य अवश्य। यदि कालयवन मथुरा पर सामने से धावा करे तो हम मथुरा को पीछे से घेर लेंगे। फिर मथुरा वालों के लिए बचना मुश्लिक हो जाएगा। महाराज शल्य आप आज ही यवन देश कूच करके कालयवन के पास हमारा संदेश लेकर जाइये और उससे कहिये कि यदि जरासंध और कालयवन की शक्तियां आपस में मिल जाए तो इस धरती का चित्र ही बदल जाएगा। शल्य प्रसन्न होकर कहता है- हां सम्राट हां।
उधर, कालयवन और उसकी सैन्य शक्ति को बताया जाता है। कालयवन के पास एक दूत आकर कहता है कि मगध सम्राट जरासंध ने मद्रदेश के राजा शल्य को आपसे भेंट करने के लिए भेजा है वो अपने साथ आपके लिए एक पत्र भी लाएं हैं। यह सुनकर कालयवन कहता है सुनकर खुशी हुई कि भारत देश से वहां का कोई राजा पहली बार हमारे देश में पधारा है। इसलिए उनका स्वागत ऐसा होना चाहिए जो हिन्दुस्तान और यवनदेश दोनों देशों की शान के अनुकूल हो। हमारी तरफ से आज रात महल में उन्हें खाने की दावत दी जाए और राजनर्तकी से कहो कि शाही महल में एक ऐसी महफिल का आयोजन किया जाए जिसकी मस्ती में वे ऐसे खो जाएं कि जिस तरह की कोई भौंरा गुलाब की बगिया में खो जाता है।
राजा शल्य का भव्य स्वागत होता है और उनके लिए नृत्य, संगीत और जाम की महफिल सजाई जाती है और देर तक नाच गाना चलता है। इसके बाद महराज शल्य एक पत्र कालयवन को सौंपते हैं। कालयवन उसे पढ़कर कहता है कि इस पत्र से सारी परिस्थिति का मुझे ज्ञान हो गया है। बड़े आश्चर्य की बात है कि एक अकेले कृष्ण ने आपकी कई अक्षौहिणी सेना का नाश कर दिया। यह सुनकर शल्य कहता है जी एक बार नहीं 17 बार ऐसा हुआ है।
यह सुनकर कालयवन चौंक जाता है और कहता है वाह! क्या वह सचमुच ऐसा वीर और बहादूर योद्धा है? तब शल्य कहता है कि प्रश्न केवल वीरों का नहीं हैं क्योंकि हमारे पास भी वीरों की कमी नहीं हैं। उसके पास कोई दिव्य शक्ति है।..यह सुनकर कालयवन कहता है कि दिव्य शक्तियों तो आप लोगों के पास भी है। स्वयं सम्राट जरासंध के पास भी कई दिव्यास्त्र है। इस पर शल्य कहते हैं परंतु कृष्ण के पास एक ही ऐसा दिव्य अस्त्र है उसका सुदर्शन चक्र जो बाकी सब अस्त्रों को बेकार कर देता है। यह सुनकर कालयवन शल्य को अचंभित होकर देखने लगता है तब शल्य कहते हैं कि जब सुदर्शन आगे बढ़ता है तो सारे दिव्यास्त्र उसे नमस्कार करके पीछे हट जाते हैं। इसलिए कोई भी योद्ध उसके सामने खड़ा नहीं रह सकता। यही कारण है हमारा बार-बार हारने का और यही कारण है मुझे आपके पास भेजने का क्योंकि सारे संसार में आप ही हैं जो युद्ध में उसका सामने कर सकते हैं।
यह सुनकर कालयवन प्रसन्न होकर हंसता और कहता है सच पूछो तो ऐसे ही परमवीर योद्ध की मुझे कई वर्षों से तलाश है। जिसके साथ टक्कर लेने में कुछ मजा आए, जीत में भी मजा आए और हार में भी मजा आए। परंतु इस धरती पर मुझे ऐसा कोई वीर मिला ही नहीं।...हां मुझे याद आ रहा है कि जब मैंने नारद से यह प्रश्न किया था कि इस धरती पर मेरी टक्कर का कोई योद्धा है तो उसने भी यही नाम बताया था.. कृष्ण...कृष्ण...कृष्ण। तब से कई बार मैं सोचता था कि किसी दिन मैं उसके पास जाऊं और उसे युद्ध के लिए ललकारूं। और, आप लोगों ने खुद ही ये अवसर दे दिया परंतु।..शल्य पूछते हैं परंतु क्या? तब कालयवन कहता है परंतु ये कि जिस सुदर्शन चक्र का आपने जिक्र किया है उसका तोड़ मेरे पास है या नहीं यही सोच रहा हूं।
तब शल्य कहते हैं कि इसका तोड़ तीनों लोकों में किसी के पास नहीं है। यह सुनकर कालयवन खड़ा होकर कहता है तो फिर युद्ध कैसे होगा? वो तो मेरा सिर काट देगा। इस पर शल्य कहते हैं नहीं, आपका सिर सुदर्शन चक्र भी नहीं काट सकता।...यह सुनकर कालयवन कहता है वो कैसे? तब शल्य कहते हैं भगवान शिव के वरदान से। आपके पिता को भगवान शिव ने दो वरदान दिए थे। पहला ये कि इस संसार में कोई भी योद्ध किसी भी शस्त्र या अस्त्र से आपकी हत्या नहीं कर सकता। इसलिए सुदर्शन चक्र भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह सुनकर कालयवन कहता है वाह! और दूसरा वरदान क्या था?
शल्य कहते हैं कि भगवान शिव ने कहा था कि सूर्यवंशी हो या चंद्रवंशी कोई भी क्षत्रिय वीर उसे युद्ध में हरा नहीं सकेगा। यह सुनकर कालयवन चौंक जाता है। फिर शल्य कहते हैं कि कृष्ण वैसे तो गोकुल में पला है परंतु उसका जन्म मथुरा में हुआ था इसलिए वह माथुर है। यही कारण है कि कृष्ण आपको युद्ध में कभी नहीं हरा सकेगा।...यह सुनकर कालयवन जोर-जोर से हंसने लगता है और फिर कहता है वाह महाराज शल्य वाह आपने तो सारी दुविधा ही मिटा दी। किसी वीर पुरुष से युद्ध करके ने लिए ये बाहु कब से फड़क रहे थे। आपने तो हमारी तमन्ना ही पूरी कर दी।... फिर कालयवन अपने सेनापति को बुलाकर आदेश देता है कि दो दिन के अंदर हमारी सेना हिन्दुस्तान के लिए कूच करेगी।
उधर, अक्रूरजी आकर श्रीकृष्ण से कहते हैं कि आपकी वाणी सत्य हुई प्रभु। कालयवन मथुरा पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना लेकर निकल चुका है। उधर, जरासंध भी अपनी सेना लेकर मथुरा के लिए निकल चुका है। यह सुनकर बलराम कहते हैं जरासंध फिर आ रहा है? अक्रूरजी कहते हैं हां प्रभु। पहले कालयवन हम पर आक्रमण करेगा और जब हमारी सेना उससे लड़ने जाएगी तब उस समय जरासंध पीछे से मथुरा पर आक्रमण करेगा और सारी नगरी को आग लगा देगा।
बलराम कहते हैं कि ये धूर्त! अब छल पर उतर आया है। अबके इसका दंड उसे अवश्य देना होगा। देखो कन्हैया हर बार तुमने मुझे जरासंध का वध करने से रोका है परंतु इस बार में उस नीच को अवश्य ही मार डालूंगा। अबके मेरे हाथ मत रोकना हां। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं भैया मैंने कितनी बार आपसे कहा है कि ब्रह्माजी ने उसकी मृत्यु आपके हाथों नहीं लिखी। फिर वृथा चेष्ठा करने से क्या लाभ? यह सुनकर बलराम कहते हैं तो फिर किसके हाथों लिखी है? इस पर कृष्ण कहते हैं कि समय आने पर वह भी बता दूंगा अभी तो ये सोचो दाऊ भैया कि ये कालयवन का संकट जो मथुरा की ओर बढ़ा आ रहा है उसका समाधान कैसे हो। ऐसा कह कर श्रीकृष्ण अक्रूरजी से पूछते हैं क्यों अक्रूरजी?
अक्रूरजी कहते हैं प्रभु ये आप हमसे पूछ रहे हैं। आज तक जितने संकट आए हैं उनका समाधान हमनें नहीं किया। सदैव आपने ही संकट निवारण किया है। यह सुनकर कृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं हां ये भी ठीक है। चलो अच्छा मैं ही सोचता हूं कि इसका समाधान कैसे किया जाए।
तब बलरामजी कहते हैं कन्हैया ये सोचने-वोचने की बात छोड़ दो। सीधी बात करो कि इस कालयवन को कौन मारेगा, तुम या मैं? यह सुनकर कृष्ण कहते हैं कि हम दोनों में से कोई भी उसे नहीं मार सकता। तब बलराम पूछते हैं क्यों नहीं मार सकते? इस पर कृष्ण कहते हैं कि मैंने आपसे कहा था ना कि उसे किसी भी अस्त्र या शस्त्र से नहीं मारा नहीं जा सकता। न आपके हल से न मेरे सुदर्शन चक्र से। तब बलराम पूछते हैं उसे ऐसा वरदान किसने दिया? यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं, हमारे प्रभु भोलेनाथ भगवान शिव ने। इसलिए हमें उनके वरदान की लाज तो रखनी ही होगी। इसलिए युद्ध में उसे जीतना असंभव हैं।
यह सुनकर अक्रूरजी चिंतित हो जाते हैं और बलरामजी पूछते हैं तो फिर क्या होगा? उसे युद्ध में नहीं जीत सकते तो क्या उसे छल से मारेंगे? तब श्रीकृष्ण कहते हैं चिंता न करो दाऊ भैया हमें छल करने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि उसे हम नहीं कोई और मारेगा। बस मेरी इतनी ही बात मान लेना कि जब वो मथुरा को घेर ले तो उससे युद्ध करने मुझे अकेले ही जाने देना।
यह सुनकर बलरामजी कहते हैं अकेले.. तो मैं भी साथ नहीं जाऊं? तब कृष्ण कहते हैं नहीं दाऊ भैया तब तो सारी बात ही बिगड़ जाएगी। ये काम तभी हो सकता है जब मैं अकेले जाऊं।... तब बलराम कहते हैं कि तुम्हारा ये तर्क मेरी समझ से बाहर है।...तब श्रीकृष्ण कहते हैं देखो हम तो उसे नहीं मार सकते और ना ही युद्ध में उसे हराया जा सकता है। फिर ये कि हमें किसी ऐसे पुरुष को ढूंढना चाहिए जो बिना युद्ध के ही उसे मार सके और वो पुरुष मैंने ढूंढ लिया है।...बलराम पूछते हैं कौन है वो? तब श्रीकृष्ण कहते हैं महाराज मुचुकंद। वो त्रैतायुग में इक्ष्वाकुवंश में एक परमप्रतापी और परमवीर राजा था।
यह सुनकर बलराम कहते हैं वो त्रैता युग में थे तो इस द्वापर युग में हमारे किस काम के? तब श्रीकृष्ण कहते हैं क्योंकि वो अभी तक इस धरती पर विद्यमान है। यह सुनकर अक्रूरजी पूछते हैं प्रभु त्रेता युग से अभी तक जीवित है तो वे हैं कहां? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि यहां मथुरा के पास ही पहाड़ की एक गुफा में सो रहे हैं।.. यह सुनकर बलराम कहते हैं कि कन्हैया ये पहेलियां मत बुझाओ। सच-सच बताओ कि ये तुम्हारी क्या लीला है? तब श्रीकृष्ण कहते हैं ये मेरी लीला नहीं है दाऊ भैया ये तो इतिहास की बात है।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं ये मेरी लीला नहीं है दाऊ भैया ये तो इतिहास की बात है। सुनो! एक समय जब देवासुर संग्राम में देवता हार रहे थे तो देवराज इंद्र ने देख की उस समय धरती पर इक्ष्वाकु वंश के एक राजा थे। महाराज मुचुकंद वो परमप्रतापी और परम शूरवीर थे जिससे वो इस धरती पर चक्रवर्ती सम्राट हो गए थे। जब इंद्र ने उनसे सहायता मांग तो महाराज मुचुकुंद ने देवताओं की ओर से युद्ध में भाग लिया। महाराज मुचुकंद ने इस संग्राम में असुरों के साथ घोर संग्राम किया। असुर सेना देवताओं का मुकाबला तो कर सकती थे लेकिन परम शूरवीर महाराज मुचुकुंद का मुबाबला नहीं कर सकी और अंतत: वो पराजित होकर भाग गए। जय श्रीकृष्ण।