जहां संघर्षरत इलाक़ों में नागरिकों की सेवा के लिए कार्यरत सहायता कर्मी, अपनी सुरक्षा के लिए कुछ क़ानूनों पर निर्भर हैं, वहीं युद्धरत पक्ष इन वैश्विक समझौतों का ख़ुलेआम उल्लंघन करते हुए, अस्पतालों व स्कूलों को निशाना बनाते हैं। इससे, नागरिकों तक जीवनरक्षक वस्तुएं व सेवाएं पहुंचाने में राहत कर्मियों को कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है।
लेकिन, वास्तव में युद्ध के नियम हैं क्या और जब उन्हें तोड़ा जाता है तो उसके क्या परिणाम होते हैं? अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून, (संक्षेप में IHL) के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यूएन न्यूज़ ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय, OHCHR एरिक मोंगेलार्ड से बात की।
इससे सम्बन्धित आवश्यक जानकारी इस प्रकार है:
युद्ध के नियम : अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून उतना ही पुराना है, जितना कि युद्ध। बाइबिल और क़ुरान की आयतों से लेकर, मध्ययुगीन योरोपीय शौर्य संहिताओं तक, नागरिकों पर संघर्ष के प्रभाव को सीमित करने के मक़सद से बने नियम निरंतर बढ़ते गए। एरिक मोंगेलार्ड ने कहा कि यह क़ानून “उन न्यूनतम नियमों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो मानवीय इतिहास की कुछ सबसे विकट परिस्थितियों में मानवता के संरक्षण के लिए” बनाए गए थे। उन्होंने बताया कि जिस क्षण सशस्त्र संघर्ष शुरू होता है, उसी क्षण युद्ध के नियम लागू हो जाते हैं। वर्तमान क़ानून मुख्य रूप से जिनीवा कन्वेंशन पर आधारित हैं, जिनमें से पहला संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से लगभग 200 साल पुराना है।
जिनीवा कन्वेंशन क्या है?
1815 में स्विट्जरलैंड ने "हमेशा के लिए" अन्तरराष्ट्रीय तटस्थता की घोषणा की। 1859 में पड़ोस में ऑस्ट्रियाई-फ्रांसीसी युद्ध के दौरान, युद्ध के मैदान में हताहतों का ध्यान रखने वाले एक स्विस नागरिक, हेनरी डुनेंट ने एक प्रस्ताव रखा, जो आगे चलकर घायलों की सहायता के लिए अन्तरराष्ट्रीय समिति की स्थापना की वजह बना।
इसके तुरन्त बाद यह समूह, रेड क्रॉस की अन्तरराष्ट्रीय समिति (ICRC) में तब्दील हो गया। फिर 1864 में, 16 योरोपीय देशों ने पहले जिनीवा कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए। तब से, ज़्यादा से ज़्यादा देशों ने अन्य जिनेवा कंवेनशनों को अपनाया।
180 से अधिक देश अब 1949 के इस कन्वेंशन का हिस्सा बन चुके हैं। उनमें प्रोटोकॉल के 150 देश शामिल हैं, जिन्होंने "आत्मनिर्णय" के युद्धों में शामिल व्यक्तियों को जिनीवा एवं हेग कन्वेंशनों के तहत सुरक्षा प्रदान की। इसके बाद इन्हें, अन्तरराष्ट्रीय संघर्षों के नाम से दोबारा परिभाषित किया गया और कन्वेंशन के उल्लंघन के तथाकथित मामलों में, तथ्य-खोज आयोगों की स्थापना का भी प्रावधान शामिल किया गया। 145 से अधिक देश प्रोटोकॉल का हिस्सा हैं, जिसके तहत उन गम्भीर नागरिक सशस्त्र संघर्ष में शामिल व्यक्तियों को मानवाधिकार सुरक्षा प्रदान की गई, जो 1949 के समझौते में शामिल नहीं थे।
जैसे-जैसे युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियार और युद्ध अधिक परिष्कृत एवं भयावह होते जा रहे हैं, जिनीवा कन्वेंशन के तहत युद्ध के नए नियम व प्रोटोकॉल भी विकसित किए जा रहे हैं।
20वीं सदी के संघर्षों के मद्दनेनज़र, विभिन्न प्रकार के हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कई अन्तरराष्ट्रीय संधियां भी लागू की गईं, जिनमें प्रथम विश्व युद्ध की खाइयों में मस्टर्ड गैस के उपयोग से लेकर, वियतनाम में नेपलम एयरड्रॉप करने जैसी घटनाएं शामिल हैं। सभी हस्ताक्षरकर्ता, इस बाध्यकारी कन्वेंशन के तहत, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का सम्मान करने के लिए बाध्य हैं।
कौन सुरक्षित है?
अन्तरराष्ट्रीय मानवीय कानून द्वारा संरक्षित लोगों और स्थानों में, अस्पताल, स्कूल, नागरिक, सहायता कर्मी और आपातकालीन सहायता पहुंचाने के लिए सुरक्षित मार्ग शामिल हैं। एरिक मोंगेलार्ड ने बताया कि 1977 में अपनाए गए जिनीवा कन्वेंशन के प्रोटोकॉल के तहत, "अधिकांश नियम" नागरिक सुरक्षा के लिए हैं। सामान्यत:, प्रमुख सिद्धांतों को नियमों के दो भागों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से पहला किसी व्यक्ति की गरिमा व जीवन के सम्मान और मानवीय बर्ताव पर केंद्रित है। इसमें न्यायोचित प्रक्रिया के बिना फाँसी के दण्ड व यातना देने पर प्रतिबंध है।
उन्होंने बताया कि दूसरा भाग, प्रत्येक युद्धरत पक्ष के लिए बाध्यकारी होता है और विशिष्टता, आनुपातिकता और सावधानी से सम्बन्धित है। इसके तहत, नागरिकों को निशाना बनाना प्रतिबंधित होता है, और उन्हें यह सुनिश्चित करना ज़रूरी होता है कि जिन अभियानों एवं हथियारों का वे चुनाव कर रहे हैं, उनसे कम से कम नागरिक हताहत होंगे या उनका पूर्णत: बचाव होगा। इसके अलावा, आने वाले हमलों के बारे में नागरिक आबादी को पर्याप्त चेतावनी देना भी आवश्यक होता है। उन्होंने कहा, "किसी भी क़ानूनी संस्था की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना एक कठिन कार्य होता है। उपाख्यानात्मक साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि कुछ मामलों के अलावा, ज़्यादातर IHL का सम्मान ही किया जाता है"
इन क़ानूनों के लागू होने पर भी, 2022 में दुनिया के कुछ सबसे ख़तरनाक स्थानों पर काम करते समय, 116 सहायता कर्मियों की मृत्यु हो गई। स्वतंत्र अनुसंधान संगठन Humanitarian Outcomes के अगस्त के अनंतिम डेटा का उल्लेख करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि इस वर्ष 62 सहायता कर्मी मारे जा चुके हैं, 84 घायल हुए हैं और 34 का अपहरण कर लिया गया है। 7 अक्टूबर के बाद से ग़ाज़ा में कुल 15 संयुक्त राष्ट्र कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।
एरिक मोंगेलार्ड ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून और सम्बन्धित नियमों के बिना, दुनिया भर के युद्धक्षेत्रों में स्थिति "बेहद बदतर होगी" उन्होंने कहा कि "संघर्ष के विभिन्न पक्ष जब, नागरिकों या नागरिक बुनियादी ढांचे के ख़िलाफ़ हमले जैसे आरोपों का सामना करते हैं, तो वे हमेशा या तो उनसे इनकार करते हैं या उसकी वजह समझाने की कोशिश करते हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि वे इन नियमों को महत्वपूर्ण मानते हैं"
दण्डमुक्ति की समाप्ति : उन्होंने आगे कहा, "अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के गम्भीर उल्लंघन, युद्ध अपराध होते हैं" ऐसे में, सभी देशों का दायित्व है कि वे ऐसे सभी बर्तावों को अपराध घोषित करें, उनकी जांच करें और अपराधियों पर मुक़दमा चलाएं। युद्ध के अलावा भी अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का उल्लंघन किया जा सकता है। हालांकि, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में, मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों पर समर्पित किसी संधि पर सहमति नहीं बनी है। लेकिन, Rome Statute में इसके दायरे में आने वाले अपराधों पर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा सहमत नवीनतम जानकारी दी गई है। इसी संधि में अपराध की श्रेणी में आने वाले विशिष्ट कृत्यों की सबसे व्यापक सूची भी उपलब्ध है।
उल्लंघन होने की सूरत में, कई तंत्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें कम्बोडिया, रवाण्डा और पूर्व यूगोस्लाविया के लिए संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण से लेकर ऐसे कई राष्ट्रीय प्रयास शामिल हैं, जैसे 2020 में डीआर कांगो में देखे गए थे, जब एक सैन्य अदालत में एक युद्ध अपराधी को सज़ा दी गई थी। 2002 में रोम संविधि के तहत, हेग स्थित अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) को भी अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के उल्लंघन के आरोपों पर अधिकार प्राप्त है।
वैश्विक अदालत : वैश्विक अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा सबसे गम्भीर अपराधों के लिए दंडमुक्ति समाप्त करने हेतु स्थापित पहली स्थाई वैश्विक आपराधिक अदालत, आईसीसी एक स्वतंत्र अन्तरराष्ट्रीय संगठन है, और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का हिस्सा नहीं है। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र का इससे सीधा सम्बन्ध भी है। आईसीसी के अभियोजक, विश्वसनीय स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर, या देशों द्वारा रोम संविधि को भेजे व संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा संदर्भित मामलों की जाँच खोल सकता है।
हालांकि सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश, आईसीसी को मान्यता नहीं देते हैं, लेकिन यह अदालत दुनिया में कहीं से भी आरोपों की जांच शुरू कर सकती है। बलात्कार को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से लेकर, बाल-सैनिकों की नियुक्ति तक, कई प्रकार के उल्लंघनों पर मामलों की सुनवाई की गई है और फ़ैसले भी दिए गए हैं।
इस कोर्ट में फिलहाल 17 मामलों की जांच जारी है। इसके काम में, संदिग्ध आरोपियों की गिरफ़्तारी का वारण्ट जारी करना शामिल है। इसी के ज़रिए, रूस द्वारा यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने के आक्रमण के बाद, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के ख़िलाफ़ वारण्ट जारी किया गया था।
सभी का योगदान सम्भव : एरिक मोंगेलार्ड ने बताया कि हालाँकि संघर्ष में युद्धरत पक्षों को नियंत्रित करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून है, लेकिन आम जनता भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उन्होंने कहा, "एक महत्वपूर्ण बात है, दूसरे के अमानवीयकरण या दुश्मन के अमानवीयकरण से बचना, नफ़रत भरे भाषण से बचना और हिंसा उकसाने से बचना. इसी मामले में आम जनता का योगदान अहम होता है"
जहां तक अन्तरराष्ट्रीय संगठनों का सवाल है, 7 अक्टूबर को इरासइल-ग़ाज़ा संघर्ष शुरू होने के तुरन्त बाद, आईसीसी ने एक जांच शुरू की, जिसमें अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का उल्लंघन करने वाले युद्ध अपराधों, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध, नरसंहार और आक्रामकता के आरोपों की जानकारी के लिए एक लिंक दिया गया।
संयुक्त राष्ट्र आपातकालीन राहत समन्वयक, मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने, इसराइल-ग़ाज़ा संकट से सम्बन्धित युद्धरत पक्षों को उनके दायित्व याद दिलाने के लिए एक सूची जारी करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया था: "युद्ध के नियम सरल हैं," उन्होंने कहा, "सशस्त्र संघर्ष में शामिल पक्षों को नागरिकों की रक्षा करनी चाहिए"
इसी क्रम में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में पूर्वी भूमध्यसागरिय के क्षेत्रीय निदेशक, अहमद अल मंधारी ने ग़ाज़ा के अस्पताल पर प्रहार के बाद यूएन न्यूज़ से बात करते हुए कहा, "स्वास्थ्य देखभाल सेक्टर को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।
डब्ल्यूएचओ सभी विरोधी दलों से अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन करने" और नागरिकों की सुरक्षा के साथ ही, "उन स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की भी रक्षा करने का आहवान करता है, जो उस इलाक़े में ज़मीनी स्तर पर या एम्बुलेंस में घायलों की देखभाल करते हैं”