गुरु हरगोविंद सिंह जी को अपने साथी पाइंदे खां पर खुद से ज्यादा भरोसा था। उनके बाकी साथी मौका मिलने पर उन्हें इस बात के लिए चेताते भी थे, लेकिन गुरु जी उनकी एक न सुनते, क्योंकि युद्ध के मैदान में मुगलों के छक्के छुड़ाने में पाइंदे खां की महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।
बार-बार की जीत और गुरु के अत्यधिक भरोसे के कारण पाइंदे खां का सिर घूम गया। वह सार्वजनिक रूप से अपने बारे में बढ़-चढ़कर बातें करने लगा और सारी सफलताओं का श्रेय वह अपने आपको देने लगा। कई बार उसने गुरु के भरोसे को भी तोड़ा, लेकिन उन्होंने हर बार अनदेखी कर दी। एक बार उसकी अक्षम्य गुस्ताखी पर गुरु ने घोषणा की कि पाइंदे खां को दरबार से निकाल दिया जाए।
इस पर वह गुरु को चुनौती देते हुए बोला- मैं जहांपनाह से तुम्हारी शिकायत करके तुम्हें सजा दिलाऊंगा। वैसे भी मेरे जाने के बाद तुम्हारी सेना मुगल सेना के सामने टिक नहीं पाएगी।
इसके बाद बौखलाया पाइंदे खां सीधे दिल्ली पहुंचा और गुरु के विरुद्ध शाहजहां के कान भर दिए। जल्द ही काले खां के नेतृत्व में मुगल सेना गुरु को सबक सिखाने के लिए पहुंच गई।
जलंधर में मुगल व सिख सेना का मुकाबला हुआ। संख्या में कम होने के बाद भी सिखों ने मुगलों के हौसले पस्त कर दिए। इस बीच पाइंदे खां गुरु की ओर लपका और उनसे बोला- अब भी माफी मांग लो वर्ना धूल में मिला दिए जाओगे।
गुरु- तू बातें न बना, वार कर।
इस पर उसने गुरु पर वार किया, लेकिन चूक जाने के कारण जमीन पर जा गिरा।
गुरु उससे बोले- अपनी गलती मान लें। मैं तेरा पुराना रुतबा लौटा दूंगा। लेकिन वह गुरु पर तलवार लेकर दौड़ा। गुरु को न चाहते हुए भी उसका वध करना पड़ा। अत: गुरु हरगोविंद सिंह जी के अतिविश्वसनीय पाइंदे खां को उसका ही अहंकार और लालच ले डूबा।