- सीमान्त सुवीर
इंदौर। आठ साल बाद राष्ट्रीय चैंपियनशिप में और तीन साल बाद अपने पहले टूर्नामेंट में खेलने वाले सुशील कुमार भले ही 74 किलोग्राम भार वर्ग में चैम्पियन बनकर स्वर्ण पदक जीतने में सफल हो गए हो लेकिन सिर्फ दो मुकाबलों में लड़ने के बाद तीन विरोधियों द्वारा 'वॉकओवर' दिए जाने से वे आलोचना से घिर गए। इस पर उन्हें सफाई देनी पड़ी कि यदि प्रतिद्ंद्वी उनसे लड़ने को तैयार ही नहीं हों, तो इसमें उनकी क्या गलती है?
सुशील कुमार इंदौर में पिछले तीन दिनों से आकर्षण का केंद्र बने हुए थे और हजारों कुश्तीप्रेमी मैट पर सुशील के दांव इसलिए भी देखना चाहते थे क्योंकि उन्होंने 2012 के लंदन ओलंपिक में रजत पदक और 2016 के रियो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। जो लोग सुशील की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें इसका अहसास नहीं है कि यह स्टार पहलवान कुश्ती के प्रति कितना संवेदनशील है।
महाबली सतपाल के वे दामाद हैं और उन्हीं के आदेश पर राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती प्रतियोगिता में उतरे थे, वो भी तब जबकि उन्हें अगले साल होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के अलावा एशियाई खेलों में भी हिस्सा लेना है। इसके लिए वे जॉर्जिया में तैयारी कर रहे हैं। इंदौर में वे अपने जॉर्जियन कोच ब्लादिमीर के साथ आए हुए थे।
सुशील ने प्रतियोगिता के लिए इंदौर के मल्हारआश्रम में साई केंद्र पर अर्जुन अवॉर्डी कृपाशंकर बिश्नोई की कोचिंग में 75 किलो 800 ग्राम वजन को पसीना बहाकर, भूखे पेट रहकर 2 किलो कम किया, ताकि 74 किलोग्राम में उतर सकें। वे उतरे और दो मुकाबले भी जीते लेकिन अगले तीनों मुकाबलों (जिसमें फाइनल भी शामिल था), उन्हें विरोधी पहलवानों ने वॉकओवर दे दिया...
जब मैट पर विरोधी पहलवान सम्मानस्वरूप उनसे दो-दो हाथ ही नहीं करना चाहते थे तो इसमें सुशील कुमार का गुनाह कहां से सामने आ गया? दबी जुबान से इसे 'फिक्सिंग' का घिनौना नाम दिया जा रहा है...सवाल यह है कि कुश्ती जगत में इतना पैसा कहां से आ गया कि उसमें 'फिक्सिंग' की बदबू आने लगे।
जो लोग पहलवानी कर चुके हैं या कर रहे हैं, उन्हें यह मालूम होता है कि कुश्ती एक 'तपस्या' का नाम है। कसैले बदन को बनाना कोई मामूली काम नहीं है। ब्रह्मचर्य से लेकर तमाम शौक त्यागने के बाद ही एक पहलवान अपना शरीर बनाता है। सुशील कुमार की दलील थी कि अगर सामने वाले पहलवान मुझसे कुश्ती लड़ने को तैयार ही नहीं थे, तो मैं इस स्थिति में क्या कर सकता था?
सुशील कुमार के अनुसार उनके सामने अभी नए लक्ष्य हैं और वे देश का प्रतिनिधित्व करके कुश्ती में और मैडल जीतना चाहते हैं। उनमें अभी भी जीत की भूख है और इसके लिए वे कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वैसे सुशील कुमार की विनम्रता तो उस वक्त भी देखने को मिली, जब शनिवार को समापन अवसर पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उन्हें मंच पर बुलाया तो उन्होंने झुककर पहले प्रणाम करके आशीर्वाद लिया...