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बजट 2025 में मिडिल क्लास और गरीबों को राहत के साथ मिली ये बड़ी चुनौतियां

2025-26 के आम बजट में इनकम टैक्स में राहत का प्रस्ताव मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए नई उम्मीदें जगाता है। क्या यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थायीत्व और विकास की दिशा में आगे बढ़ा पाएगा?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, शनिवार, 1 फ़रवरी 2025 (14:43 IST)
Nirmala Sitharaman Budget : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश 2025-26 के आम बजट में इनकम टैक्स में राहत का प्रस्ताव मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए नई उम्मीदें जगाता है। नई कर व्यवस्था के अनुसार, 12 लाख रुपए तक की वार्षिक आय पर कोई कर नहीं लगेगा, जिससे मध्यम वर्ग को सीधी राहत मिलेगी। परंतु, विदेशी निवेश में कटौती, कमजोर रुपया, जीडीपी में गिरावट, कृषि संकट, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में कटौती जैसी चुनौतियों के बीच, क्या यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थायीत्व और विकास की दिशा में आगे बढ़ा पाएगा? 
 
विदेशी निवेश और भारतीय बाजार: जनवरी 2025 तक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने भारतीय शेयर बाजार से 60,859 करोड़ रु की निकासी कर ली है। अमेरिकी बाजार में बेहतर मुनाफे की संभावनाओं के चलते निवेशक भारत से अपनी पूंजी बाहर कर रहे हैं। यह परिदृश्य भारतीय निवेशकों के मन में अस्थिरता पैदा कर रहा है और भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का कारण बन सकता है। भारतीय स्टार्टअप्स और मिड-कैप कंपनियों के विकास में विदेशी निवेश का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन, विदेशी निवेशकों की निकासी से न केवल बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकता है। उदाहरण के तौर पर, जब चीन में सरकारी नीतियों के चलते विदेशी निवेशकों ने स्थानांतर किया, तो भारत ने भी महसूस किया कि केवल विदेशी पूंजी पर निर्भर रहना खतरनाक हो सकता है।
 
रुपए की गिरावट और इसके प्रभाव: विशेषज्ञों का अनुमान है कि मार्च 2025 तक भारतीय रुपया 90 रुपए प्रति डॉलर तक गिर सकता है। रुपये की गिरावट से आयात महंगा होगा, जिससे घरेलू बाजार में महंगाई बढ़ने की संभावना है। भारत एक आयात-निर्भर अर्थव्यवस्था है। ऊर्जा, कच्चे माल, और कुछ तकनीकी उपकरणों के आयात में बढ़ोतरी से घरेलू बाजार में मूल्य वृद्धि हो सकती है। इससे गरीब और मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं पर अधिक दबाव पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर, जैसे पिछले कुछ वर्षों में गिरते रुपया ने उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की थी, वैसे ही अब भी इसी तरह का प्रभाव देखने को मिल सकता है।
 
जीडीपी वृद्धि में गिरावट और भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां: चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर चार साल के निचले स्तर 6.4 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2025-26 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 6.3 और 6.8 प्रतिशत के बीच रहेगी। भारतीय उद्योगों और सेवाओं में मंदी की वजह से यह गिरावट आई है। भारत को विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है, तब इस गिरावट ने भारतीय अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया ने मंदी के दौर में अपनी औद्योगिक नीतियों में सुधार करके सुधार की राह अपनाई थी। भारत को भी अपनी नीतियों में सुधार कर जीडीपी वृद्धि दर को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
 
आय, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव : 2023-24 में स्व-रोजगार और वेतनभोगी श्रमिकों के औसत मासिक वेतन में गिरावट आई है। कॉरपोरेट मुनाफे में तेज वृद्धि के बावजूद रोजगार सृजन में अपेक्षाकृत धीमी वृद्धि देखी गई है। भारत में आय और रोजगार के बीच असमानता सामाजिक असंतुलन का प्रमुख कारण बन सकती है। कोविड-19 के बाद अमेरिका ने पुनः कौशल विकास के कार्यक्रम लागू किए, जिससे रोजगार में सुधार हुआ। भारत में भी इसी दिशा में कदम उठाना आवश्यक है ताकि युवा वर्ग को रोजगार के नए अवसर मिल सकें और घरेलू आर्थिक विकास में तेजी आए।
 
बैंकिंग क्षेत्र, कर्ज माफी और वित्तीय अनुशासन: पिछले 10 वर्षों में भारतीय बैंकों ने 16.11 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए हैं, जिससे वित्तीय अनुशासन पर सवाल उठ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जब ग्रीस ने अपने भारी ऋण के चलते आर्थिक संकट झेला था, तब यह स्पष्ट हुआ कि वित्तीय अनुशासन के बिना दीर्घकालिक आर्थिक विकास असंभव है। भारतीय बैंकों को भी चाहिए कि वे ऋण माफी के बावजूद वित्तीय नियमों और अनुशासन को बनाए रखें, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार का वित्तीय संकट पैदा न हो।
 
कृषि क्षेत्र में असंतोष और किसानों की चुनौतियां: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी को लेकर किसान आंदोलन आज भी जारी हैं। कृषि क्षेत्र में असंतोष का मुख्य कारण किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य न मिलना है। भारत कृषि प्रधान देश है, जहां लाखों किसान अपनी आजीविका इस क्षेत्र पर निर्भर करते हैं। फ्रांस जैसे देशों ने अपने किसानों को सब्सिडी और आधुनिक तकनीकी सहायता देकर बेहतर परिणाम प्राप्त किए हैं। भारत को भी किसानों के साथ बेहतर संवाद और सहयोग बढ़ाकर उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान निकालना होगा
 
मनरेगा भुगतान में देरी: ग्रामीण श्रमिकों की समस्याएं इसलिए बढ़ रही है क्योंकि अपर्याप्त बजट आवंटन के कारण मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान में देरी हो रही है, जिससे ग्रामीण श्रमिक आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा है। उल्लेखनीय है कि कृषि आधारित कई देशों ने ग्रामीण रोजगार के लिए प्रभावी योजनाएं अपनाकर अपने ग्रामीण विकास को गति दी थी। यदि मनरेगा के तहत समय पर भुगतान सुनिश्चित नहीं किया गया, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर कर सकता है और मजदूरों का जीवनस्तर गिर सकता है।
 
बजट 2025 में मध्यम वर्ग को राहत देने के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन विदेशी निवेश में कटौती, कमजोर मुद्रा, गिरती जीडीपी, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की चुनौतियां, तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में कटौती जैसी समस्याएं अभी भी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बनी हुई हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में, इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीतिगत सुधार, वित्तीय अनुशासन और व्यापक सामाजिक सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। यदि सरकार इन मुद्दों पर ठोस कदम उठाती है, तो भारत भविष्य में एक संतुलित और सुदृढ़ आर्थिक विकास की राह पर अग्रसर हो सकता है।

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