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बचपन में बहुत मोटे थे नीरज, आसान नहीं थी भाल पर स्वर्ण तिलक की राह, जानिए 7 कहानियां...

हमें फॉलो करें बचपन में बहुत मोटे थे नीरज, आसान नहीं थी भाल पर स्वर्ण तिलक की राह, जानिए 7 कहानियां...
, रविवार, 8 अगस्त 2021 (10:26 IST)
नई दिल्ली। वह आज से लगभग 10 साल पहले वजन कम करने के लिये खेलों से जुड़े लेकिन यह किसी को पता नहीं था कि यह भारतीय खेलों में नया इतिहास रचे जाने की शुरुआत है क्योंकि इसी खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में वह कमाल किया जो पिछले 100 वर्षों में कोई भारतीय नहीं कर पाया था - देश का पहला पदक और वह भी स्वर्ण पदक जीतना।
 
हरियाणा के खांद्रा गांव के एक किसान के बेटे 23 वर्षीय नीरज ने टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक के फाइनल में अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर भाला फेंककर दुनिया को स्तब्ध कर दिया और भारतीयों को जश्न में डुबा दिया। एथलेटिक्स में पिछले 100 वर्षों से अधिक समय में भारत का यह पहला ओलंपिक पदक है।
बचपन में काफी मोटे थे ‍नीरज : खेलों से नीरज के जुड़ाव की शुरुआत हालांकि काफी दिलचस्प तरीके से हुई। संयुक्त परिवार में रहने वाले नीरज बचपन में काफी मोटे थे और परिवार के दबाव में वजन कम करने के लिए वह खेलों से जुड़े। 
 
वह 13 साल की उम्र तक काफी शरारती थे। वह गांव में मधुमक्खियों के छत्ते से छेड़छाड़ करने के साथ भैसों की पूंछ खींचने जैसी शरारत करते थे।
 
उनके पिता सतीश कुमार चोपड़ा बेटे को अनुशासित करने के लिए कुछ करना चाहते थे। काफी मनाने के बाद नीरज दौड़ने के लिए तैयार हुए जिससे उनका वजन घट सके।
 
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इस तरह हुआ 'भाला फेंक' से प्यार : उनके चाचा उन्हें गांव से 15 किलोमीटर दूर पानीपत स्थित शिवाजी स्टेडियम लेकर गए। नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उन्होंने स्टेडियम में कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंक का अभ्यास करते देखा तो उन्हें इस खेल से प्यार हो गया। 
 
उन्होंने इसमें हाथ आजमाने का फैसला किया और अब वह एथलेटिक्स में देश के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक बन गए हैं।
 
जयवीर चौधरी ने पहंचानी प्रतिभा : अनुभवी भाला फेंक खिलाड़ी जयवीर चौधरी ने 2011 में नीरज की प्रतिभा को पहचाना था। नीरज इसके बाद बेहतर सुविधाओं की तलाश में पंचकुला के ताऊ देवी लाल स्टेडियम में आ गए और 2012 के आखिर में वह अंडर-16 राष्ट्रीय चैंपियन बन गए थे।
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परिवार ने दिया साथ : उन्हें इस खेल में अगले स्तर पर पहुंचने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत थी क्योंकि यह वह दौर था जब उन्हें बेहतर उपकरणों और बेहतर आहार की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। ऐसे में उनके संयुक्त किसान परिवार ने उनकी मदद की और 2015 में नीरज राष्ट्रीय शिविर में शामिल हो गए।
 
वह 2016 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड के साथ एक ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आए और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
2016 में सेना से जुड़े : नीरज सेना की राजपूताना रेजीमेंट (Rajputana Regiment) में सूबेदार हैं। 15 मई 2016 में नीरज को नायब सूबेदार के पद पर जूनियर कमिशंड ऑफिसर के रूप में चुना गया था। अमूमन भारतीय सेना किसी खिलाड़ी को जवान या नॉन कमीशंड ऑफिसर के पद पर भर्ती करती है, लेकिन नीरज की काबिलियत के मद्देनजर उन्हें सीधे नायब सूबेदार के पद पर नियुक्त किया गया था।
 
भारतीय सेना में शामिल होने के बाद नीरज को मिशन ओलंपिक विंग और आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट, पुणे में ट्रेनिंग के लिए चुना गया था। मिशन ओलंपिक विंग, विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए 5 मिशन ओलंपिक नोड्स में 11 चयनित विषयों में कुलीन खिलाड़ियों की पहचान करने और ट्रेनिंग करने के लिए भारतीय सेना की यह एक प्रमुख पहल है।
 
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फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा : वित्तीय परेशानी दूर होने के बाद नीरज ने 2017 एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान हासिल किया और इसके बाद 2018 में राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे। वह 2018 अर्जुन पुरस्कार विजेता बने। 
 
इसके अगले साल (2019) उन्हें दाहिनी कोहनी की आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी करवानी पड़ी, जिसने उन्हें लगभग एक साल तक खेलों तक दूर रखा। इसके बाद उन पर सवाल उठने लगे थे लेकिन उन्होंने मजबूती से वापसी कर सबको चौका दिया।
 
कैसे बीता कोरोना काल : कोविड-19 महामारी के दौरान लागू प्रतिबंधों के कारण उन्हें अभ्यास करने में परेशानी हुई और वह ओलंपिक से पहले कई अहम वैश्विक टूर्नामेंटों में हिस्सा नहीं ले पाये थे। उन्होंने हालांकि अपने सपने को पूरा करने के लिए इन रुकावटों को आड़े नहीं आने दिया।

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