Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्थी तिथि)
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल चतुर्थी
  • शुभ समय-10:46 से 1:55, 3:30 5:05 तक
  • व्रत/मुहूर्त-विनायकी चतुर्थी, सूर्य षष्ठी व्रतारंभ, छठ व्र.नि.पा. प्रारंभ
  • राहुकाल- दोप. 3:00 से 4:30 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Baisakhi 2020 : शौर्य, त्याग और लोक कल्याण का महान पर्व बैसाखी

हमें फॉलो करें Baisakhi 2020 : शौर्य, त्याग और लोक कल्याण का महान पर्व बैसाखी
Baisakhi Festival 2020
-स. प्रीतमसिंह छाबड़ा

लोक कल्याण हेतु जिस मानवतावादी दिव्य दर्शन को श्री गुरु नानक देव जी ने सन्‌ 1469 में आरंभ किया, उसे संपूर्णता 230 वर्षों के पश्चात दशम गुरु, गुरु श्री गोविंद सिंह जी ने सन्‌ 1699 में बैसाखी के महान पर्व पर प्रदान की। 
 
यह वह ऐतिहासिक क्रांतिकारी दिन था जिस दिन गुरुजी ने धर्म एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा, राष्ट्र की विराट धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को अक्षुण्ण बनाने के लिए तथा शक्तिशाली अखंड राष्ट्र के निर्माण हेतु निर्मलहृदयी, उदार, अनुरागी, परोपकारी, निर्भयी, त्यागी, शूरवीर, समर्पित संत सिपाही के स्वरूप में खालसा का सृजन करने के दृढ़ संकल्प को साकार रूप प्रदान किया।
 
बैसाखी का पर्व था। आनंदपुर की पावन धरती धन्य हो रही थी। लगभग 80 हजार विशाल जनसमुदाय एकत्रित था। गुरु जी ने उनमें जीवटता, स्वाभिमान, निडरता, त्याग, उत्सर्ग एवं परोपकार का भाव सुदृढ़ कराने के लिए दाएं हाथ में शमशीर को फहराते हुए सिंह गर्जना के साथ आह्वान किया कि धर्म एवं राष्ट्र रक्षा के लिए 5 शीशों का बलिदान चाहिए।
 
सभी स्तब्धता से गुरुदेव जी को देखने लगे, लेकिन सन्नाटे को चीरते हुए श्रद्धा-भावना के साथ लाहौर निवासी 30 वर्षीय खत्री जाति के भाई दयाराम जी आगे आए और विनीत भाव से बोले- मेरा शीश हाजिर है मेरे स्वामी। गुरु जी उन्हें तंबू में ले गए। तलवार के एक झटके की आवाज आई।
 
कुछ समय पश्चात रक्तरंजित तलवार लिए वे मंच पर वापस आ गए। उन्होंने दूसरे सिर की मांग की। इस बार देहली के 33 वर्षीय जाट भाई धरमदास जी ने स्वयं को गुरु के चरणों में समर्पित किया। उन्हें भी तंबू में ले गए, जहां उसी प्रकार तलवार के झटके की आवाज आई।
 
तीसरी बार द्वारकापुरी के 36 वर्षीय छीबा भाई मोहकमचंद तथा चौथी बार जगन्नाथ पुरी के कहार 38 वर्षीय भाई हिम्मत राय जी तथा पांचवीं बार बीदर निवासी भाई साहबचंद जी ने गुरुजी के समक्ष नतमस्तक हो बड़ी श्रद्धा, भक्तिभाव से सहर्ष स्वयं को उनके समक्ष समर्पित कर दिया।
 
गुरु जी पुन: मंच पर इन शूरवीर, त्याग, उत्सर्ग के प्रतीक 5 प्यारों के साथ पधारे। अमृत के दाता गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन्हें संत-सिपाही का स्वरूप प्रदान करने के लिए सर्वलौह के पात्र में निर्मल जल डालकर सर्वलौह के खंडे से घोंटते हुए पवित्र बाणी जपजी साहब से भक्ति, जाप साहब से शक्ति, सवहयों से बैराग, चौपई साहब से विनम्रता एवं आनंद साहब से आनंद भाव लेकर अमृत तैयार किया। माता जीतो जी ने उसमें बताशे डालकर मिठास डाल दी।
 
इस प्रकार खड्ग की आन, वाणी की रूहानी शक्ति तथा बताशे की मिठास एवं गुरु जी की आत्मशक्ति से अमृत तैयार हुआ। 
 
गुरु जी ने पांचों प्यारों को अपनी हस्तांजुलियों से 'वाहै गुरु जी का खालसा वाहै गुरु जी की फताहि' के घोष के साथ उनके शीश, नेत्र में अमृत के 5-5 छींटें डाले।
 
कड़ा, कृपाण, केश, कंघा तथा कछहरा इन 5 कंकारों से सुसज्जित किया और घोषणा की कि 'खालसा अकाल पुरख की फौज/ खालसा प्रगटिओं परमात्म की मौज' अर्थात खालसा की सृजना ईश्वर की आज्ञा से हुई है। इसका स्वरूप निर्मल एवं सत्य है। 
 
इस स्वरूप में खालसा की सृजना कर उनमें सदियों से चली आ रही जात, पात, वर्ग, कुल तथा क्षेत्रीयता की दीवारें समाप्त कर दीं।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रविवार, 12 अप्रैल 2020 : आज पारिवारिक सुख-शांति बनी रहने से मन में प्रसन्नता रहेगी