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टीचर्स डे : प्राचीन भारत के टॉप 10 शिक्षक

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अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 3 अगस्त 2021 (15:35 IST)
वैसे तो संसार में सैंकड़ों ऐसे शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा से दुनिया को बदल कर रख दिया है। यहां प्रस्तुत है प्राचीन भारत के ऐसे शिक्षकों के नाम जिनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक मानी जाती है।
 
 
1. गुरु वशिष्ठ : सप्त ऋषियों में से एक गुरु वशिष्ठ ने राज दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को शिक्षा दी थी। गुरु वशिष्ठ के ही काल में विश्वामित्र, महर्षि वाल्मीकि, परशुराम और अष्टावक्र भी थे।
 
2. भारद्वाज : महान ऋषि अंगिरा के पुत्र गुरु बृहस्पति हुए जो देवताओं के गुरु थे। इन्हीं गुरु बृहस्पति के पुत्र महान ऋषि भारद्वाज हुए। चरक ऋषि ने भारद्वाज को 'अपरिमित' आयु वाला कहा है। भारद्वाज ऋषि काशीराज दिवोदास के पुरोहित थे। वे दिवोदास के पुत्र प्रतर्दन के भी पुरोहित थे और फिर प्रतर्दन के पुत्र क्षत्र का भी उन्हीं ने यज्ञ संपन्न कराया था। वनवास के समय प्रभु श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का संधिकाल था। उक्त प्रमाणों से भारद्वाज ऋषि को अपरिमित वाला कहा गया है। इनका आश्रम प्रयागराज में था।
 
3. वेद व्यास : महाभारत काल में वेद व्यास एक महान गुरु और शिक्षक थे। श्रीकृष्‍ण के अलावा उनके चार अन्य शिष्य थे। मुनि पैल, वैशंपायन, जैमिनी तथा सुमंतु। इन्हीं के काल में गर्ग ऋषि, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य जैसे महान ऋषि थे। इस काल में सांदीपनि भी थे। महान ऋषि सांदीपति ने श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी।
 
4. ऋषि शौनक : महाभारत के अनुसार शौन ऋषि ने ही राजा जनमेजय का अश्वमेध और सर्पसत्र नामक यज्ञ कराया था। शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वे दुनिया के पहले कुलपति थे।
 
5. शुक्राचार्य : भृगुवंशी दैत्यगुरु शुक्राचार्य का असली नाम शुक्र उशनस है। गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव ने मृत संजीवनी दिया था जिससे कि मरने वाले दानव फिर से जीवित हो जाते थे। गुरु शुक्राचार्य ने दानवों के साथ देव पुत्रों को भी शिक्षा दी। देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच इनके शिष्य थे।
 
6. देवगुरु बृहस्पति : महान अंगिरा ऋषि के पुत्र बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहते हैं। देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण एवं रक्षा करते हैं तथा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं। युद्ध में जीत के लिए योद्धा लोग इनकी प्रार्थना करते हैं। 
 
7. धौम्य ऋषि : गुरु धौम्य का आश्रम सेवा, तितिक्षा और संयम के लिए प्रख्यात था। ये अपने शिष्यों को सुयोग्य बनाने के लिए उनको तप व योग साधना में लगाते थे। स्वयं गुरु महर्षि धौम्य की तपःशक्ति केवल आशीर्वाद से शिष्य को शास्त्रज्ञ बनाने में समर्थ थी। आरुणि, उपमन्यु और वेद (उत्तंक)- ये 3 शास्त्रकार ऋषि महर्षि धौम्य के शिष्य थे।
 
8. कपिल मुनि : कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक थे। इनकी माता का नाम देवहुती व पिता का नाम कर्दम था। कपिल ने माता को जो ज्ञान दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाया। महाभारत में ये सांख्य के वक्ता कहे गए हैं। कपिलवस्तु, जहां बुद्ध पैदा हुए थे, कपिल के नाम पर बसा नगर था
 
9. वामदेव : वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तदृष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरतनाट्यम शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है।
 
10. आदि शंकराचार्य : आदि शंकराचार्य का जन्म  508 ईसा पूर्व हुआ था। शंकराचार्य के चार शिष्य : 1. पद्मपाद (सनन्दन), 2. हस्तामलक 3. मंडन मिश्र 4. तोटक (तोटकाचार्य)। माना जाता है कि उनके ये शिष्य चारों वर्णों से थे।
 
इसके अलावा च्यवन ऋषि, गौतम ऋषि, कण्व, अत्रि, वामदेव, गार्गी, याज्ञ्यवल्यक, मैत्रेयी, चाणक्य, पातंजलि, पाणिनी आदि सैकड़ों शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अपने काल में भारत की दशा और दिशा बदल दी थी।

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