26 December Veer Bal Diwas: हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाता है, इस दिन को मनाने की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। तथा इस दिन गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान की स्मृति में 26 दिसंबर को यह दिवस मनाया जा रहा है। इन दोनों साहिबजादों के बारे में कहा जाता हैं कि इन्होंने औरंगजेब की क्रूरता के सामने गुरु गोविंद सिंह जी के साथ उनके साहिबजादे भी उसकी क्रूरता और आतंक से नहीं डरे थे।
Highlights
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26 दिसंबर को किसका बलिदान दिवस है?
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26 दिसंबर वीर बाल दिवस आज।
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साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह की कहानी।
आपको बता दें कि मोदी सरकार ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की थी तथा कहा था कि दशकों पहले हुई एक पुरानी भूल को अब 'नया भारत' सुधार रहा है। इन साहिबजादों द्वारा दिए गए इतने बड़े बलिदान और त्याग को भुला दिया गया, लेकिन अब इस भूल को सुधारते हुए अपना जीवन न्योछावर करने वाले इन शहीदों की इतनी बड़ी 'शौर्यगाथा' पर हर साल 26 दिसंबर का दिन वीर बाल दिवस मनाया जाता रहेगा।
मान्यतानुसार जब औरंगजेब ने उन्हें अपनी जान बचाने के लिए धर्मांतरण का लालच दिया था, तब इन साहिबजादों ने झुकने के बजाय अपना बलिदान देना श्रेष्ठ समझा और तब इसी दिन साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह इन दोनों ने औरंगजेब की क्रूरता को सहते हुए अपना बलिदान दिया था।
गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान के स्मृति दिवस पर जानें :
जब आनंदपुर छोड़ते समय और सरसा नदी पार करते समय गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार बिछुड़ गया। तब बिछुड़े माता गुजरी जी एवं छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी 7 वर्ष एवं साहिबजादा फतेह सिंह जी 5 वर्ष की आयु में सरसा नदी पर गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें सरहंद के नवाब वजीर खां के सामने पेश कर माता जी के साथ ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया और फिर कई दिनों तक नवाब और काजी उन्हें दरबार में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार के लालच एवं धमकियां देते रहे।
तब दोनों साहिबजादे गरज कर जवाब देते, 'हम अकाल पुर्ख/ परमात्मा और अपने गुरु पिता जी के आगे ही सिर झुकाते हैं, किसी ओर को सलाम नहीं करते। हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म एवं जुल्म के खिलाफ है। हम तुम्हारे इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे लेकिन झुकेंगे नहीं।' अत: वजीर खां ने उन्हें जिंदा दीवारों में चिनवा दिया।
फिर माता गुजरी जी ने अपने साहिबजादों की शहीदी के पश्चात बड़े धैर्य के साथ अरदास की, ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए अपने प्राण भी त्याग दिए। तत्पश्चात पौष माह संवत् 1761 को गुरु प्रेमी सिखों द्वारा माता गुजरी जी तथा दोनों छोटे साहिबजादों का सत्कारसहित अंतिम संस्कार किया गया। 26 दिसंबर का दिन जिसे इन दो साहिबजादों की शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है, सिख इतिहास और भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
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