4 जुलाई स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि
Biography of Vivekananda : स्वामी विववेकानंद जी को हम सभी जानते हैं। उनका जीवन काल बहुत छोटा रहा है, परंतु उन्होंने इस छोटे जीवन काल में ही संपूर्ण जीवन जी लिया था और इतने कम समय में भी उन्होंने इस देश, समाज और धर्म को बहुत कुछ दिया। आइए जानते हैं स्वामी विववेकानंद के बारे में-
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कोलकाता में हुआ। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त का निधन 1884 में में हो गया था जिसके चलते घर की आर्थिक दशा बहुत खराब हो चली थी। एक वक्त का भोजन भी नहीं मिल पाता था। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनकी बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा प्रबल थी। इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ।
विवेकानंद को संगीत, साहित्य और दर्शन में विशेष रुचि थी। तैराकी, घुड़सवारी और कुश्ती उनका शौक था। उन्होंने 25 वर्ष की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, गुरुग्रंथ साहिब, धम्मपद, तनख, पूंजीवाद, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य, संगीत और दर्शन की तमाम तरह की विचारधाराओं को जान दिया था।
विवेकानंद जैसे-जैसे बड़े होते गए सभी धर्म और दर्शनों के प्रति अविश्वास से भर गए। संदेहवादी, उलझन और प्रतिवाद के चलते किसी भी विचारधारा में विश्वास नहीं किया और वे नास्तिकता की राह पर चल पड़े थे। अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए वे रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण के रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन बदल गया। सन् 1881 में रामकृष्ण को उन्होंने अपना गुरु बनाया। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ।
जब सन् 1886 में रामकृष्ण जी का निधन हुआ तो विवेकानंद जी ने अपने जीवन एवं कार्यों को नया मोड़ दिया और 25 वर्ष की आयु गेरुआ वस्त्र धारण करके पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा, ऐसा विवेकानंद जी का दृढ़ विश्वास था। शिकागो में भाषण और फिर विदेश में अध्यात्म का प्रचार किया।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु : आज भी स्वामी जी का निधन एक रहस्य है। विवेकानंद पर लिखी गई राजागोपाल चट्टोपाध्याय की किताब और के.एस. भारती की एक अन्य किताब के मुताबिक उनकी मृत्यु शाम को ध्यान करने के दौरान ही हो गई थी। करीब 7 बजे विवेकानंद एक बार फिर ध्यान के लिए चले गए। ध्यान के लिए जाने से पहले उन्होंने अपने साथियों और शिष्यों को विशेष हिदायत दी थी कि उन्हें बीच में डिस्टर्ब न किया जाए। इसी दौरान उनका निधन हो गया। उनके शिष्यों के मुताबिक दरअसल बेलूर मठ (पश्चिम बंगाल) में विवेकानंद ने महासमाधि ली थी। हालांकि यह भी कहा जाता है कि किसी बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हुई थी।
यह भी कहते हैं कि उनके निधन की वजह तीसरी बार दिल का दौरा पड़ना था। उनकी अंत्येष्टि बेलूर में गंगा के तट पर चंदन की चिता पर की गई थी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का 16 वर्ष पूर्व अंतिम संस्कार हुआ था। हालांकि विवेकानंद ने अपनी मृत्यु के बारे में पहले की भविष्यवाणी कर रखी थी कि वे 40 वर्षों तक जीवित नहीं रहेंगे। इस प्रकार उन्होंने महासमाधि लेकर अपनी भविष्यवाणी को पूरा किया। स्वामी विवेकानंद की मृत्यु मात्र 39 वर्ष की उम्र में हुई थी।
कहा जाता है कि अपने जीवन के अंतिम दिन यानी 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: 2-3 घंटे तक ध्यान किया और ध्यानावस्था के दौरान ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली थी, इस तरह 4 जुलाई को उनका निधन हो गया। साथ ही 12 जनवरी को विवेकानंद जी के जन्म दिवस पर भारत में युवा दिवस मनाया जाता है।