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लगातार संकटों से जूझ रहा है अफ़ग़ानिस्तान, गहरी पीड़ा में आम लोग

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, रविवार, 21 सितम्बर 2025 (14:45 IST)
महिलाओं, लड़कियों व अल्पसंख्यकों पर पाबंदियां। सहायता धनराशि में कटौती। आर्थिक बदहाली व निर्धनता। सूखा, भूकंप, जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी चुनौतियां। और पड़ोसी देशों से लौट रहे अफ़ग़ान नागरिक। अफ़ग़ानिस्तान में यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि ने आगाह किया है कि आपस में गुंथे हुए संकटों से जूझ रहे देश की आबादी गहरी पीड़ा से गुज़र रही है।
 
यूएन दूत रोज़ा ओटुनबायेवा ने सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को अफ़ग़ानिस्तान में हालात से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ तालिबान की नीतियों से लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी के लिए लैंगिक रंगभेद (gender apartheid) जैसी स्थिति उत्पन्न हुई है और उनका दम घुट रहा है।
विशेष प्रतिनिधि ने बताया कि तालिबान द्वारा 2021 में सत्ता हथियाए जाने के बाद हिंसक टकराव में अपेक्षाकृत कमी आई है, लेकिन मानवीय, आर्थिक व मानवाधिकारों के लिए स्थिति बदतर हुई है। उनके अनुसार अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन संकटों का सामना करने के लिए सत्तारूढ़ प्रशासन में पर्याप्त यथार्थवाद है या फिर विचारधारा से प्रेरित निर्णयों की वजह से उनके समाधान नहीं ढूंढे जा सकेंगे।
 
महिला अधिकारों पर प्रहार
रोज़ा ओटुनबायेवा ने कहा कि मौजूदा संकट के मूल में तालिबान द्वारा अफ़ग़ान महिलाओं व लड़कियों पर थोपी गई पाबंदियां हैं।
 
छठी कक्षा से आगे, स्कूलों में लड़कियों की पढ़ाई पर पाबन्दी को चार वर्ष बीत चुके हैं, जिससे हर साल अर्थव्यवस्था को 1।4 अरब डॉलर की चपत लग रही है। संयुक्त राष्ट्र के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश अफ़ग़ान नागरिक इस प्रतिबन्ध के विरोध में हैं।
एक पूरी पीढ़ी पर खो जाने का गम्भीर जोखिम है, जिसकी दीर्घकाल में देश को एक बड़ी क़ीमत चुकानी होगी। अफ़ग़ान संगठन, Women’s Rights First, की उपाध्यक्ष हनीफ़ा गिरोवाल ने सुरक्षा परिषद में तीखे शब्दों में कहा कि तालिबान की नीतिया लैंगिक उत्पीड़न और रंगभेद को बढ़ावा दे रही हैं।
 
उन्होंने कन्दाहार में एक युवती की व्यथा को बयां किया : अब तक मुझे स्नातकोत्तर की डिग्री की पढ़ाई पूरी कर लेनी चाहिए थी और मैं फिर क़ानून विषय में प्रोफ़ेसर बन जाती... इसके बावजूद, चार वर्षों के लिए मैंने अनिश्चितता में जीवन गुज़ारा है, और अपना भविष्य का निर्णय ले पाने में असमर्थ हूं। मुझे और कितनी प्रतीक्षा करनी होगी।
 
हनीफ़ा गिरोवाल पहले काबुल में डिप्टी गवर्नर भी रहे चुकी हैं। उन्होंने आगाह किया कि देश की आधी आबादी को व्यवस्थागत ढंग से बाहर किया जाना, न केवल उनकी शिक्षा को नकारना है, बल्कि यह एक सोची-समझी नीति है, उन्हें जबरन क़ैद में रखने, बहिष्करण करने और अपने आधीन बनाने की।
 
सहायता प्रयासों पर जोखिम
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2021 के बाद से अब तक, अफ़ग़ानिस्तान में 13 अरब डॉलर की मानवीय व बुनियादी सहायता मुहैया कराई है। हालांकि मानवतावादी सहायता पर दबाव बढ़ रहा है। अन्तरराष्ट्रीय दानदाताओं द्वारा दी जाने वाली धनराशि में इस साल 50 फ़ीसदी की कटौती हुई है।
 
विशेष प्रतिनिधि रोज़ा ओटुनबायेवा ने कहा कि ये कटौतियां, मुख्यत: अफ़ग़ानिस्तान की महिला-विरोधी नीतियों का परिणाम हैं। ग़ैर-सरकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र में काम कर रही अफ़ग़ान महिलाओं पर पाबन्दी थोपने से राहत प्रयासों पर असर हुआ है, विशेष रूप से भूकंप प्रभावितों तक सहायता पहुंचाने में।
 
आर्थिक व जलवायु दबाव
सहायता प्रयासों से इतर अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था बदहाली का सामना कर रही है। आर्थिक प्रगति की दर 2.7 प्रतिशत आंकी गई है, जबकि 75 प्रतिशत अफ़ग़ान नागरिक किसी तरह अपनी गुज़र-बसर करने के लिए मजबूर हैं। सार्वजनिक सैक्टर में कटौतियों से हालात ख़राब हुए हैं। 
वहीं जलवायु परिवर्तन से ये चुनौतियां और पैनी हो रही हैं। सूखे की वजह से ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा संकट से जूझ रहा है, जबकि इनमें अधिकांश अपने दैनिक जीवन-व्यापन के लिए खेती पर निर्भर हैं। रोज़ा ओटुनबायेवा ने आगाह किया कि 60 लाख की आबादी वाला काबुल शहर कुछ वर्षों में ऐसा पहला आधुनिक शहर बन सकता है, जहां जल ख़त्म हो गया हो।
 
अफ़ीम की खेती पर प्रतिबंध को 2023 में लागू किया गया था, जिससे उत्पादन में कमी आई है, लेकिन कभी उस पर निर्भर रहे किसानों पर अब आजीविका का संकट है।
 
बातचीत पर बल
अफ़ग़ानिस्तान में 20 लाख से अधिक लोग पिछले दो वर्षों में ईरान और पाकिस्तान से लौटने के लिए मजबूर हुए हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को एक अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है और स्थानीय सेवाओं पर दबाव बढ़ा है।
 
विशेष प्रतिनिधि ओटुनबायेवा ने कहा कि 2021 के बाद से देश में कुछ सकारात्मक बदलाव आए हैं। तालिबान ने अपने पूर्व विरोधियों को आम माफ़ी दी है, कई दशकों के युद्ध के बाद स्थिरता आई है, यातना रोकने के लिए क़दम उठाए गए हैं और बन्दीगृह में यूएन मानवाधिकार टीम को जाने की अनुमति मिली है।
मगर इसके बाद प्रगति हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि तालिबान के साथ संपर्क व बातचीत को बढ़ावा दिया जाए, जो कि यथार्थवाद और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के प्रति सम्मान पर लक्षित है।

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