Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
  • तिथि- वैशाख कृष्ण प्रतिपदा
  • शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त- कच्छापवतार, सत्य सांईं महा.दि.
  • राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक
webdunia
Advertiesment

सिख धर्म के 10वें गुरु, गुरु श्री गोविंद सिंहजी, जानें उनके बारे में

हमें फॉलो करें सिख धर्म के 10वें गुरु, गुरु श्री गोविंद सिंहजी, जानें उनके बारे में
1. सन् 1666 को माता गुजरी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर पटना में सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी (Guru Govind Singh) का जन्म पौष सुदी 7वीं हुआ था। 
 
2. पंजाब में जब गुरु तेग बहादुर के घर सुंदर और स्वस्थ बालक के जन्म की सूचना पहुंची तो सिख संगत ने उनके अगवानी की बहुत खुशी मनाई। उस समय करनाल के पास ही सिआणा गांव में एक मुसलमान संत फकीर भीखण शाह रहता था। उसने ईश्वर की इतनी भक्ति और निष्काम तपस्या की थी कि वह स्वयं परमात्मा का रूप लगने लगा।

पटना में जब गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ उस समय भीखण शाह समाधि में लिप्त बैठे थे, उसी अवस्था में उन्हें प्रकाश की एक नई किरण दिखाई दी जिसमें उसने एक नवजात जन्मे बालक का प्रतिबिंब भी देखा। भीखण शाह को यह समझते देर नहीं लगी कि दुनिया में कोई ईश्वर के प्रिय पीर का अवतरण हुआ है। यह और कोई नहीं गुरु गोविंद सिंह जी ही ईश्वर के अवतार थे। 
 
3. उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे और उन्हीं के वचनानुसार बालक का नाम गोविंद राय रखा गया था। गुरु गोविंद सिंह जी वह व्यक्तित्व है जिन्होंने आनंदपुर के सारे सुख छोड़कर, मां की ममता, पिता का साया और बच्चों के मोह छोड़कर धर्म की रक्षा का रास्ता चुना। गुरु गोविंद सिंह जी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे अपने आपको औरों जैसा सामान्य व्यक्ति ही मानते थे। 
 
4. गोविंद सिंह जी ने कभी भी जमीन, धन, संपदा और राजसत्ता के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं, हमेशा उनकी लड़ाई होती थी दमन, अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार के खिलाफ। गुरु गोविंद सिंह जी जैसा कोई दूसरा पुत्र नहीं हो सकता, जिसने अपने पिता को हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शहीद होने का आग्रह किया हो।
 
5. गुरु गोविंद सिंह जी खालसा पंथ की स्थापना की। भारतीय विरासत और जीवन मूल्यों की रक्षा तथा देश की अस्मिता के लिए समाज को नए सिरे से तैयार करने के लिए उन्होंने खालसा के सृजन का मार्ग अपनाया। एक लेखक के रूप में देखा जाए तो गुरु गोविंद सिंह जी धन्य हैं। उनके द्वारा लिखे गए दसम ग्रंथ, भाषा और ऊंची सोच को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं है।
 
 
6. गुरु गोविंद सिंह जी कहते थे कि युद्ध की जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि वह तो उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। जो सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्म योद्धा होता है तथा ईश्वर उसे हमेशा विजयी बनाता है। अत: यह कहा जा सकता हैं कि गुरु गोविंद सिंह जी जैसा महान पिता कोई नहीं, जिन्होंने खुद अपने बेटों को शस्त्र दिए और कहा, जाओ मैदान में दुश्मन का सामना करो और शहीदी जाम को पिओ। 
 
7. गुरु गोविंद सिंह महान कर्मप्रणेता, अद्वितीय धर्मरक्षक, ओजस्वी वीर रस कवि और संघर्षशील वीर योद्धा थे। उनमें भक्ति, शक्ति, ज्ञान, वैराग्य, समाज का उत्थान और धर्म और राष्ट्र के नैतिक मूल्यों की रक्षा हेतु त्याग एवं बलिदान की मानसिकता से ओत-प्रोत अटूट निष्ठा तथा दृढ़ संकल्प की अद्भुत प्रधानता थी। 
 
8. गुरु गोविंद सिंह ने जफरनामा, शब्‍द हजारे, जाप साहिब, अकाल उस्‍तत, चंडी दी वार, बचित्र नाटक सहित अन्‍य रचनाएं भी कीं। सिख धर्म के इतिहास में बैसाखी का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, क्योंकि इसी दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने वर्ष 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी।

 
9. श्री पौंटा साहिब/श्री पांवटा साहिब गुरुद्वारा का सिख धर्म में अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है, क्योंकि यहां पर गुरु गोविंद सिंह जी ने चार साल बिताए थे। कहा जाता है कि इस गुरुद्वारे की स्‍थापना करने के बाद उन्‍होंने दशम ग्रंथ की स्‍थापना की थी। 
 
10. गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। गुरु नानक देव की ज्योति इनमें प्रकाशित हुई, इसलिए इन्हें दसवीं ज्योति भी कहा जाता है। त्याग और वीरता की मिसाल रहे गुरु श्री गोविंद सिंह ने बुराइयों के खिलाफ अपनी आवाज हमेशा बुलंदी की। तथा वे सन् 1708 को नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। अपने अंतिम समय में उन्होंने सिख समुदाय को गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु मानने को कहा और खुद ने भी वहां अपना माथा टेका था। गुरु गोविंद सिंह जैसा न कोई हुआ और न कोई होगा।

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चंद्र ग्रहण और 12 राशियां : किस राशि के लिए शुभ और किसके लिए अशुभ है यह lunar eclipse