Manu bhaker and Jaspal Rana Bond : भारतीय निशानेबाज मनु भाकर अपने कोच जसपाल राणा को पिता तुल्य मानती हैं तो वहीं यह पूर्व दिग्गज इस ओलंपिक पदक विजेता पर निराशा और अति आत्मविश्वास हावी नहीं होने देता।
व्यक्तित्व के मामले में एक-दूसरे से काफी अलग यह जोड़ी आंखों के इशारे से मुकाबले के दौरान अपनी योजना तैयार कर लेती है।
अनुशासन का सख्ती से पालन करने वाले कोच और उनकी जुनूनी शिष्या ने पीटीआई मुख्यालय में संपादकों के साथ बातचीत में अपने उतार-चढ़ाव को लेकर खुलकर बातचीत की।
मनु और राणा के बीच तोक्यो ओलंपिक के बाद मतभेद हो गया था लेकिन दोनों फिर से साथ आए और पेरिस ओलंपिक में मनु ने दो कांस्य पदक जीत कर इतिहास रच दिया। मनु किसी एक ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली आजाद भारत की पहली खिलाड़ी बन गई।
इस 22 साल की निशानेबाज ने अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ कहा, वह मेरे लिए पिता की तरह हैं और यह भरोसे की बात है कि आप एक व्यक्ति पर विश्वास करते हैं। जब भी कुछ करने को लेकर मेरे मन में संदेह होता है तो वह मेरी हौसला अफजाई करते हैं।
उन्होंने कहा, वह मुझे चांटा भी लगा सकते हैं और कहते है कि तुम इसे कर सकती हो, तुमने इसके लिए प्रशिक्षण लिया है।
मनु की इन बातों से उनके साथ बैठे राणा थोड़े चकित हो गए और उन्होंने बीच में टोकते हुए कहा, तुम यहां कुछ विवाद पैदा कर रही हो।
मनु ने अपनी बातों को स्पष्ट करते हुए कहा, चांटा मारने से मेरा मतलब थप्पड़ नहीं है। मैं यह कहना चाह रही हूं कि वह मुझे अपनी सीमाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। वह ऐसा कहेंगे कि आप इसके लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं और जाहिर तौर पर आप अच्छा प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे।
मनु के इस जवाब के साथ ही दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
दोनों इस बात को अच्छे से जानते हैं कि तोक्यो ओलंपिक के बाद उनके बीच का विवाद भारतीय निशानेबाजी के सबसे चर्चित विवादों में से एक था।
मनु के लिए तोक्यो हर मायने में किसी आपदा की तरह था। 10 मीटर एयर पिस्टल क्वालीफिकेशन से पहले उनकी बंदूक खराब हो गई थी और वह इसके बाद किसी भी स्पर्धा में लय हासिल नहीं कर सकी थी।
राणा को अपनी इस शिष्य से काफी उम्मीदें थी लेकिन वह भारत में टीवी पर उनके प्रदर्शन को देख कर हताश होने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे थे।
पिछले साल दोनों फिर से एक साथ आए। वे अपने विवादित अतीत को पीछे छोड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित थे। पेरिस ओलंपिक में मिली सफलता यह बताती है कि वे अपने लक्ष्य को पूरा करने में सफल रहे।
राणा ने कहा, जब हमने 14 महीने पहले शुरुआत की थी, तो मेरी तरफ से उनसे केवल एक ही अनुरोध था कि हम अतीत पर चर्चा नहीं करेंगे। हम यहीं से शुरुआत करेंगे और आगे बढ़ेंगे। हमने इस चीज को पूरे समय तक बनाए रखा।
उन्होंने कहा, मेरा काम उसका मार्गदर्शन करना है। यह केवल कोचिंग नहीं है। इस स्तर पर, हम उन्हें यह नहीं सिखा सकते कि कैसे देखना है या ट्रिगर कैसे खींचना है। हमें सिर्फ निराशा और अति आत्मविश्वास से बचाने की जरूरत थी।
इस पूर्व दिग्गज निशानेबाज ने कहा, कभी-कभी यह (प्रदर्शन, ध्यान) आपके सिर पर हावी हो जाता है और आप अति आत्मविश्वास के शिकार हो जाते है। ऐसे में कोच का काम खिलाड़ी के पैरों को जमीन पर रखना है।
उनके इस जवाब पर मनु ने सहमति भरे अंदाज में सिर हिलाया।
मनु के विचारों की स्पष्टता उनकी उम्र को झुठलाती है। हरियाणा के झज्जर की युवा खिलाड़ी को एक बार फिर यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं हुई कि तोक्यो में दिल टूटने की घटना ने उन्हें निशानेबाजी से लगभग दूर कर दिया था।
मनु ने कहा, मैं तोक्यो के बारे में कहना चाहूंगी कि वहां दोष देने वाला कोई नहीं था...यह पहले से ही अतीत में है। तोक्यो ने मुझे बेहतर तरीके से तैयार होने, अपने उपकरणों, अपने मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, हर चीज के बारे में अधिक जागरूक होने के लिए बहुत सी चीजें सिखाईं।
उन्होंने कहा, मैं कहूंगी कि इसने मुझे कई बार वास्तव में दुखी किया। मैं कई बार निशानेबाजी छोड़ने की कगार पर थी, लेकिन फिर मैंने कहा, ठीक है, आप और क्या करेंगे।
मनु ने कहा, जब हमने (राणा और मैंने) फिर से एक साथ काम करना शुरू किया, तो यही वह समय था जब मैंने सोचा था कि मुझे पता है, निशानेबाजी मेरे लिए क्या है।
उन्होंने कहा, हमने सोचा चलो पूरा दमखम लगाए। यह यात्रा आसान नहीं थी लेकिन मुझे लगता है कि सब कुछ एक कारण से होता है और जैसा कि वह (राणा) कहते हैं, आपको वह मिलता है जिसके आप हकदार हैं, न कि वह जो आप चाहते हैं।
मनु पेरिस में पदकों की हैट्रिक पूरी करने से चूक गई। वह 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में चौथे स्थान पर रही।
निशानेबाजी के साथ मनु को अपनी शैक्षिक उपलब्धियों पर भी काफी गर्व है। उन्होंने 12वीं कक्षा में अपने अधिकांश विषयों में 90 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए और लगभग उसी समय तोक्यो ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई किया था।
वह खेल और पढ़ाई में संतुलन के लिए भी कुछ हद तक राणा को श्रेय देती हैं। राणा और मनु के भाई ने उन्हें स्नातक के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम की जगह दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित लेडी श्री राम कॉलेज को चुनने के लिए राजी किया।
उन्होंने कहा, वह (राणा) और मेरा भाई, दोनों इतने दृढ़ थे कि आपको अपनी डिग्री कॉलेज से लेनी होगी भले ही आपको अध्ययन करने और परीक्षा (उच्च अंकों के साथ) पास करने के लिए पूरा समय न मिले। हम असाइनमेंट में आपकी मदद करने का प्रयास करेंगे।
अपनी पिस्टल और कलम, दोनों के साथ अच्छे अंक के साथ कामयाब होने वाली मनु ने कहा कि वह हर उभरते खिलाड़ी को भी ऐसा करने की सलाह देंगी।
उन्होंने कहा, यह साथ-साथ चलना चाहिए क्योंकि, व्यक्तिगत रूप से, मुझे लगता है कि शिक्षा ने मेरी सफलता में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
शिक्षा का महत्व एक ऐसी बात थी जिस पर राणा और मनु पूरे दिल से एकमत थे।
राणा ने यहां तक कहा कि वह उन युवाओं को प्रशिक्षण देने से इनकार कर देते हैं जो निशानेबाजी के लिए स्कूल छोड़ देते हैं।
उन्होंने कहा, आप हमेशा के लिए नहीं रहेंगे, इसलिए जब भी आप (खेल) छोड़ते हैं, तो आपके पास कुछ न कुछ होना चाहिए (जिस पर आप फिर से भरोसा कर सकें)। मैं सुनिश्चित करता हूं कि वे (मेरे शिष्य) पढ़ रहे हों। मैं उन बच्चों को प्रशिक्षण नहीं देता हूं जो स्कूल छोड़ चुके हैं या जो आगे पढ़ना नहीं चाहते।
मुन ने खुलासा किया कि राणा उन्हें हाल ही में उद्घाटन किए गए नालंदा विश्वविद्यालय से अपनी पसंद का कोर्स करने के लिए प्रेरित कर रहे थे। यह पांचवीं शताब्दी से शिक्षा का एक महान केंद्र था जिसे 700 साल पहले आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था।
यह पूछे जाने पर कि उनकी पसंद का विषय क्या होगा, राजनीति विज्ञान की पूर्व छात्रा ने कहा, मैं किसी भी चीज के लिए तैयार हूं। आप मुझे एक विषय दीजिए, शायद दो-तीन महीने में मुझे इसकी आदत हो जाएगी। मैं उस विषय से सामंजस्य बिठा लूंगी।
लेकिन यह निश्चित रूप से गणित नहीं होगा। मनु ने माना की वह गणित में उतनी अच्छी नहीं है और उनके इस जवाब ने राणा को उन्हें चिढ़ाने का मौका दे दिया।
राणा ने कहा, उसे यह भी याद नहीं रहता कि वह (किसी मैच में) जीत रही है या हार रही है, इसलिए यह सबसे अच्छी बात है।
उनके इस जवाब के साथ ही दोनों के चेहरे पर हंसी आ गई। (भाषा)