पूर्वी जर्मनी की महिला खिलाड़ियों का 1970 के दशक में दबदबा था। छोटे से मुल्क की ये खिलाड़ी खासतौर पर एथलेटिक्स और तैराकी में करिश्मा कर रही थीं, लेकिन ये दूसरे खिलाड़ियों से थोड़ा अलग दिखती थीं। इनके चेहरे पर हल्के बाल निकल आए थे और आवाज धीमी, पर मर्दों जैसी भारी हो गई थी। ये खिलाड़ी सरकार प्रायोजित डोपिंग में घिरे थे और खतरनाक दवाइयां लेने से इनके शरीर पर बुरा असर पड़ रहा था। पूर्वी जर्मनी ने 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में 40 और 1980 के मॉस्को ओलंपिक में 47 स्वर्ण जीते थे।
कम्युनिस्ट ब्लॉक के पूर्वी जर्मनी को डोपिंग का जनक देश भी कहा जाता है। शीतयुद्ध के समय सोवियत संघ, क्यूबा और पूर्वी यूरोप के दूसरे कम्युनिस्ट देश भी डोपिंग में शामिल बताए जाते हैं। इन देशों में खिलाड़ियों को विटामिन की गोली के नाम पर प्रतिबंधित दवाइयां दी जाती थीं और इंकार करने पर खिलाड़ियों के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती थी।
रूसी खिलाड़ियों पर नजर : हाल ही में रूस दोबारा डोपिंग के चंगुल में फंसा है, जहां पता चला है कि सरकारी मंजूरी से खिलाड़ियों को पाबंदी वाली दवाइयां दी जाती हैं। जर्मनी के टेलीविजन चैनल एआरडी ने 2014 में एक डॉक्यूमेंट्री के जरिए रूस के डोपिंग कांड का भंडाफोड़ किया जिसमें वहां के कुछ खेल अधिकारियों ने भी मदद की। इसके बाद वाडा यानी अंतरराष्ट्रीय डोपिंग नियंत्रण संस्था ने इसकी जांच कराई और 2015 में रूस के खिलाड़ियों पर अनिश्चित काल के लिए प्रतिबंध लग गया।
एक बार तो रूस के सभी खिलाड़ियों पर रियो 2016 ओलंपिक में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी गई, लेकिन अब लगभग 100 खिलाड़ी ही इस प्रतिबंध के दायरे में आएंगे। बाकी के लगभग 180 रूसी खिलाड़ियों को रियो में हिस्सा लेने की इजाजत मिल सकती है। हालांकि ओलंपिक के दौरान और उसके बाद रूसी खिलाड़ियों पर खास नजर रखी जाएगी।
भारत में डोपिंग : पहलवान नरसिंह यादव और फिर गोला फेंक चैंपियन इंदरजीत। भारत के एथलीटों का लगातार डोपिंग टेस्ट में फेल होना बताता है कि ये खिलाड़ी या तो डोपिंग को लेकर गंभीर नहीं हैं या समझते हैं कि टेस्ट को चकमा दिया जा सकता है। आधुनिक मशीनों के इस्तेमाल और वाडा के सख्त नियम से यह संभव नहीं है।
पहलवान नरसिंह यादव को दो बार डोपिंग टेस्ट में फेल होने के बाद भी रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गई है, लेकिन इंदरजीत के लिए रियो के दरवाजे बंद होते नजर आ रहे हैं।
भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही खेल की दुनिया का बड़ा नाम न हो लेकिन डोपिंग के मामले में यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। साल 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक रूस और इटली के बाद सबसे ज्यादा डोपिंग भारत में होती है। नाडा के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 7 साल में भारत में 687 खिलाड़ियों पर डोपिंग की वजह से पाबंदी लगाई गई है यानी हर साल औसत 100 खिलाड़ी डोपिंग के मामले में पकड़े जाते हैं। ओलंपिक और अंतरराष्ट्रीय खेल मुकाबलों में औसत से भी खराब प्रदर्शन करने वाले देश के लिए यह संख्या बेहद परेशान करने वाली है।
क्यों होती है डोपिंग : आमतौर पर ओलंपिक का एक पदक और विश्व रिकॉर्ड बनाने का सपना खिलाड़ियों को इस राह पर ले जाता है। कुछ खिलाड़ी खुद को इन नियमों से अनजान बताते हैं लेकिन यह बहुत हल्का बहाना है। खेल के नियमों के साथ खिलाड़यों को खान-पान और प्रतिबंधित दवाइयों के बारे में भी बताया जाता है और इसका ध्यान रखना खुद उनकी जिम्मेदारी बनती है।
पैसे का लालच भी कई खिलाड़ियों को डोपिंग की चपेट में खींच लेता है। दुनियाभर के देश पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को सम्मान और पैसा देते हैं। भारत सरकार ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वालों को 75 लाख, रजत पदक जीतने वालों को 30 लाख और कांस्य के लिए 20 लाख रुपए का इनाम देती है। राज्य सरकार और दूसरी संस्थाओं से भी अच्छा-खासा पैसा मिल जाता है। अनुमान है कि 2008 के बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा और 2012 के लंदन ओलंपिक में रजत जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार को 5-5 करोड़ रुपए के इनाम मिले थे।
सख्त होते नियम : डोपिंग की जांच पहली बार 1960 के दशक में शुरू हुई थी। वक्त के साथ- साथ इसमें सख्ती लाई गई है। खिलाड़ियों पर न सिर्फ मुकाबले के दौरान, बल्कि उसके कई साल बाद तक नजर रखी जाती है। अभी अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने ऐलान किया है कि लंदन और बीजिंग ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले लगभग 100 एथलीटों के टेस्ट पॉजीटिव पाए गए हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
रियो ओलंपिक के दौरान लगभग 4,500 बार पेशाब और 1,000 खून के टेस्ट किए जाएंगे। इनके नतीजे खेल के दौरान या उसके बाद आ सकते हैं। ये नमूने 10 साल तक सहेजकर रखे जाएंगे और इस बीच तक के लिए संभालकर रखे जाएंगे और पकड़े जाने पर 10 साल बाद भी किसी खिलाड़ी का पदक छिन सकता है। उल्लेखनीय है कि पहले ओलंपिक में एक एथलिट को बियर पीने के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया था।