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शहरी उपभोक्ताओं के मुकाबले महंगाई से ग्रामीण उपभोक्ता ज्यादा प्रभावित : एचएसबीसी

हमें फॉलो करें शहरी उपभोक्ताओं के मुकाबले महंगाई से ग्रामीण उपभोक्ता ज्यादा प्रभावित : एचएसबीसी

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, मंगलवार, 25 जून 2024 (20:16 IST)
Rural inflation : कोविड महामारी के बाद आर्थिक पुनरुद्धार की दर जिस तरह अलग-अलग थी, उसी तरह भारत में मुद्रास्फीति (inflation) की स्थिति भी है और इससे कुछ तबके अन्य के मुकाबले ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। विदेशी ब्रोकरेज कंपनी एचएसबीसी (HSBC) ने मंगलवार को यह बात कही।
 
एचएसबीसी के अर्थशास्त्रियों ने मुंबई में कहा कि शहरी उपभोक्ताओं के मुकाबले महंगाई से ग्रामीण उपभोक्ता ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने एक रिपोर्ट में कहा कि जिस तरह अर्थव्यवस्था में 'के-आकार' का पुनरुद्धार (यानी कुछ क्षेत्रों में तेजी और कुछ में नरमी) देखने को मिला था, उसी प्रकार की स्थिति मुद्रास्फीति के मामले में दिख रही है।

 
एचएसबीसी के मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजल भंडारी ने रिपोर्ट में मौजूदा भीषण गर्मी का हवाला दिया है। यह बताता है कि एक तरफ जहां खाद्य वस्तुओं की महंगाई ऊंची है, वहीं मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति में नरमी की स्थिति भी है। इसका कारण फसल को नुकसान और पशुधन मृत्यु दर है। मुख्य मुद्रास्फीति में खाद्य वस्तुओं और ईंधन की कीमतों के प्रभाव को शामिल नहीं किया जाता।
 
रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने ईंधन की कीमतों में कटौती करके मदद का हाथ बढ़ाया है लेकिन आमतौर पर गांवों में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी का उपयोग शहरों की तरह नहीं होता। इसके कारण ग्रामीण मुद्रास्फीति शहरी की तुलना में अधिक है।
 
मुद्रास्फीति की स्थिति अधिक असमंजस वाली : इसमें कहा गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति की स्थिति अधिक असमंजस वाली लगती है, क्योंकि आदर्श रूप से हर किसी के मन में यह आएगा कि जब खाद्यान्न का उत्पादन गांवों में होता है तो फिर वहां शहरों में तुलना में महंगाई कम होनी चाहिए। इसके कारण किसानों की आय को नुकसान हुआ है, वे शहरी खरीदारों को खाद्य पदार्थ बेचने के लिए अधिक प्रयास कर रहे हैं। इससे रिटर्न अधिक हो सकता है। लेकिन इसके कारण उनके क्षेत्रों में कम आपूर्ति रह जाती है जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं।

 
साथ ही शहरी क्षेत्रों में बंदरगाहों से खाने की मेज तक सामान पहुंचाने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा है। इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें कम करने में मदद मिलती है। ब्रोकरेज कंपनी ने कहा कि अगर बारिश सामान्य होती है, संभवत: आरबीआई नीतिगत दर में जल्दी कटौती नहीं करेगा।
 
रिपोर्ट के अनुसार अगर जुलाई और अगस्त में बारिश सामान्य नहीं होती है तो गेहूं और दालों के कम भंडार को देखते हुए 2024 में खाद्यान्न के मोर्चे पर स्थिति पिछले साल के मुकाबले खराब हो सकती है। बारिश जून में अब तक सामान्य से 17 प्रतिशत कम रही है और उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में 63 प्रतिशत कम बारिश हुई है, जहां भारत का सबसे ज्यादा अनाज पैदा होता है।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि बारिश सामान्य हो जाती है तो मुद्रास्फीति में तेजी से कमी आ सकती है और आरबीआई नीतिगत दर में कटौती करने में सक्षम होगा और मार्च, 2025 तक इसमें 0.5 प्रतिशत की कमी हो सकती है।(भाषा)
 
Edited by : Ravindra Gupta

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