Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भारतीय खिलाड़ी कभी जानबूझकर डोपिंग नहीं लेते : मंजूषा कंवर

हमें फॉलो करें भारतीय खिलाड़ी कभी जानबूझकर डोपिंग नहीं लेते : मंजूषा कंवर

सीमान्त सुवीर

'भारतीय खिलाड़ी कभी भी जान-बूझकर डोपिंग का सेवन नहीं करते। खिलाड़ी तो सिर्फ खेलना जानता है और जीतना चाहता है लेकिन जब कभी वह प्रतिबंधित दवा के सेवन में पकड़ा जाता है तो पूरा दोष खिलाड़ी का ही माना जाता है और उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, जैसा कि रियो ओलंपिक में भारतीय पहलवान नरसिंह यादव के साथ हुआ।' यह बात 'वेबदुनिया' से एक विशेष मुलाकात में अपने समय में भारतीय बैडमिंटन सितारा खिलाड़ी रहीं मंजूषा कंवर (पावनगढ़कर) ने कही। 
'अभय प्रशाल' में रीजनल स्पोर्ट्‍स मीट में बतौर ऑफियल के रूप में आई मंजूषा इंडियन ऑइल दिल्ली में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि खिलाड़ी की जीत पर उससे जुड़ी उसकी पूरी टीम (कोच, ट्रेनर, डाइटीशियन) जश्न मनाती है, ठीक उसी तरह डोपिंग में दोषी पाए जाने की सजा सिर्फ खिलाड़ी को मिलती है, टीम को नहीं। ऐसी स्थिति में टीम को भी बदलना चाहिए। 2010 में भारत की चार एथलीटों को डोपिंग के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया था। यदि आप इनकी पूरी कहानी पढ़ेंगे तो आंखों में आंसू आ जाएंगे। इनका तो पूरा करियर ही खत्म हो गया...उन्हें मालूम ही नहीं था कि वे क्या ले रहे हैं... 
 
मंजूषा के मुताबिक खिलाड़ी जब इंडिया कैंप में होते हैं तो महीनों तक अपने घरों से दूर रहते हैं। ऐसे में उनका कोच और ट्रेनर ही माता-पिता होता है। भारत में कैंप में रहने वाले खिलाड़ी गरीब तबके से आते हैं और उनका एक ही उद्देश्य होता है कि सीने पर भारत की जर्सी पहनना और पदक जीतकर देश का सम्मान बढ़ाना। चूंकि मैं खुद इंडियन ऑइल में स्पोटर्स कॉर्डिनेटर रहीं हूं लिहाजा हर खेल के खिलाड़ियों के दर्द को पहचानती हूं। असल में हमारे सिस्टम में सुधार की जरूरत है। 
webdunia
प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 के ओलंपिक में 50 पदक जीतने के लिए 'एक्शन प्लान' बनाया है। इस तरह की प्लानिंग तो बहुत पहले से होनी चाहिए थी। दुनियाभर में सबसे अच्छे प्लान भारत में ही बनते हैं, जरूरत है उनके अमलीकरण की। इस प्लान में हर तीन महीने की रिपोर्ट सामने आनी चाहिए। आप जापान को ही लें.. जापान ने पिछले 5-6 सालों से ही बैडमिंटन की शुरुआत की है और इस रियो ओलंपिक में उसने बिलकुल नई टीम भेजी थी और युवाओं से कहा था कि देखकर आओ, क्या माहौल है। असल में उसने 2024 के ओलंपिक की तैयारी के लिहाज से बैडमिंटन खिलाड़ियों को भेजा था। 
 
भारत में एकाएक बैडमिंटन की लोकप्रियता का कारण बताते हुए मंजूषा ने कहा कि जब एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को तैयार करता है तो इसमें सफलता जरूर मिलती है। गोपीचंद खुद एक खिलाड़ी रहे हैं और उन्हें सरकार का भी सहयोग मिला और आज पीवी सिंधु के रूप में ओलंपिक रजत पदक विजेता हमारे पास हैं। यही फार्मूला चीन, जापान और कोरिया ने भी अपनाया हुआ है। भारत में भी पूर्व खिलाड़ियों के अनुभव का नए खिलाड़ियों को आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। यही नहीं, कोचिंग के साथ ही ट्रेनर और डाइ‍टीशियन की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। इन तीनों का ही होना सख्त जरूरी है। 
 
मंजूषा के खेल की शुरुआत : मंजूषा कंवर (विवाह पूर्व पावनगढ़कर) का जन्म पुणे में हुआ और घर में माता-पिता के अलावा मामा-मामी, अंकल-आंटी यानी पूरा खानदान बैडमिंटन खेलता था। 13-14 की स्कूली उम्र में उनके हाथों ने बैडमिंटन का रैकेट था। पहली बार 1990 में भारतीय जूनियर टीम में उनका चयन हुआ। जूनियर में जौहर दिखाने के साथ ही उन्होंने सीनियर में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मंजूषा 1992 में पहली बार महाराष्ट्र की तरफ से खेलते हुए सीनियर में नेशनल चैम्पियन बनीं। फिर एकल में 92, 93, 94 और 96 में सीनियर नेशनल चैम्यियन बनने का गौरव प्राप्त किया। यही नहीं, 1992, 93, 96 और 98 में राष्ट्रीय सीनियर युगल तथा 1999 तथा 2000 मिश्रित युगल में भी विजेता रहीं।
 
थॉमस-उबेर कप में पहनी भारत की जर्सी : मंजूषा ने बैडमिंटन के सबसे बड़े टूर्नामेंट थॉमस कप-उबेर कप में 6 बार देश का प्रतिनिधित्व किया। हर दो साल में आयोजित होने वाले इस टूर्नामेंट में वे पहली बार 1992 में उतरी, फिर 94, 96, 98 और 2000 तक इनमें हिस्सा लिया। 2000 में घुटने में इंजुरी होने के कारण उन्हें डेढ़ साल तक उपचार करवाना पड़ा और वे 2002-03 में वापस बैडमिंटन कोर्ट पर आई और फिर 2004 में थॉमस कप-उबेर कप हिस्सा लिया। 
 
देश-विदेश में अधिक टूर्नामेंट न खेलने का मलाल : मंजूषा के मुताबिक 90 के दशक में देश में बैडमिंटन के बहुत कम टूर्नामेंट होते थे और विदेश जाने के लिए एक्सपोजर भी नहीं मिलते थे। आज तो देश में कई रैंकिंग टूनामेंट होते हैं और विदेशों में सुपर सीरीज टूर्नामेंट भी। 1993 में दिल्ली में विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में भी मेरा प्रदर्शन शानदार था। 1994 में मेरा और दीपांकर भट्‍टाचार्य का खेल पूरे शबाब पर था। 1994 में कनाडा में आयोजित राष्ट्रमंडलीय खेलों में सरकार ने बैडमिंटन टीम नहीं भेजी वरना हम वहां स्वर्ण पदक जीतते। तब मैं दुनिया 40 खिलाड़ियों में आती थी। 1998 के राष्ट्रमंडलीय खेलों में मैं सिंगल्स और डबल्स दोनों में खेली और भारत को कांस्य पदक दिलवाया। 
 
सचिन, कांबली के साथ मिला राज्य का सबसे बड़ा सम्मान : दुनिया सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली को तो भलीभांति पहचानती है लेकिन मंजूषा कंवर को नहीं जानती। इनकी जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि जब महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के सबसे बड़े पुरस्कार 'छत्रपति अवॉर्ड' के लिए सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली का क्रिकेट से चयन किया था, वहीं बैडमिंटन से मंजूषा कंवर को भी चुना था। इन तीनों को यह अवॉर्ड 1992 में दिया गया। 
 
नहीं मिला आज तक अर्जुन पुरस्कार : बैडमिंटन में एकल, युगल और मिश्रित युगल में कुल 10 बार की राष्ट्रीय चैम्पियन और भारत के लिए 12 सालों तक बैडमिंटन कोर्ट पर पसीना बहाने वाली मंजूषा कंवर को आज तक 'अर्जुन पुरस्कार' नहीं मिला। क्यों नहीं मिला? इस सवाल पर मंजूषा ने कहा कि मैं क्वालिफाई भी थी लेकिन इसके लिए आगे क्या करता होता है, मुझे यही पता नहीं था। इसके लिए आपके पीछे बैकिंग जरूरी होती है। मुझे अर्जुन अवॉर्ड नहीं मिला, इसका मलाल नहीं है, आप अवॉर्ड छीन तो सकते नहीं....अच्छा खेलना है और जीतना है, अवॉर्ड मिले न मिले, इससे क्या फर्क पड़ता है... 
 
1993 में एक साथ कई दिग्गज आए इंडियन ऑइल में : मंजूषा कंवर, दीपांकर भट्‍टाचार्य और पुलेला गोपीचंद तीनों ने एक साथ इंडियन ऑइल की नौकरी की शुरुआत की थी। मंजूषा के मुताबिक मई 1996 में दिल्ली के खिलाड़ी अजय कंवर से मेरा विवाह हुआ। हमारी 9 साल की बेटी है। मुझे इंडियन ऑइल ने खेलने के भरपूर मौके दिए। आज हम जो कुछ भी हैं, वह इंडियन ऑइल की वजह से ही हैं। अभी मेरी उम्र 45 बरस की है। मैं आने वाले 10 साल तक और खिलाड़ी तैयार कर सकती हूं। हमारे विभाग को चाहिए कि वह हमारे अनुभव का लाभ ले। नौकरी तो करनी है लेकिन यदि हमें आधा वक्त नौकरी और आधा वक्त कोचिंग की सुविधा मिल जाए तो हम तो हम देश के लिए चैम्पियन खिलाड़ी तैयार करने में अपना योगदान दे सकते हैं। 
 
नए खिलाड़ियों को संदेश : मंजूषा ने कहा कि साइना नेहवाल के बाद पीवी सिंधु की अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि के बाद देश मे बैडमिंटन के प्रति नजरिया ही बदल गया है। काफी बच्चे इस खेल की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। मेरा यही कहना है कि समर्पण, कठोर परिश्रम और अनुशासन इन तीनों के बूते पर ही आप सफलता अर्जित कर सकते हैं। कोच तो बदलते रहते हैं लेकिन खिलाड़ी को हमेशा स्टूडेंट की तरह सीखने की कोशिश में लगे रहना चाहिए।  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जूनियर हॉकी विश्व कप के लिए सही दिशा में टीम : हरेन्द्र