Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(दीपावली पूजन)
  • तिथि- आश्विन कृष्ण अमावस
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-दीपावली/भ. महावीर निर्वाण, लक्ष्मी पूजन
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Guru Angad Dev : सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव की जयंती

हमें फॉलो करें Guru Angad Dev : सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव की जयंती
Guru Angad Dev
 
गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। उनका जन्म 31 मार्च 1504 ईस्वी में हुआ था। उनका वास्तविक नाम लहणा था। गुरु नानक जी ने इनकी भक्ति और आध्यात्मिक योग्यता से प्रभावित होकर इन्हें अपना अंग मना और अंगद नाम दिया था। गुरु अंगद देव सृजनात्मक व्यक्तित्व और आध्यात्मिक क्रियाशीलता थी जिससे पहले वे एक सच्चे सिख बने और फिर एक महान गुरु। 
 
गुरु अंगद साहिब यानी लहणा जी का जन्म तिथि के अनुसार वैसाख वदी 1 को पंजाब के फिरोजपुर में हरीके नामक गांव में हुआ था। उनके पिता श्री फेरू जी एक व्यापारी थे और उनकी माता का नाम रामो जी था। उन्हें खडूर निवासी भाई जोधा सिंह से गुरु दर्शन की प्रेरणा मिली। 
 
एक बार उन्होंने गुरु नानक जी का एक गीत एक सिख भाई को गाते हुए सुन लिया। इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव जी से मिलने का मन बनाया। और कहते हैं कि गुरु नानक जी से पहली मुलाकात में ही गुरु अंगद जी ने सिख धर्म में परिवर्तित होकर कतारपुर में रहने लगे। इन्होंने ही गुरुमुखी की रचना की और गुरु नानक देव की जीवनी लिखी थी। 
 
कहा जाता है कि गुरु बनने के लिए नानक देव जी ने उनकी 7 परिक्षाएं ली थी। सिख धर्म और गुरु के प्रति उनकी आस्था देखकर गुरु नानक जी ने उन्हें दूसरे नानक की उपाधि दी और गुरु अंगद का नाम दिया। तब से वे सिक्खों के दूसरे गुरु कहलाएं। नानक देव जी के निधन के बाद गुरु अंगद देन ने नानक के उपदेशों को आगे बढ़ाने का काम किया और गुरु अंगद साहब के नेतृत्व में ही लंगर की व्यवस्था का व्यापक प्रचार हुआ। 
 
सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी ने एक बार अपनी पुत्रवधू से गुरु नानक देव जी द्वारा रचित एक 'शबद' सुना। उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देव जी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ बिराजे। उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देव जी को गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की। सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी ने उनकी सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर एवं उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर 'गुरु गद्दी' सौंप दी। इस प्रकार वे गुरु अमर दास जी उनके उत्तराधिकारी और सिखों के तीसरे गुरु बन गए। 
 
सिक्खों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव जी ने 29 मार्च 1552 को अपना शरीर त्याग दिया। 
 
-आरके.

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Isolation : जीवन में क्यों जरूरी है एकांतवास, क्या कहते हैं पुराण