नई दिल्ली। दिल्ली की अदालत ने पहलवान सतीश कुमार को प्रतिबंधित पदार्थ का पॉजीटिव समझकर गलती से 2002 में 14वें एशियाई खेलों में भाग लेने से रोकने के कारण 25 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया।
भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) को मुआवजा देने का निर्देश देते हुए अदालत ने तीखी टिप्पणी भी की और कहा कि जिस तरह से खेल को नहीं समझने वाले अधिकारियों की अगुवाई वाला महासंघ खिलाड़ियों से बर्ताव करता है, उससे स्पष्ट होता है कि भारत वैश्विक स्तर की प्रतियोगिताओं में पदक हासिल करने में क्यों जूझ रहा है?
सीआईएसएफ के कुमार ने 2006 मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों और लॉस एंजिल्स में विश्व पुलिस खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया था। डब्ल्यूएफआई को दोषी ठहराने के अलावा अतिरिक्त जिला न्यायाधीश सुरिंदर एस. राठी ने केंद्र को इसमें शामिल सभी अधिकारियों के खिलाफ जांच कराने का भी निर्देश दिया जिन्होंने कुमार का करियर लगभग खत्म कर दिया था। इन अधिकारियों में डब्ल्यूएफआई के अधिकारी भी शामिल हैं।
अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह की घटनाओं का कभी भी दोहराव नहीं हो और किसी अन्य खिलाड़ी को इस तरह का अपमान नहीं सहना पड़े, जैसा कि कुमार के साथ हुआ।
पंजाब निवासी कुमार को डब्ल्यूएफआई द्वारा दक्षिण कोरिया के बुसान में 14वें एशियाई खेलों के लिए ही चुना गया था लेकिन उन्हें गलती से अन्य एथलीटों के साथ फ्लाइट लेने से रोक दिया गया, क्योंकि पश्चिम बंगाल के इसी नाम के एक और पहलवान को लेकर संदेह पैदा हो गया था। पश्चिम बंगाल के पहलवान को तब डोप प्रतिबंध में पॉजीटिव पाए जाने के बाद 2 साल के लिए प्रतिबंधित किया गया था।
अदालत ने कहा कि खेल संस्था ने कुमार को बिना सोचे-समझे फ्लाइट से उतार दिया जबकि उनकी कोई गलती भी नहीं थी। इससे इस पहलवान को बदनाम किया और मानसिक रूप से परेशान कर अपमानित किया तथा वह अपने इस गलत रवैए पर अडिग भी रहा कि उन्हें ही डोपिंग में पॉजीटिव पाया गया। (भाषा)