नई दिल्ली। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार को आगामी बजट में रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था में व्यापक असमानता को पाटने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने साथ ही कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाने की जरूरत को देखते हुए कर कटौती की ज्यादा गुंजाइश नहीं है।
सुब्बाराव ने यह भी कहा कि अनुभव से पता चलता है कि संरक्षणवादी दीवारों के साथ निर्यात को बढ़ावा देने की नीति शायद ही कभी प्रतिस्पर्धी होती है, इसलिए आयात शुल्कों को घटाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, वृद्धि को गति देना हर बजट का मकसद होता है और इस बजट का भी यह उद्देश्य होना चाहिए। लेकिन इस बजट में अर्थव्यवस्था में व्यापक असमानता को पाटने पर खासतौर से ध्यान देना चाहिए।
सुब्बाराव ने कहा कि कोरोनावायरस (Coronavirus) कोविड-19 महामारी ने अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले निम्न-आय वर्ग के लिए भारी संकट पैदा कर दिया है, जबकि दूसरी ओर उच्च-आयवर्ग न केवल अपनी आमदनी बढ़ाने में सक्षम है, बल्कि वास्तव में उनकी बचत और संपत्ति बढ़ी है।
उन्होंने हाल में आई विश्व असमानता रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, इस तरह की व्यापक असमानता न केवल नैतिक रूप से गलत और राजनीतिक रूप से नुकसानदेह है, बल्कि इससे हमारी दीर्घकालिक वृद्धि की संभावनाएं भी प्रभावित होंगी।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को आम बजट 2022-23 संसद में पेश करने वाली हैं। उन्होंने कहा कि वृद्धि को गति देना हर बजट का मकसद होता है और इस बजट का भी यह उद्देश्य होना चाहिए, लेकिन इस बार अर्थव्यवस्था में व्यापक असमानता को पाटने पर खासतौर से ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा, हमें रोजगार आधारित वृद्धि की जरूरत है। अगर इस बजट के लिए कोई थीम है, तो वह रोजगार होनी चाहिए। पूर्व गवर्नर ने कहा कि मंदी के कारण नौकरियां कम हुई हैं। इसके अलावा आर्थिक गतिविधियों के श्रम प्रधान अनौपचारिक क्षेत्र से पूंजी प्रधान औपचारिक क्षेत्र की ओर केंद्रित होने से भी रोजगार का संकट पैदा हुआ। उन्होंने कहा कि रोजगार पैदा करने के लिए वृद्धि जरूरी है, लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है। निर्यात बढ़ाने से न सिर्फ विदेशी मुद्रा मिलेगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
इसके अलावा सुब्बाराव ने कहा कि इस साल देश के कर संग्रह में आया उछाल अगले साल खत्म हो जाएगा, क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्र फिर से पटरी पर आने लगेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाने की लगातार जरूरत को देखते हुए कर कटौती की गुंजाइश बहुत कम है।(भाषा)