कोरोना के भयावह समय में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की सबसे ज्यादा किल्लत महसूस की गई। मेडिकल के ये उपकरण एक तरह से लाइफ सपोर्ट का काम करते हैं। कोरोना में ही हमने जाना कि ये कितने अहम है जिंदगी को बचाने के लिए।
कोरोना संक्रमण के गंभीर मरीज पर जब ऑक्सीजन भी काम नहीं करती, उस वक्त उन्हें वेंटिलेटर पर रखा जाता है। ये लगभग काम बंद कर चुके फेफड़ों को सांस लेने में मदद करतर है।
क्या होता है Ventilator?
आसान भाषा में समझें तो जब किसी मरीज के श्वसन तंत्र में इतनी ताकत नहीं रह जाती कि वो खुद से सांस ले सके तो उसे वेंटिलेटर की जरूरत होती है। आमतौर पर वेंटिलेटर दो तरह के होते हैं। पहला मैकेनिकल वेंटिलेटर और दूसरा नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर। अस्पतालों में हम जो वेंटिलेटर ICU में देखते हैं वो सामान्य तौर पर मैकेनिकल वेंटिलेटर होता है जो एक ट्यूब के जरिए श्वसन नली से जोड़ दिया जाता है।
कैसे काम करता है Ventilator?
ये वेंटिलेटर इंसान के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। साथ ही ये शरीर से कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को बाहर निकालता है। वहीं दूसरे तरह का नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर श्वसन नली से नहीं जोड़ा जाता। इसमें मुंह और नाक को कवर करके ऑक्सीजन फेफड़ों तक पहुंचाता है। मरीज जो अपने आप सांस नहीं ले पाते हैं, और खासकर आईसीयू में भर्ती होते हैं उन्हें इस मशीन की मदद से सांस दी जाती है।
किसे होती है इसकी जरूरत
इस प्रक्रिया के तहत मरीज को पहले एनेस्थीसिया दिया जाता है। इसके बाद गले में एक ट्यूब डाली जाती है और इसी के जरिए ऑक्सीजन अंदर जाती और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलती है। इसमें मरीज को सांस लेने के लिए खुद कोशिश नहीं करनी होती है। आमतौर पर 40 से 50% मामलों में वेंटिलेटर पर रखे हुए मरीजों की मौत हो जाती है। हालांकि कई मौकों पर ये जान बचाने वाला साबित हुआ है।
क्या है Ventilator के रिस्क
हालांकि इसके कुछ नुकसान भी हैं। एक वक्त के बाद वेंटिलेटर मरीज को नुकसान पहुंचाने लगता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में फेफड़ों में एक छोटे से छेद के जरिए बहुत फोर्स से ऑक्सीजन भेजी जाती है। इसके अलावा वेंटिलेटर पर जाने की प्रक्रिया में न्यूरोमॉस्कुलर ब्लॉकर भी दिया जाता है, जिसके अलग दुष्परिणाम हैं। यही कारण है कि वेंटिलेटर पर रखे होने के साथ ही मरीज को दवा देकर वायरल लोड घटाने की कोशिश की जाती है ताकि फेफड़े बिना वेंटिलेटर के काम कर सकें।
क्या है Ventilator का इतिहास?
वेंटिलेटर का इतिहास शुरू होता है 1930 के दशक के आस-पास। तब इसे आयरन लंग का नाम दिया गया था। तब पोलियो की महामारी की वजह से दुनिया काफी जानें गई थीं। लेकिन तब इसमें बेहद कम खासियतें मौजूद थीं। वक्त के साथ वेंटिलेटर की खासियतें बढ़ती चली गईं।