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मैरी और जरीन के बाद जैस्मीन जिनके खून मे है मुक्केबाजी, लेकिन संघर्ष देखा बहुत

जैस्मीन लंबोरिया : विरासत में जन्मीं, पर मेहनत से गढ़ी पहचान

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WD Sports Desk

, मंगलवार, 16 सितम्बर 2025 (13:30 IST)
महान MC मैरीकॉम और निकहत जरीन के बाद देश के बाहर विश्व खिताब जीतने वाली केवल तीसरी भारतीय मुक्केबाज जैस्मीन लंबोरिया 2022 विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने से चूक गई थीं लेकिन काफी संघर्षों के बाद उनकी मेहनत रंग लाई जिससे वह लिवरपूल में अपना नाम इतिहास में लिखवाने में कामयाब रहीं।

मुक्केबाजी जैस्मीन की रगों में बसती है। फिर भी यह पारिवारिक विरासत नहीं थी बल्कि 2016 के रियो ओलंपिक में पहलवान साक्षी मलिक के कांस्य पदक ने युवा जैस्मीन को खेलों को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया। उस समय वह दसवीं कक्षा में पढ़ती थी।किस्मत ने भले ही उन्हें एक विरासत सौंपी हो। लेकिन जैस्मीन ने संघर्ष किया, मुक्के मारे और अपनी जगह बनाने के लिए डटी रही।

उनके चाचा संदीप और परविंदर पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन और अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज हैं। महान मुक्केबाज हवा सिंह उनके दूर के रिश्तेदार हैं।भिवानी की इस मुक्केबाज ने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरे चाचाओं ने मुझसे कहा कि लड़कियां अच्छा कर रही हैं, तुम्हें खेलों में आकर कोशिश करनी है? ’’

जैस्मीन ने 2022 विश्व चैंपियनशिप में पदक चूकने के बाद कहा था, ‘‘मुझे और आक्रामक होने की जरूरत है। ’’अगले साल वह फिर लड़खड़ा गईं, विश्व चैंपियनशिप और एशियाई खेलों दोनों के क्वार्टर फाइनल में हार गईं। हर हार ने उनके दर्द को और बढ़ा दिया, लेकिन जैस्मीन ने उन्हें सीख के रूप में लिया।
एशियाई खेलों की हार विशेष रूप से मुश्किल रही थी। शुरुआती राउंड में दबदबा बनाने के बाद रेफरी के स्टैंडिंग काउंट में जैस्मीन अचानक बिखर गईं। उन्होंने बाद में स्वीकार किया था, ‘‘अपने जीवन में मुझे पहली बार काउंट मिला और मेरा दिमाग शून्य हो गया। ’’

पेरिस ओलंपिक नजदीक आते ही उन्हें अहसास हुआ कि कौशल और सहनशक्ति ही काफी नहीं हैं, उन्हें खेलते हुए चतुराई दिखानी होगी।फेदरवेट में नयी विश्व चैंपियन बनी जैस्मीन ने लिवरपूल से पीटीआई से कहा, ‘‘मैंने मनोवैज्ञानिक और ‘मोटिवेटर’ विक्रांत महाजन से सलाह ली और खेल के मानसिक पहलू पर काम किया। ’’

फिर भी नियति ने उसके संकल्प की परीक्षा ली। 60 किग्रा वर्ग में उन्हें एक रिजर्व के रूप में नामित किया गया लेकिन परवीन हुड्डा के निलंबन के कारण फेदरवेट वर्ग में एक स्थान खाली हुआ और उन्हें मौका मिला।

जैस्मीन ने इसे भुनाया और पेरिस के लिए क्वालीफाई किया। लेकिन वह पहले ही दौर में वह बाहर हो गई।ओलंपिक में हार के बाद निराश तो हुईं लेकिन टूटी नहीं। जैस्मीन थोड़े समय के ब्रेक के बाद पुणे स्थित आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट (ASI) लौट आईं। उन्होंने 57 किग्रा वर्ग में ही रहने का मन बना लिया था जो उनके लंबे कद और स्वाभाविक गति के अनुकूल था।
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उन्होंने कहा, ‘‘60 किग्रा में आपको ज्यादा ताकत और दबदबे की जरूरत होती है। लेकिन मेरी लंबाई के कारण 57 किग्रा मेरे लिए कारगर रहा। लंबी दूरी और गति मदद करती है और मैं आसानी से वजन कम कर सकती हूं। ’’

एएसआई में उनके कोच मोहम्मद ऐतसाम उद्दीन और छोटे लाल यादव ने उन्हें निराश नहीं होने दिया।ऐतसाम राष्ट्रीय शिविर का हिस्सा हैं। उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘ओलंपिक के बाद वह बहुत निराश थी। वह टूर्नामेंट नहीं खेलना चाहती थी, बस अपनी कमियों पर काम करना चाहती थी। लेकिन हमने उसकी प्रगति का आकलन करने के लिए उसे राष्ट्रीय खेलों और चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए मजबूर किया। ’’उन्होंने कहा, ‘‘वह स्वभाव से नरम है इसलिए हमने उसे रिंग में गुस्सा दिलाने के लिए अलग-अलग तरीके आजमाए।

छोटे लाल ने आगे कहा, ‘‘आक्रामकता बहुत जरूरी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप बिना किसी योजना के वार करते रहें। हमने उसे दबाव डालना, हमला करना और फिर पलटवार करना सिखाया। ’’

जल्द ही नतीजे सामने आने लगे। इस साल उन्होंने राष्ट्रीय खेलों, राष्ट्रीय चैंपियनशिप और अस्ताना में हुए विश्व मुक्केबाजी कप सहित हर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है।जैस्मीन ने स्वीकार किया, ‘‘अब किसी तरह आक्रामकता आ जाती है, पहले ऐसा नहीं होता था, लेकिन अब मैं रिंग में आक्रामक होकर आक्रमण कर सकती हूं। ’’
आखिरकार वह वही मुक्केबाज है जो कभी एशियाई खेलों के एक बेहद कड़े मुकाबले में हार गई थी, लेकिन विश्व चैंपियन बनकर उभरी। कहते हैं आप अपनी किस्मत खुद बनाते हैं।(भाषा)

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