नई दिल्ली। आयातित सस्ते तेलों के दबाव से जूझ रहे घरेलू खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से विभिन्न प्रकार के खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को तर्कसंगत बनाने की मांग की है ताकि स्थानीय खाद्य तेल प्रसंस्करण इकाइयों और तिलहन उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा की जा सके। उन्होंने खासकर सोयाबीन डीगम, रेपसीड और सूरजमुखी जैसे तेलों पर शुल्क बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया है।
आम बजट से उम्मीदों के बारे में खाद्य तेल उद्योग का कहना है कि सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी पैदा करने वाले किसानों और घरेलू तेल प्रसंस्करण इकाइयों के हित में खाद्य तेलों पर आयात पर शुल्क बढ़ाकर उचित स्तर पर रखा जाना चाहिए। खाद्य तेलों पर डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत सरकार अधिकतम 45 प्रतिशत तक शुल्क लगा सकती है।
पंजाब ऑइल मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील जैन ने कहा कि बजट में सरकार को घरेलू खाद्य तेल उद्योग के हित में दीर्घकालिक कदम उठाने चाहिए। सोयाबीन डीगम, रेपसीड और सूरजमुखी के कच्चे तेल पर यदि आयात शुल्क बढ़ाया जाए तो इससे किसानों को भी लाभ मिलेगा।
जैन ने कहा कि सोयाबीन डीगम, रेपसीड, सूरजमुखी कच्चे तेल पर आयात शुल्क को बढ़ाकर रिफाइंड के नजदीक ले जाया जाए। उन्होंने तर्क दिया कि इनके कच्चे तेल पर आयात शुल्क 35 प्रतिशत और रिफाइंड पर 45 प्रतिशत है जबकि इन कच्चे तेलों के प्रसंस्करण का खर्च ज्यादा नहीं है इसलिए घरेलू बाजार में इनके आयात का प्रलोभन ज्यादा है।
एक अन्य खाद्य तेल उद्यमी और जानकी प्रसाद एंड कंपनी के आयुष गुप्ता ने कहा कि मलेशिया के साथ अक्टूबर 2010 के व्यापार समझौते के तहत सरकार ने वहां के रिफाइंड पामोलिन पर शुल्क घटाकर 45 प्रतिशत और कच्चे पॉम तेल पर आयात शुल्क को बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया है। गुप्ता ने कहा कि जिस प्रकार पोमोलिन में कच्चे और रिफाइंड तेलों के आयात शुल्क में 5 प्रतिशत का अंतर है, उसी तरह दूसरे तेलों के आयात शुल्क को तर्कसंगत किया जाना चाहिए।
खाद्य तेल उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 225 लाख टन खाद्य तेलों की खपत है जिनमें से करीब 160 लाख टन तेलों का आयात किया जाता है। इसमें 90 से 100 लाख टन कच्चे और रिफाइंड पॉम तेल का आयात होता है जबकि शेष 60 से 70 लाख टन सोयाबीन डीगम, रेपसीड और दूसरे तेलों का आयात किया जाता है।
तेल उद्योग के व्यापारियों का कहना है कि इस बार देश में सरसों की फसल अच्छी हुई है। सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 4,200 रुपए क्विंटल कर दिया है लेकिन अधिक उत्पादन को देखते हुए इसका भाव समर्थन मूल्य से नीचे जाने की चिंता किसानों और व्यापारियों को सता रही है।
एक अन्य तेल व्यापारी पवन गुप्ता ने सरकार से मक्का खल पर माल एवं सेवाकर (जीएसटी) समाप्त करने की मांग की है। गुप्ता ने कहा कि बिनौला खल को जीएसटी से छूट प्राप्त है जबकि मक्का खल, जो कि पशुओं के लिए दूध उत्पादन के लिहाज से काफी लाभदायक है, पर 5 प्रतिशत की दर से जीएसटी लागू है। बिनौला खल का 60 लाख टन उत्पादन है जबकि मक्का खल अभी बढ़ता उद्योग है और इसका 2 लाख टन उत्पादन हो रहा है।
व्यापारियों का कहना है कि पामोलिन का एक पेड़ 25-30 वर्षों तक फसल देता है इसलिए पामोलिन तेल की लागत कम आती है। ऐसी स्थिति में सरसों, सोयाबीन इत्यादि तिलहन की खेती करने वाले किसानों और इनका तेल प्रसंस्करण करने वाली इकाइयों के हितों की रक्षा का बजट में पुख्ता इंतजाम करने की आवश्यकता है।