Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(सफला एकादशी)
  • तिथि- पौष कृष्ण एकादशी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-सफला एकादशी, भ. चंद्रप्रभु जयंती
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Veer Bal Diwas 2024: 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस क्यों मनाया जाता है?

हमें फॉलो करें Veer Bal Diwas 2024: 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस क्यों मनाया जाता है?

WD Feature Desk

, गुरुवार, 26 दिसंबर 2024 (11:30 IST)
26 December Veer Bal Diwas: हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाता है, इस दिन को मनाने की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। तथा इस दिन गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान की स्मृति में 26 दिसंबर को यह दिवस मनाया जा रहा है। इन दोनों साहिबजादों के बारे में कहा जाता हैं कि इन्होंने औरंगजेब की क्रूरता के सामने गुरु गोविंद सिंह जी के साथ उनके साहिबजादे भी उसकी क्रूरता और आतंक से नहीं डरे थे। 
 
Highlights
  • 26 दिसंबर को किसका बलिदान दिवस है?
  • 26 दिसंबर वीर बाल दिवस आज। 
  • साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह की कहानी।
आपको बता दें कि मोदी सरकार ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की थी तथा कहा था कि दशकों पहले हुई एक पुरानी भूल को अब 'नया भारत' सुधार रहा है। इन साहिबजादों द्वारा दिए गए इतने बड़े बलिदान और त्याग को भुला दिया गया, लेकिन अब इस भूल को सुधारते हुए अपना जीवन न्योछावर करने वाले इन शहीदों की इतनी बड़ी 'शौर्यगाथा' पर हर साल 26 दिसंबर का दिन वीर बाल दिवस मनाया जाता रहेगा। 
 
मान्यतानुसार जब औरंगजेब ने उन्हें अपनी जान बचाने के लिए धर्मांतरण का लालच दिया था, तब इन साहिबजादों ने झुकने के बजाय अपना बलिदान देना श्रेष्ठ समझा और तब इसी दिन साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह इन दोनों ने औरंगजेब की क्रूरता को सहते हुए अपना बलिदान दिया था।
 
गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान के स्मृति दिवस पर जानें :
 
जब आनंदपुर छोड़ते समय और सरसा नदी पार करते समय गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार बिछुड़ गया। तब बिछुड़े माता गुजरी जी एवं छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी 7 वर्ष एवं साहिबजादा फतेह सिंह जी 5 वर्ष की आयु में सरसा नदी पर गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें सरहंद के नवाब वजीर खां के सामने पेश कर माता जी के साथ ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया और फिर कई दिनों तक नवाब और काजी उन्हें दरबार में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार के लालच एवं धमकियां देते रहे। 
 
तब दोनों साहिबजादे गरज कर जवाब देते, 'हम अकाल पुर्ख/ परमात्मा और अपने गुरु पिता जी के आगे ही सिर झुका‍ते हैं, किसी ओर को सलाम नहीं करते। हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म एवं जुल्म के खिलाफ है। हम तुम्हारे इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे लेकिन झुकेंगे नहीं।' अत: वजीर खां ने उन्हें जिंदा दीवारों में चिनवा दिया।

फिर माता गुजरी जी ने अपने साहिबजादों की शहीदी के पश्चात बड़े धैर्य के साथ अरदास की, ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए अपने प्राण भी त्याग दिए। तत्पश्चात पौष माह संवत् 1761 को गुरु प्रेमी सिखों द्वारा माता गुजरी जी तथा दोनों छोटे साहिबजादों का सत्कारसहित अंतिम संस्कार किया गया। 26 दिसंबर का दिन जिसे इन दो साहिबजादों की शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है, सिख इतिहास और भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कुंभ से लाई गई ये चीजें घर में लाती हैं समृद्धि और सुख