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महाराष्ट्र के जालना जिले में मराठा आरक्षण आंदोलन शुक्रवार को हिंसक हो गया, जिसमें 42 पुलिसकर्मियों सहित कई लोग घायल हो गए। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने दो बसों को आग के हवाले कर दिया और कई गाड़ियों में तोड़फोड़ की। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने लोगों से शांति की अपील की है। घटना के बाद प्रशासन ने 17 सितंबर तक कर्फ्यू लगाने के आदेश जारी किए हैं।
अभी क्या हुआ : बता दें कि जालना जिले में सोमवार सुबह 6 बजे से 17 सितंबर दोपहर 12 बजे तक कर्फ्यू का आदेश दिया गया है। अपर जिलाधिकारी केशव नेटके ने इस संबंध में आदेश दिए हैं। जालना में मराठा प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज के बाद यहां हालात बिगड़ गए हैं और प्रशासन ने एहतियात के तौर पर ये आदेश लागू किए हैं। बता दें कि हिंसा के बाद यहां के एसपी तुषार दोशी को अनिवार्य छुट्टी पर भेज गिया गया है। उनकी जगह पर शैलेश बलकवाड़े को जालना का नया एसपी बनाया गया है
कैसे भड़की हिंसा: आंदोलन में हिंसा तब भड़की जब मनोज जरांगे के नेतृत्व में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। आइए जानते हैं कि इस हिंसा की वजह बने मराठा आरक्षण आंदोलन की पूरी कहानी क्या है।
क्या है मराठा आरक्षण आंदोलन : 2021 में महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की आग को हवा मिली थी। जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया। दरअसल, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग लंबे समय से चली आ रही थी, जिसके चलते 30 नवम्बर 2018 को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पास किया था। इसके तहत राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया।
इस बिल के खिलाफ मेडिकल छात्र बॉम्बे हाई कोर्ट चले गए। हाई कोर्ट ने आरक्षण को रद्द तो नहीं किया, लेकिन 17 जून 2019 को अपने एक फैसले में इसे घटाकर शिक्षण संस्थानों में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा था कि अपवाद के तौर पर 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द : बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मराठा आरक्षण लागू होने से 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार होती है, जो इंदिरा साहनी केस और मंडल कमीशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
5 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसे लागू करने से 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन होता है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 50 फीसदी सीमा पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हो गया। इसके पहले की उद्धव सरकार और वर्तमान एकनाथ शिंदे सरकार, दोनों मराठा आरक्षण का समर्थन करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनके हाथ बंधे हैं। महाराष्ट्र में पहले से ही 52 फीसदी आरक्षण चला आ रहा है।
Edited navin rangiyal