मेलबर्न: कहते है पुरानी आदत आसानी से नहीं छूटती और टी20 विश्व कप में भारतीय टीम को बीते जमाने का रवैया अपनाने का खामियाजा भुगतना पड़ा।टीम के सबसे अनुभवी बल्लेबाजों के द्वारा पावर प्ले में धीमी बल्लेबाजी, विकेटकीपर के तौर पर किसी एक खिलाड़ी के चयन को लेकर ऊहापोह की स्थिति और कोच राहुल द्रविड़ के जोखिम न लेने की नीति से भारत को टी20 विश्व कप के सेमीफाइनल में इंग्लैंड से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।
इंग्लैंड ने गुरुवार को भारतीय टीम को 10 विकेट से रौंदा।कप्तान रोहित और को द्रविड़ अगर खुद से ईमानदारी से सवाल करेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि यह टीम सेमीफाइनल में पहुंचने की हकदार नहीं थी।
वैश्विक टूर्नामेंट में पिछले नौ साल में यह छठी बार है जबकि भारतीय टीम नॉकआउट चरण में हार कर प्रतियोगिता से बाहर हो गयी है।
शीर्ष तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह और हरफनमौला रविन्द्र जडेजा के चोटिल होने से टीम को बड़ा झटका लगा लेकिन यह ऐसी चीज है जिस पर टीम का नियंत्रण नहीं है। टीम का जिन चीजों पर नियंत्रण है वे उसे सही रखने में नाकाम रहे।
ऑस्ट्रेलिया में कलाई के स्पिनरों की सफलता के बाद भी टी20 में भारत के सबसे सफल गेंदबाजों में से एक युजवेंद्र चहल को मौका नहीं देना भी टीम को भारी पड़ा।टी20 विश्व कप में भारतीय टीम के हार के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार रहे।
1) बल्लेबाजी क्रम के शीर्ष तीन खिलाड़ियों का रक्षात्मक खेल:
लोकेश राहुल, रोहित शर्मा और, कुछ हद तक विराट कोहली भी इस बात को स्वीकार करेंगे कि वे पावरप्ले में अपने खेल के स्तर को ऊपर उठाने में विफल रहे।
भारतीय टीम पावर प्ले में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो विकेट पर 33 रन, पाकिस्तान के खिलाफ तीन विकेट पर 31 रन बनाने के बाद सेमीफाइनल में एक विकेट पर 38 रन ही बना सकी। टूर्नामेंट में भाग लेने वाली 16 टीमों में पावरप्ले में रन गति के मामले में भारतीय टीम 6.02 की रन रेट के साथ 15वें स्थान पर है। इस दौरान सिर्फ यूएई (4.71) का रन रेट भारत से खराब रहा।
यहां तक की बांग्लादेश के खिलाफ भी 36 और जिम्बाब्वे के खिलाफ 46 रनों का स्कोर भारत ने पहले 3 ओवर में बनाया। नीदरलैंड के खिलाफ भी डर कर बल्लेबाजी हुई और पहले पॉवरप्ले में सिर्फ 38 रन बने।
टी20 विश्व कप से पहले भारत ने ऋषभ पंत, दीपक हुड्डा और सूर्यकुमार यादव को भी सलामी बल्लेबाज के तौर पर आजमाया था और टीम ने इस दौरान अधिक आक्रामक बल्लेबाजी रवैया अपनाया था। विश्व कप में हालांकि रोहित और लोकेश राहुल जैसे खिलाड़ी बड़े मंच पर उम्मीद के मुताबिक नहीं खेल पाए।
2) ऋषभ पंत और दिनेश कार्तिक में से किसी एक के चयन को लेकर स्पष्टता की कमी:
पंत सीमित ओवरों के क्रिकेट में सलामी बल्लेबाज के तौर पर ज्यादा आक्रामक रहे है। मध्यक्रम में उनकी लगातार लचर बल्लेबाजी से दिनेश कार्तिक को फिनिशर की भूमिका में टीम में शामिल किया गया। कार्तिक ने इंडियन प्रीमियर लीग और भारतीय पिचों में इस भूमिका को अच्छे से निभाया लेकिन ऑस्ट्रेलिया की उछाल भरी पिचों पर उनका बल्ला नहीं चला।
टीम ने लीग चरण में कार्तिक को मौका दिया तो वहीं सेमीफाइनल में बायें हाथ के बल्लेबाज के नाम पर पंत को टीम में शामिल कर लिया गया। ऐसा लगा कि यह सब कुछ राहुल को शीर्ष क्रम पर बरकरार रखने के लिए किया गया।
3) युजवेंद्र चहल का उपयोग नहीं करना:
युजवेंद्र चहल टी20 अंतरराष्ट्रीय में भारत के शीर्ष विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं, लेकिन मजेदार बात यह है कि पिछले टी20 विश्व कप में उन्हें मौका नहीं दिया गया और इस बार वह टीम के ड्रेसिंग रूम में ही बैठे रहे।
इंग्लैंड के खिलाफ इस कलाई के स्पिनर के शानदार रिकॉर्ड के बाद भी उन्हें टीम में मौका नहीं मिला। पूरे टूर्नामेंट में उनकी जगह अक्षर पटेल को प्राथमिकता दी गयी जो निराशाजनक रहा।
इंग्लैंड के लिए आदिल राशिद और यहां तक की कामचलाऊ गेंदबाजी करने वाले लियाम लिविंगस्टोन ने भी भारतीय बल्लेबाजों को परेशान किया।
4) कोच द्रविड़ के फैसले:
द्रविड़ ने पिछले एक साल में खुद को मुख्य कोच के पद पर मजबूती से स्थापित कर लिया है, लेकिन अब समय आ गया है कि वह मौजूदा मानकों को तोड़ कर कुछ नया करे।
शुभमन गिल, पृथ्वी साव, राहुल त्रिपाठी, रजत पाटीदार जैसे युवा बल्लेबाजों ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है और दो साल बाद होने वाले अगले टी 20 विश्व कप के लिए उन्हें तैयार करने की जरूरत है।
इसी तरह, एशिया कप में कुछ खराब ओवरों के लिए अवेश खान को टीम से बाहर कर दिया गया जबकि लोकेश राहुल को लगातार खराब प्रदर्शन के बाद भी टीम में बरकरार रखा गया।
चोट से वापसी के बाद हर्षल पटेल पैनापन खो बैठे लेकिन दौरे पर गयी टीम में उनकी जगह बनी रही। अगले विश्व कप से पहले द्रविड़ को कुछ कड़े फैसले लेने होंगे।