अब इसमें कोई संशय नहीं रहा कि कई महीनों तक चली सपा कि पारिवारिक कलह प्रायोजित थी। इसकी व्यूह रचना मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कि थी। जो लोग अखिलेश यादव को संपूर्ण उत्तराधिकार सौंपने के विरोधी थे, वह चक्रव्यूह में फंस गए समानान्तर सत्ता, संगठन व उत्तराधिकार का सपना लिए वह बहुत आगे निकल गए। फिर ऐसी जगह पहुंच गए, जहां से पीछे लौटना संभव ही नहीं था। आंख खुली तो सपना चकनाचूर हो चुका था। हाथ मलने के अलावा इनके सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था।
अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे। अपवाद को छोड़कर पूरी पार्टी उनकी हो चुकी थी। मजेदार बात यह है कि जिन्होंने मुलायम की बातों का विश्वास किया, वह शिकायत करने की स्थिति में नहीं थे। ऊपर से यही दिख रहा था कि अखिलेश यादव पूरी पार्टी ले गए। मुलायम करते भी क्या। लेकिन सच्चाई यह थी कि मुलायम यही चाहते थे।
कई दिन की खामोशी के बाद मुलायम सिंह यादव ने एक तीर और छोडा़ है। इसके द्वारा उन्होंने दूसरा चक्रव्यूह तैयार कर दिया है। इस बार इसमे कांग्रेस को घेरने की तैयारी है। एक सौ पांच सीटें लेकर कांगेस पहले द्वार में प्रवेश तो कर गई, लेकिन मुलायम के पैंतरे ने उनकी मुश्किल बढ़ा दी है। उन्होंने इन एक सौ पांच सीटों पर बागी प्रत्याशी उतारने व कांग्रेस के विरोध में प्रचार करने का अपने समर्थकों से आह्वान किया है।
यह बताने की जरूरत नहीं कि मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन का अधिकांश हिस्सा गैर कांग्रेसवाद में बीता है। आज सपा के प्रवक्ता उनकी इस भावना को समझने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि पहले गैर कांग्रेसवाद आवश्यक था। आज साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकना है। जबकि मुलायम सिंह यादव की सभी समस्याओं के लिए कांग्रेस को दोषी मानते हैं। वैसे माना यह जा रहा है कि यह भी मुलायम की सोची-समझी चाल है।
जिस प्रकार उन्होंने राष्ट्रीय स्तर तक पार्टी तक अखिलेश तक पहुचाने का इंतजाम किया। उसी प्रकार कांग्रेस को किनारे लगाने का प्रयास किया जा रहा है। चर्चा है कि मुलायम इस मामले में भी दूरगामी रणनीति पर अमल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की दशा पर किसी को गलतफहमी नहीं है। अखिलेश यादव ने जब कांग्रेस से समझौता किया तो लोगों को आश्चर्य हुआ। उत्तर प्रदेश की स्थिति बिहार जैसी नहीं है। वहां राजद व जदयू के मिलने से नया समीकरण बना था। इसमें मुस्लिम वोट भी मिल गया।
इसी के सहारे कांग्रेस ने भी अपना अस्तित्व बचा लिया, जबकि उत्तर प्रदेश में इस बार भाजपा भी मजबूती से उभरी है। इस बात से उसके प्रतिद्वंद्वी भी इंकार नहीं कर सकते। ये सभी भाजपा पर ही निशाना लगा रहे हैं। भाजपा के उभरने का यह प्रमाण है। इसके पहले करीब डेढ़ दशक तक ऐसी स्थिति नहीं थी। तब सपा व बसपा एक-दूसरे की कमियां गिनाकर सत्ता में आने का प्रयास करती थी। इसी में क्रमश: उन्हें लाभ मिलता था। इस बार दोनों की यह रणनीति कारगर नहीं रही। इसलिए भाजपा पर हमला हो रहा है।
दूसरी बात यह है कि बिहार में बसपा जैसी किसी पार्टी का अस्तित्व नहीं था। इसका फायदा भी महागठबंधन को मिला। ऐसे में अखिलेश का कांग्रेस से समझौता चौंकाने वाला था, लेकिन यह कदम वोटबैंक की राजनीति से प्रेरित था। सपा को लगा कि कांग्रेस कुछ मुस्लिम वोट काट सकती है। इस विभाजन की मंशा से समझौता किया। टिकट का बंटवारा भी हो गया। राहुल और अखिलेश ने साझा रोड शो भी कर लिया। बताया जाता है कि इसके आगे की पटकथा मुलायम ने लिखी। उनकी नजर कांग्रेस के हिस्से वाली एक सौ पांच सीटों पर है।
यह गौर करने वाली बात है कि मुलायम ऊपर से नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं कि अखिलेश ने उनके द्वारा भेजी लिस्ट में भी काट-छांट कर दी, लेकिन मुलायम सपा के हिस्से वाली सीटों पर कुछ नही बोलते, पर कांग्रेस के हिस्से वाली सीटों पर प्रत्याशी उतारने व कांग्रेस को हटाने की अपील अवश्य करते हैं। बताया जा रहा है कि यह भी प्रायोजित है। मुलायम चाहते हैं कि एक सौ पांच में भी सपा के विद्रोही जीत जाएं। कुछ भी हो कांग्रेस के लिए यह चिंता का विषय है।